संवाद


"बुद्धिजीवी को लक्कड़जीवी का सलाम"


फोन की घंटी बजते ही आई जी साहब का 'बुद्धिजीवी को लक्कड़जीवी का सलाम' कहते हुए अभिवादन मुझे अद्भुत हर्ष व रोमांच से भर देता। पद, प्रतिष्ठा और आयु हर दृष्टि से शिखर पर बैठे हुए इस व्यक्तित्व का अंदाजे- गुफ्तगू कुछ ऐसा होता है कि उसमें ज्ञान,प्रेम और व्यंग्य तीनों का अद्भुत मिश्रण दिलोदिमाग को तरोताजा कर देता है।


        आई जी साहब को नई-नई पुस्तकें पढ़ने का शौक हैं और उन पुस्तकों को पढ़ने के बाद उनके विश्लेषण की सूक्ष्मदृष्टि उनके पास हैं। मोबाइल पर बातचीत में वे पुस्तक की हर महत्वपूर्ण पंक्ति को उद्धृत करते हैं और आज की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में उसकी महत्ता को व्याख्यायित करते हैं। साथ ही यह भी बोलते जाते हैं कि आप तो शिक्षा जगत में है,आपको क्या बताना,यह तो ऐसा ही है जैसे सूरज को दिया दिखाना।


           ऐसी बातें सुनकर मेरे हृदय में एक साथ कई भाव उभर जाते हैं : मसलन एक तो गहरी और ऊंची बातें पुलिस विभाग कर रहे हैं और दूसरी तरफ विनम्रतापूर्वक किए गए व्यंग्य-बाण से मुझे घायल किए जा रहे हैं। आधे घंटे के वार्तालाप में उनके जीवन का प्रेम और प्रसाद मुझे इतना तृप्त कर देता कि मैं एक नए लोक में होने के भाव से भर जाता। सहृदयता और संस्कार के साथ सौंदर्य का दर्शन करना हो तो आप उनसे मिलो।


सचमुच कुछ लोगों से मिलने पर जीवन समृद्ध होता है और कुछ नया अनुभव होता है। मसलन पुलिस विभाग की छवि ऐसी बना दी गई है कि कड़क अंदाज में कम शब्दों में आदेश देने वाले लोग होते हैं। लेकिन जब कभी भी मेरी उनसे मुलाकात हुई तो जेठ की दुपहरिया के सूरज की गर्मी का एहसास कभी नहीं हुआ बल्कि ऐसा लगा कि पूर्णिमा के चांद की शीतलता चारों तरफ से घेर रही है। मित्रों-रिश्तेदारों सभी को खुले दिल से सहायता करना और भावी पीढ़ियों को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए हर संभव और हर प्रकार से प्रोत्साहन देना उनके स्वभाव में है।


           राजस्थान लोक सेवा आयोग में बार-बार वे साक्षात्कार लेने के लिए जाते, तब आज की सारी समस्याओं पर मुझसे गहरी चर्चा करते और मेरे विचारों से सहमति और असहमति इस प्रकार से व्यक्त करते कि समस्या का कोई नया पक्ष उभर कर आ जाता। सोशल मीडिया पर लिखे गए मेरे विचारों और वीडियो पर उनकी टिप्पणी ऐसी होती कि कबीर साहब का दोहा साक्षात् हो जाता-


गुरु कुम्हार शीष कुंभ है,गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट


अंतर हाथ सहाय दै ,बाहर बाहै चोट।।


                 सेवानिवृत्ति के 10 वर्षों में जितनी किताबें उन्होंने पढ़ीं और जितनी संजीदगी के साथ जीवन को ऊंचाइयां देते गए और साथ वालों को उत्साह और उल्लास से भरते गए, उसे देखकर लगता है कि जीवन जीने की कला आ जाए तो जीवन ज्ञान,प्रेम और आनंद से परिपूरित हो जाता है।


                 एक दिन वार्तालाप के क्रम में शिक्षा जगत के जब हालात मैंने उनको बताए तो उन्हें भी घोर आश्चर्य हुआ। शिक्षा जगत में आज बुद्धिजीवी ढूंढना, ठीक वैसा ही है जैसे बालू में तेल ढूंढना।आज के तथाकथित गुरुओं के पास न ज्ञान बचा,न गौरव और न गरिमा। वे तो विशुद्ध सूचनाजीवी हो गए हैं, न बुद्धिजीवी रहे और न हृदयजीवी।


जो बांटता फिरता था दुनिया को उजाले


उसके दामन में आज अंधेरे ही अंधेरे हैं।


          विश्व गुरु भारत के गुरुओं को आज गड़ेरिया,रसोईया, जनगणनाकर्मचारी,चुनावकर्मचारी, स्कूटीवितरणकर्ता,स्कॉलरशिपवितरणकर्ता और सूचना संवाहक की भूमिका में ऐसा उलझा दिया गया है कि आने वाली पीढ़ियां प्राचीन गुरुओं और आज के गुरुओं की तुलना करेगी तो पता करना मुश्किल होगा कि पैरों के नीचे जमीन है या आसमान है-


फिसले जो इस जगह तो लुढ़कते चले गए


हमको पता नहीं था कि इतना ढलान है


देखे हैं हमने दौर कई अब खबर नहीं


पांवों तले जमीन है या आसमान है।


           शिक्षा जगत की माली हालत सुनकर आई जी साहब को भी गहरा सदमा पहुंचा क्योंकि उन्होंने भी सरकारी स्कूलों से पढ़कर इतना ऊंचा मुकाम पाया था। उनके समय में शिक्षकों का मुख्य काम पढ़ना-पढ़ाना था और शिक्षक की कद्र पूरा परिवार ही नहीं, समाज भी करता था। स्कॉलरशिप वगैरह बांटने का काम समाजकल्याण विभाग करता था। अपनी विशेषज्ञ टिप्पणी देते हुए उन्होंने कहा कि जब तक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भारत का भावी नागरिक तैयार करना था तब तक अध्ययन-अध्यापन प्रमुख बना रहा ; जब से शिक्षा का मुख्य उद्देश्य पार्टी के लिए मतदाता तैयार करना रह गया तब से शिक्षा संस्थानों के माध्यम से चलाए जाने वाले सरकारी योजनाओं की बाढ़ आ गई।


          स्वयं को लक्कड़जीवी कहनेवाले पुलिस विभाग  के मुख से 'नागरिक' और 'मतदाता' वाली बात को सुनकर बुद्धिजीवी की आंखें खुल गई और वह सोचता रह गया कि जो इतनी गूढ़ और गहरी बातें कहे , उसे लक्कड़जीवी कहा जाए या वास्तविक बुद्धिजीवी......???


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹