🌹अप्रैल फूल डे🌹


"मूर्ख बनना या बनाना:कला है या विज्ञान?"


'मेरा नाम जोकर' का जब कभी भी यह गीत सुनता हूं-


'कहता है जोकर सारा ज़माना


आधी हक़ीकत आधा फ़साना


चश्मा उतारो फिर देखो यारों


दुनिया नयी है चेहरा पुराना


अपने पे हंस कर जग को हंसाया


बन के तमाशा मेले में आया'.....


तो सोचने लगता हूं कि शंकराचार्य ने जिस संसार को माया कहा और जोकर जिसे 'आधी हकीकत और आधा फसाना' बता रहा है, उसमें अंतर क्या है?


"April fool day" यूं तो हंसी-मजाक का एक दिवस है, जिस दिन मनोविनोद कर लिया जाता है और रिश्तों को प्रगाढ़ बना लिया जाता है। मजाक ऐसी होती है कि जिसके साथ मजाक किया जाता है, वह भी इसका बुरा नहीं मानता है। और मजाक करने वाली की नीयत भी हर्ट(hurt) करने की नहीं बल्कि हंसी करने की होती है।


लेकिन इसके लिए जरूरी है कि रिश्ते अनौपचारिक हो और गहरे भी।


आज मन की गांठें एक दूसरे के समक्ष खोल कर रख देने वाले रिश्ते दुर्लभ होते जा रहे हैं, जिसके कारण हंसी-मजाक से पूर्ण हल्के-फुल्के जीवन की जगह जीवन बोझिल बनता जा रहा है-


"अब ऐसे भी दिन आने लगे हैं


हम खुद पर तरस खाने लगे हैं।


पहले मन की बात सबसे करते थे


पर आजकल छुपाने लगे हैं।।"


आज जबकि रिश्तों में औपचारिकता शेष रह गई है और गहराई खत्म हो गई है तो April fool day एक नया रूप लेता जा रहा है।


अतिबुद्धिवाद (Cunningness)ने मूर्ख बनाने की एक ऐसी कला ईजाद की है,जिसके लिए कोई विशेष दिन और विशेष समय नहीं होता। शेक्सपियर का कथन था कि-"One cannot fool all the people all the time." अर्थात् सभी लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।


लेकिन आज की राजनीति और अर्थनीति पर गौर करें तो प्रचार के द्वारा एक ऐसा तंत्र खड़ा हो गया है,जिसके आधार पर लोगों को कहीं भी और कभी भी खूब मूर्ख बनाया जा रहा है। जनता के पास विकल्प भी नहीं है कि वो इस मूर्खता के जाल से अछूती बच सके। झूठे आश्वासन देकर और भावनाएं भड़काकर वोट ले लेना, फ्रॉड कॉल या लिंक से अकाउंट को खाली कर देना और बैंकों में जमा जनता का पैसा लेकर विदेश भाग जाना; इससे बड़ा फूल्स बनाने का प्रमाण और क्या चाहिए।


"अप्रैल फूल डे" हम मनाएं या न मनाएं किंतु जीवन का अनुभव बार-बार इसकी गवाही देता है कि अनेक मौके पर हम मूर्ख बनाए गए हैं। फिर भी हम अपने आप को बुद्धिमान माने चले जाते हैं ,जो सबसे बड़ा मूर्खता का सबूत है।


एक बार की बात है-" ट्रेन में बैठकर मैं बिहार जा रहा था और तारीख 1 अप्रैल थी।उस रेल के डिब्बे में एक व्यक्ति जोर-जोर से चिल्ला रहा था कि मक्खी भगाने की अचूक दवा ले लो। हर जगह लोग मक्खी से परेशान होते हैं।उसका जोरदार प्रचार-प्रसार का अभियान सोचने पर मजबूर कर दिया कि इस स्वर्णिम अवसर को क्यों चूकें। परिजन भी आश्चर्यचकित होंगे और खुश होंगे कि ऐसी दुर्लभ दवा कहां पाई।


लगभग सभी ने डिब्बे में उसके प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर दवा खरीद ली। एक छोटी सी पुड़िया में लिपटी उस दवा की कीमत ₹200 थी, जो जरूरत से ज्यादा लग रही थी। एक सज्जन उसे खोलने के लिए उत्सुक हुए तो उसने तुरंत मना कर दिया और कहा कि-


इसे तो आप अपने घर पर ही खोलिएगा और रामबाण प्रभाव को देखिएगा।


घर वालों के लिए मैं कई प्रकार के सामान ले गया था किंतु सबसे बड़ी दिलचस्पी मेरी इस मक्खी भगाने वाली दवा का प्रभाव दिखाने की थी।


जब सब खाने पर बैठे और कुछ मक्खियां भिनभिनाने लगीं तो मैंने तुरंत वह दवा निकाली।


कागज के कई तह में वह दवा लिपटी थी और मैं एक के बाद एक तह हटाता गया। लगभग सात तह हटाने के बाद एक कागज की पुड़िया मिली ,जिस पर लिखा था - मक्खियां भगाने के लिए 'दाहिने हाथ से खाइए और बाएं हाथ को हिलाइए'।


मैं मौन समाधि में चला गया और सभी मेरी ओर एकटक देख रहे थे। घर में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति अवाक् और स्तब्ध दशा में एक तरफ उस प्रचार के प्रभाव को खुली आंखों से देख रहा था और दूसरी तरफ भिनभिनाती मक्खियों को हटाने के लिए अपना बायां हाथ हिला रहा था और दाहिने हाथ से खा रहा था।


घर वाले इस रहस्यमय पुड़िया का राज बार-बार पूछ रहे थे।


किंतु राजनीतिक दलों का मेनिफेस्टो क्या इस रहस्यमय पुड़िया से कुछ अलग है? क्या हम प्रचारतंत्र के प्रभाव में आकर fair and lovely का कारोबार अरबों-खरबों में नहीं पहुंचा दिए?


"अप्रैल फूल डे" में से अप्रैल और डे हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि जीवन का कोई भी क्षण ऐसा नहीं है,जब हम किसी न किसी के द्वारा "Fool" नहीं बनाए जा रहे हैं। लेकिन fool बनाने के लिए जितनी अंतरंगता चाहिए, वह अंतरंगता समाप्त हो गई है। अतः अब मजाक जिंदगी पर भारी पड़ने लगी है-


"मजाक जिंदगी में हो तो बहुत अच्छा


पर मजाक जिंदगी से हो तो बहुत बुरा"


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹