🙏नवसंवत्सर व नवरात्र की शुभकामना🙏


"जागरण की नवरात्रि"


सत्ता की शक्ति को पाने के लिए सारी सीमाएं लांघी जा रही हैं जिसे देखकर लगता है कि यह चुनाव नहीं, एक युद्ध लड़ा जा रहा है। अभिशाप बनते जा रहे चुनावी माहौल में चैत्र नवरात्र का यह शुभ अवसर देवी के विभिन्न रूपों की उपासना और साधना की समझ द्वारा वरदान हो सकता है।


नवरात्रि को असाधारण लोगों ने साधना का शुभ-अवसर माना है।


"या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः"


शक्ति के आह्वान का यह पर्व मां-दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से जुड़ा हुआ है जो बाहरी प्रतीक-मात्र हैं।*


असल बात यह है कि मनुष्य के अंदर ही सारी शक्तियां छुपी हुई हैं। जिन शक्तियों पर ध्यान जाता हैं, वे शक्तियां जागृत होने लगती हैं।


ऐसा लगता है कि आज के युग का ध्यान धन-शक्ति और पाशविक-शक्ति पर सर्वाधिक हैं। अतः जितना धन बढ़ता जा रहा है,उतना ही जगत में अनाचार भी बढ़ता जा रहा है।


आत्मिक-शक्ति की ओर हमारा ध्यान गया ही नहीं। एटम की शक्ति का हमने विनाश तो देख लिया किंतु आत्मिक-शक्ति का हमने सृजन नहीं देखा।


पदार्थ की शक्तियों से विज्ञान ने परिचय कराया और पूरी दुनिया अनेक प्रकार की सुविधाओं से युक्त हो गई। परमात्मा की शक्तियों से परिचय कराने वाला धर्म साधारण लोगों की समझ में जल्दी नहीं आता; अतः सारी सुविधाओं के होते हुए भी आनंद नहीं आया।


आनंद तो आत्मा का गुणधर्म है। आत्मा जितनी दिव्यता और पवित्रता की ओर बढ़ती चली जाती हैं,उतना ही जीवन में आनंद बढ़ता चला जाता है।


नवरात्रि उस आत्मा की शक्ति से परिचय कराकर परमात्मा अर्थात् मां से जोड़ सकती है; क्योंकि मूलशक्तिस्वरूपा मां के बिना जन्म व जीवन संभव ही नहीं हैं। जब सबका मूल एक है तो फिर हम सभी में मां का वो प्रेम और सृजन की शक्ति भी होनी चाहिए जो इन नवरात्रियों में साधना से ही प्रकट हो सकती है।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹