🙏जय भीम,जय हिंद 🙏


'भीम को संविधाननिर्माता बनाने वाले गुण'


प्रतिभा के साथ प्यास मिल जाए तो बाबा साहेब का जन्म होता है। खरगोश में तेज दौड़ने की प्रतिभा थी और कछुए में मंजिल की प्यास थी किंतु 'कछुआ-खरगोश की कहानी' संदेश देता है कि प्यास ,प्रतिभा पर भारी साबित होती है। कछुआ धीमे-धीमे चलता हुआ भी मंजिल तक पहुंच जाता है और तेज दौड़ने वाला खरगोश आलस्य में पड़कर चूक जाता है। प्यास और प्रतिभा दोनों का एकत्र संयोग दुर्लभ है, उसी दुर्लभ संयोग का नाम है बाबासाहेब-


'मकतबे-इश्क ने उन्हें कल जहां तक पहुंचाया,


जमाने-इश्क ने हमें आज कहां तक पहुंचाया ?'


"प्यास" ऐसी कि सारी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद मरुभूमि से ज्ञान के सागर तक पहुंच गए और "प्रतिभा"ऐसी कि विश्व के बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों से बड़ी-बड़ी डिग्रियां प्राप्त की और विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए एक ऐसे संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई जो गीता-कुरान-बाइबिल-गुरुग्रंथ के समान पवित्र दस्तावेज साबित हुआ।


            प्यास और प्रतिभा के साथ व्यक्तित्व को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए परिश्रम और प्रशिक्षण इन दो तत्वों का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। बाबा साहेब दिन-रात परिश्रम करते थे और किताबों से उनका प्रेम ऐसा था कि उनकी निजी लाइब्रेरी में 35000 पुस्तकें थीं। इसके साथ उनके जीवन में प्रशिक्षण देने वाले शिक्षक भी अद्भुत मिले। कहा जाता है कि उनका अंबेडकर सरनेम एक ब्राह्मण शिक्षक के साथ अद्भुत प्रेम का परिचायक है और एक दूसरे शिक्षक ने उन्हें 'टीचिंग्स आफ बुद्धा' नाम की पुस्तक दी जो बाद में उनके जीवन के लिए संजीवनी साबित हुई और उन्होंने ही महाराज गायकवाड से स्कॉलरशिप दिलवाने में भीमराव की मदद की। बड़े-बड़े संस्थानों के समर्पित शिक्षकों के प्रशिक्षण से ही ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण होता है जिसकी एक साथ एक समान रूप से कई विषयों पर अद्भुत पकड़ पैदा होती है।


             आज जब शिक्षा जगत पर विचार करता हूं,खासकर सरकारी शिक्षा जगत पर तो रातों को नींद नहीं आती है। कहीं प्यास है तो प्रशिक्षण नहीं और कहीं प्रतिभा है तो परिश्रम नहीं। पासबुक ने यहां मौलिक पुस्तकों को जिंदगी से बाहर कर दिया है और ट्यूशन-कोचिंग की प्रवृत्ति ने स्वाध्याय को खत्म कर दिया है।


              इससे भी बड़ा हमारा दुर्भाग्य है कि परमात्मा जो अपना अंश महान-आत्मा के रूप में धरती पर भेजता है,उसे जाति, धर्म, क्षेत्र के पिंजड़े में कैद कर लेना चाहते हैं।


         अन्याय के विरुद्ध बाबा साहेब का संघर्ष था और यह अन्याय नए-नए रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होता रहता है। आज शिक्षा जगत की दुर्दशा नई पीढ़ी के साथ सबसे बड़ा अन्याय है क्योंकि जहां जीवन निर्माण किया जाना चाहिए, वहां सिर्फ सूचना निर्माण का काम रह गया है। आज का भीमराव एक घुटन भरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।


                किसी भी देश-काल में आज जहां कहीं भी अन्याय के विरुद्ध जो भी आवाजें उठाई जा रही हैं, उन आवाजों में "श्री भीम राव राम जी आंबेडकर" की आत्मा बसती हैं। वे नए-नए रूप में जन्म ले रहे हैं और उनके जन्मदिवस की सार्थकता इसी में हैं कि आज के आंबेडकर को हम पहचानें और उन्हें अपना यथासंभव सहयोग और समर्थन प्रदान करें।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ सर्वजीत दुबे🙏🌹