🙏वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम-डे की शुभकामना🙏
सच और सुधार का स्वप्न लिए पत्रकारिता ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी स्वतंत्रता की मशाल को प्रज्वलित किया था। आज फिर से इस राष्ट्र को तिलक,गांधी जैसे पत्रकारों की और संपादकों की दरकार हैं ,जो समाज और सत्ता को सच और सुधार के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर सकें। आज की पत्रकारिता और मीडिया पर लिखी मेरी 'भींगी तेल की बाती' शीर्षक कविता में यथार्थ भी है और आदर्श भी है। यथार्थ का कीचड़ चारों तरफ पसरा हुआ है जिसे देखकर बहुत निराशा होती है लेकिन उसके बीच में खिले हुए गिनती के आदर्श के कमल मुझे आशा से भर देते हैं। अंधेरा कितना भी घना हो और पुराना हो ,एक दीपक काफी है उसे मिटाने के लिए और उजाला फैलाने के लिए।पत्रकारिता और मीडिया जगत के उन दीपकों को मेरा सलाम.......
"भींगी तेल की बाती"
समाचार मैं देता नहीं ,समाचार बनवाता हूं
स्वार्थीहिसाब से सदा पब्लिक सोच गढ़वाता हूं।
खबरें जस की तस हों तो मजा कहां आ पाता है,
लोगों के मानस को वो उद्वेलित कहां कर पाता है?
ब्रेकिंग जहां प्राणतत्व है, मानस में छा जाता है
झूठी-मूठी खबरें ही आकर्षक यहां बन पाता है।
बुद्धिजीवियों के गूढ़ विचार को कौन यहां गम पाता है
किसको श्रेय की है कामना, सनसनी यहां जम पाता है।
इसीलिए तत्वदर्शी विचारक हाशिए पर जगह बनाते हैं
नेता,अभिनेता और खिलाड़ी पहले पृष्ठ पर आते हैं।
अधनंगी मॉडलों के कामुक चित्र मंगलाचरण में दिए जाते हैं
आंख खोलते ही मूड फ्रेश हो,ऐसे समाचार ही लोगों को भाते हैं।
स्टिंग ऑपरेशन से पत्रकारिता में और हलचल बढ़ जाती है
बाथरूम की खुली तस्वीर ही मुझको लाइमलाईट में लाती है।
तभी तो नेता से अभिनेता तक डिनर पर मुझे बुलाते हैं
पैसा,पद,प्रतिष्ठा जैसे प्रलोभनों से खूब रिझाते हैं।
कभी पत्रकारिता मिशन थी,आज तो बस कमीशन है
सोशलमीडिया की बढ़ती होड़ में फायदेमंद एंबीशन है।
तिलक-गांधी से संपादकों को तरजीह कहां मिल पाता है
राष्ट्रनिर्माण का स्वप्न लिए यहां अलख कौन जगाता है?
धन पद जहां मूल्य हो, वहां आदर्श कहां टिक पाता है
शाश्वत मूल्यों की खातिर अब सनकी ही जीवन गंवाता है।
ऐसे एक दो दीवाने आज भी ढूंढने से मिल जाते हैं
समाजसुधार की खबरें देकर वालिशे गम सजाते हैं।
भाव ऐसे कि पानी में भी वे आग लगाने जाते हैं
भींगी तेल की बाती हैं,पर चिंगारी कहां वे पाते हैं??
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹