🙏शंकराचार्य जयंती और मदर्स डे की शुभकामना🙏
"कहां अद्वैतवाद, कहां संप्रदायवाद"
'15 मिनट से 15 सेकंड तक' के प्रलाप द्वारा अद्वैतवाद के प्रतिपादक शंकराचार्य के देश में बांटने की राजनीति लड़ाने के मूड में आ गई है। मूल कारण यह भाव है कि हम दो हैं। अद्वैत का अर्थ है कि मूल तत्त्व दो नहीं हैं-न द्वैत इति अद्वैत। सभी में एक ही चैतन्य ब्रह्म है। मां को भी अपनी सभी संतानों में अपना ही रूप दिखाई देता है।
अद्वैतवाद के विपरीत संप्रदायवाद पहले किसी को दूसरा मानता है और इसके बाद उसके साथ संबंध ऐसा बनाता है कि एक की वृद्धि दूसरे के लिए खतरे की घंटी है।
अद्वैत हमारी समझ में नहीं आया।हमारी समझ है कि 'एको अहम् ,द्वितीयो नास्ति'। जब अहंकार ऐसी घोषणा करने लगता है तो समझना कि विवेक खत्म हो गया-
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
शब्द ब्रह्म है। जिस प्रकार से शांत झील में एक छोटा सा कंकर आप डालें तो एक लहर उठती है, वह लहर दूसरी लहर उठाती है और बढ़ते-बढ़ते सारे झील को घेर लेती है। उसी प्रकार से एक शब्द जो बोला जाता है, फैलकर सारे परिवेश को घेर लेता है। अतः विचारणीय प्रश्न है कि कैसा शब्द बोला जाए?
सभी के प्रति मंगल रखने की भावनावाले ऋषि कहते हैं-'सर्वे भवंतु सुखिनः'जैसे शब्द बोले जाने चाहिए। किंतु अमंगल की भावना रखनेवाले कहते हैं कि 15 मिनट या 15 सेकंड के लिए पुलिस हटा दो,फिर देखो क्या होता है? 15 मिनट या 15 सेकंड में भी बहुत कुछ हो सकता है लेकिन विध्वंस ही हो सकता है, निर्माण नहीं-
'ध्वंस बहुत ही सहज मगर निर्माण कठिन है
पतन बहुत आसान मगर उत्थान कठिन है।
समता और विषमता के कोलाहल में
अपने और पराए की पहचान कठिन है।'
यह समझना मुश्किल है कि उकसाने वाले ऐसे लोग अपनी अपनी बिरादरी के दोस्त हैं या दुश्मन।बहुत प्यारी कथा है कि भगवान बुद्ध जब अंगुलीमाल के सामने गए तो उन्होंने कहा कि क्या तू पेड़ की एक डाली तोड़ सकता है? अंगुलिमाल ने तो क्षण भर में एक नहीं कई डाली तोड़ दी। बुद्ध ने कहा कि क्या तू इसे जोड़ सकता है? अब अंगुलीमाल अवाक् रह गया। तोड़ने की कला तो आती थी किंतु जोड़ने की कला बहुत दुर्लभ लोगों को उपलब्ध होती हैं।
कोई गांधी,कोई पटेल,कोई सुभाष,कोई कलाम अपनी त्याग-तपस्या से वर्षों की मेहनत कर आधुनिक भारत के लोगों को जोड़ पाते हैं। किंतु हेट स्पीच वाले लोग अपनी जहरीली वाणी से एक धर्मावलंबी को दूसरे धर्मावलंबी से तोड़ने में कामयाब हो जाते हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि हिरोशिमा पर एटम बम गिराने वाले को कुछ सेकंड ही लगा था जिसमें लाखों लोग मर गए थे लेकिन एटम बम बनाने वालों ने सदियों की मेहनत से उसे बनाया था और निर्माण के उद्देश्य से बनाया था।
किसी भी धर्म,जाति या समूह को आगे ले जाने की कामनावाला सदैव निर्माण की वाणी बोलेगा क्योंकि उसके जीवन में प्रेम होता है। किंतु जो नफरत में पला होता है वो प्यार नहीं जानता-
तड़पता आदमी सब्रो-करार क्या जानें
जो नफरतों में पला हो वो प्यार क्या जानें।
दिलों के बीच में उठती दिखाई देती हैं
उठाई तुमने कि हमने दीवार क्या जानें?
तोड़ने की बात करने वालों को एक बात याद रखनी चाहिए कि दंगा फसाद शुरू करना अपने वश में होता है किंतु उसका अंत करना फिर किसी के वश में नहीं रह जाता। क्रिया-प्रतिक्रिया में कई पीढ़ियां बर्बाद हो जाती हैं। रूस यूक्रेन और हमास इजरायल युद्ध की सीख यही है कि 'लम्हों ने खता की,सदियों ने सजा पाई'. और सबसे ज्यादा सजा स्त्रियां और बच्चे भुगतते हैं जिनका इस दंगे- फसाद से कोई वास्ता नहीं होता।
आज का युद्ध संख्या बल पर नहीं लड़ा जा रहा है बल्कि नए-नए शस्त्रास्त्रों के बल पर लड़ा जा रहा है जिसकी मारक क्षमता असीमित हो गई है।
ऐसे में जरूरत है ज्ञान के शिखरपुरुष शंकराचार्य के अद्वैतवाद को समझने की,जो सबमें उसी एक परम तत्व को देखता है और साथ ही जिन्होंने 'भज गोविंदम्' लिखकर सबको प्रेम और भक्ति द्वारा जोड़ने का संदेश दिया है। ज्ञान की आंखें हों और भक्ति का पैर हो तो सभी उसी एक मंजिल को पहुंच जाते हैं,जहां पहुंचे बिना सच्चिदानंद का साक्षात्कार नहीं होता और परमात्मा साकार नहीं होता।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे
मदर्स डे और शंकराचार्य जयंती की शुभकामना🙏🌹