संवाद


"महत्त्वाकांक्षी पैरेंट्स,भटकती पीढ़ी"


कोटा-कोचिंग-आत्महत्या और पुणे-पोर्श-कार एक्सीडेंट ने जेनरेशन गैप को अति पर ला दिया है। अति हर चीज की बुरी होती है और 'Excess of everything is bad' के परिणाम अब नियमित अंतराल पर सुर्खियां बने रहते हैं।एक तरफ पैरेंट्स बच्चों को अपने महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का साधन बनाकर फांसी लगाने पर मजबूर कर रहे हैं तो दूसरी तरफ ऐसे भी पैरेंट्स हैं जो अपने लाड़ले की मन की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उसके शराब पार्टी का भुगतान कर रहे हैं और महंगी कार देकर जीवन को जहन्नुम में पहुंचा रहे हैं-


'तू  जिसे जिंदगी समझता है


वह तेरी मौत का बहाना है


बेवफाई तूने खुद से की है


बात यह दुनिया से छुपाना है।'


       'सॉरी पापा,मैं आपके सपनों को पूरा नहीं कर सका/सकी'...लिखकर दुनिया से जानेवाले और दूसरी तरफ शराब पीकर दूसरों की जान लेनेवाले में कोई विशेष अंतर नहीं है। दोनों प्रकार के पैरेंट्स को अपने बच्चों से प्रेम नहीं है, उनके लिए समय नहीं है। महत्वाकांक्षा थोपना या मनमर्जी करने देना; दोनों ही आखिरी छोर हैं जो संकेत देता है कि पैरेंट्स और बच्चों के बीच की दूरियां बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। कम्युनिकेशन गैप जिस मात्रा में बढ़ता जाता है,उसी मात्रा में जेनरेशन गैप की खाई चौड़ी हो जाती है।


              बच्चों की रुचि को जाने बिना डॉक्टर या इंजीनियर बनाने का दबाव उतना ही खतरनाक है जितना बच्चों को कुछ भी करने की खुली छूट दे देना। ऐसी समस्या तो समाचारपत्रों में और सोशल मीडिया में सुर्खियां बन जाती हैं और ऐसा लगता है कि सारे पैरेंट्स अपनी महत्वाकांक्षा या मनमर्जी की बलिवेदी पर नई पीढ़ी को कुर्बान कर रहे हैं किंतु मेरी नजर में कुछ ऐसे भी पैरेंट्स हैं जिन्होंने ऐसी समस्या का अद्भुत समाधान प्रस्तुत किया है।


               मेरे एक रिश्तेदार हैं,उनके पांच बच्चे हैं। एक शिक्षक की कमाई से पांच बच्चों का परिवार कैसे पले और आगे बढ़े और वह भी जयपुर जैसे बड़े शहर में, यह सोचकर किसी का भी दिमाग खराब हो जाता था। लेकिन शिक्षक बहुत संघर्षशील,मिलनसार और अपने बच्चों को लगातार समय देनेवाले थे। घर में पढ़ाई का माहौल हो,इसके लिए वह शिक्षक स्वयं किसी रुचि के विषय में डिग्री लेने के लिए फार्म भरते और बच्चों के साथ पढ़ाई करते। शिक्षक-पत्नी दिन रात बच्चों की देखभाल में और प्रेमपूर्ण माहौल बनाने में लगी रहती। जब कभी भी मैं उनसे मिलने गया तो छोटे से घर में किसी ऋषि कुटिया में आने का आभास पाया।


             कम जगह होने पर भी सब मिलकर पढ़ते और बहुत प्रेम से जीवन की समस्याओं को मिलकर तथा समझकर समाधान करते। किसी महंगे स्कूल में या किसी महंगी कोचिंग में बच्चों को भेजने के लिए उस शिक्षक के पास पर्याप्त पैसा नहीं था, किंतु सदैव बच्चों की समस्याओं को समझने के लिए और प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन देने के लिए उनके पास कभी समय का अभाव भी नहीं था। बड़ा परिवार आज बोझ माना जाता है किंतु उस घर के प्रेमपूर्ण माहौल ने पांचो बच्चों को इतना योग्य बना दिया है कि वह बड़ा परिवार बड़ी शक्ति बन गया है। वे बच्चे मिलजुलकर ऐसे स्टार्टअप चला रहे हैं कि जिसमें सैकड़ो कर्मचारी काम कर रहे हैं। उनके एक बच्चे को भारत के प्रधानमंत्री ने इजराइल के प्रधानमंत्री से दिल्ली में परिचय करवाया कि यह बच्चा मूक-बधिरों की आवाज को अभिव्यक्त करनेवाला उपकरण बनाया है।


              उनके इनोवेटिव आईडियाज और सामूहिक प्रयास का मैं कायल हूं। बच्चों को अच्छी परवरिश देकर योग्य स्थानों पर पहुंचाने वाले वे शिक्षक आज समाज सेवा के काम में भी अग्रणी है। मुझे लगता है कि मस्तिष्क में गहरी समझ हो और हृदय में गहरा प्रेम हो तो पहले परिवार का वातावरण बदलता है और फिर समाज का वातावरण भी बदलने लगता है।


            ऐसे और भी पैरेंट्स हैं जिन्होंने अपने बच्चों को न तो अपनी महत्वाकांक्षा का माध्यम बनाया और न ही मनमर्जी करने की खुली छूट दी। वे अपने बच्चों के साथ छाया की तरह लगे रहते हैं-तू जहां-जहां चलेगा,मेरा साया साथ होगा , ऐसी भावना के साथ।उनके बच्चे भले ही न तो टॉप करके विख्यात होते हैं और न ही कोई एक्सीडेंट करके कुख्यात होते हैं; इसलिए समाचारपत्रों और सोशल मीडिया में चर्चा के विषय नहीं बनते‌।


लेकिन जीवन में ऐसे पैरेंट्स को मैं आम चर्चा का विषय बनाना चाहता हूं जो अच्छे इंसान और अच्छे नागरिक तैयार करने में सफल हुए हैं। ताकि यह संदेश जाए कि सात्विक प्रवृत्ति वाले ऐसे लोग भले ही चुटकी भर नमक के समान हैं किंतु उनके कारण यह जीवन रूपी व्यंजन बहुत ही स्वादिष्ट हो जाता है।


              महत्वाकांक्षा की अति जब खुद मरने पर मजबूर कर रही है और मनमर्जी की अति जब दूसरे को मारने का कारण बन रही है तो बुद्ध के मध्यम मार्ग को स्मरण करना जरूरी हो गया है। विलासिता में पला हुआ एक राजकुमार जब उनका शिष्य बना तो अन्य सारे भिक्षुओं को तपस्या में भी उसने पीछे छोड़ दिया। लेकिन अतिशय की साधना के कारण उसका सुंदर शरीर जर्जर होकर कुरूप हो गया। तब बुद्ध ने उससे कहा कि श्रुण! भिक्षु बनने से पहले तू बहुत अच्छी वीणा बजाता था। एक बात बता कि वीणा के तार यदि ढीले हों तो क्या वीणा से आवाज आएगी? उसने कहा-नहीं। तो बुद्ध ने दूसरा प्रश्न पूछा कि यदि  वीणा के तार ज्यादा कसे हों तो क्या वीणा से आवाज आएगी? उसने कहा-नहीं,तार टूट जाएंगे।


           महत्वाकांक्षा और मनमर्जी के अतिशय से टूट रहे जीवन वीणा को साधने के लिए मध्यममार्ग को जीवन में अपनाए जाने की जरूरत है। इस मध्यम मार्ग को अपनाकर जीवन रूपी वीणा से सुंदर संगीत निकालने वाले पैरेंट्स और बच्चों को भी लाइमलाईट में लाना जरूरी है ताकि समस्या का समाधान सबको दिखाई दे-


'दूर तम के पार से यह कौन मेरे पास आया


नींद में सोए हुए संसार को किसने जगाया


कर गया है कौन भिनसार,वीणा बोलती है


छू गया है कौन मन के तार,वीणा बोलती है।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹