संवाद:बांसवाड़ा जनजातीय विश्वविद्यालय की उत्तरपुस्तिकाओं में लिखे उत्तर को देखकर हर परीक्षक हतप्रभ है। अनेक परीक्षकों के अनुरोध पर और अपने अनुभव के आधार पर यह लेख लिखा जा रहा है-
"अनमोल मंगलसूत्र है शिक्षा"
आजकल मंगलसूत्र का नाम आते ही सबको बांसवाड़ा ध्यान में आता है और दूसरों के द्वारा छीना जानेवाला मंगलसूत्र ही ध्यान में आता है। मैं बांसवाड़ा की धरती से उस शिक्षारूपी मंगलसूत्र की बात कर रहा हूं जिसे न राजा छीन सकता है और न चोर चुरा सकता है-
न चौरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥
भारतीय संस्कृति के दृष्टिकोण में सर्वोत्तम मंगलसूत्र 'शिक्षासूत्र' है। वसुधैव कुटुंबकम्, ईशावास्यमिदं सर्वं,सर्वं खल्विदं ब्रह्म, सत्यमेव जयते, सत्येन रक्ष्यते धर्मो... जैसे अनेक मंगल-सूत्रों से भारतीय मनीषा ने अंधकारपूर्ण जीवन को ज्योतिर्मय किया है।
शिक्षा लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था। किंतु छ: चरण बीत जाने पर भी उस शिक्षारूपी मंगलसूत्र पर गूढ़-गंभीर सार्वजनिक चर्चा नहीं की गई।
नागरिक के रूप में और उससे भी बढ़कर एक शिक्षक के रूप में मेरा कर्त्तव्य बनता है कि जनजातीय विश्वविद्यालय बांसवाड़ा की उत्तर पुस्तिकाओं को जांचते समय जो परीक्षकों का सत्य-अनुभव है, उसे सबके समक्ष लाऊं। क्योंकि सत्य से बढ़कर समाधान का और कोई रास्ता ही नहीं होता।
हर परीक्षक को ऐसा लगता है कि पूछे गए प्रश्न और विद्यार्थियों द्वारा दिए जाने वाले उत्तर में कोई तालमेल ही नहीं है। यहां के विद्यार्थियों ने कॉलेज आना ही नहीं छोड़ दिया है बल्कि घर पर परीक्षा के लिए भी पढ़ना छोड़ दिया है। इसी कारण अब तो हनुमान चालीसा,राम भजन और फिल्मी गाना भी बहुत सारी पुस्तिकाओं में मिलने लगे हैं, जो प्रायः हड़प्पा लिपि में लिखे गए लगते हैं।
90% विद्यार्थी ऐसे हैं,जिनको उत्तीर्णांक देना शिक्षकीय-धर्म के साथ नाइंसाफी लगता है। लेकिन एक दो उत्तरपुस्तिका ऐसी भी मिल जाती हैं, जिसमें 90% से कम अंक देना भी शिक्षक को नाइंसाफी लगती हैं।
रात बहुत अंधेरी हैं लेकिन एक दो टिमटिमाते सितारों को देखकर शिक्षक सोच में पड़ जाता है कि शिक्षा रूपी तालाब में चारों तरफ पसरे हुए कीचड़ को देखें या उसमें खिले हुए एक दो कमल की ओर देखें। शिक्षा का मंगल-सूत्र यह कहता है कि प्राचीन जमाने के अंबेडकर,कलाम और आधुनिक जमाने के सोमनाथ,कल्पना जैसे एक दो कमल की ओर देखो। लेकिन एक विचार यह भी आता है कि यदि माली ने हजारों पौधे लगाए हों ,उसमें से एक दो फूल ही खिले तो क्या इसे सफलता माना जाएगा?-
'एक फूल का खिल जाना ही उपवन का मधुमास नहीं है
बाहर घर का जगमग करना भीतर का उल्लास नहीं है।'
प्रतिभा,प्यास,प्रशिक्षक की बदौलत एक अंबेडकर प्रतिकूल परिस्थिति में भी अद्भुत मनोनुकूल सफलता प्राप्त कर लेते हैं किंतु लोकतंत्र कहता है कि बहुमत की ओर देखो।
अधिकतर शिक्षा-संस्थान शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं और उपलब्ध शिक्षकों को गैर-शैक्षिक कार्यों में जोत दिया गया है। इस कारण 10% विद्यार्थी ही क्लास में आ रहे हैं। ऐसे में 90% विद्यार्थी यदि फेल करने लायक उत्तर लिख रहे हैं तो दोष किसका है?
80 करोड़ लोगों को राशन देकर और कई प्रकार की मुफ्त योजनाएं चलाकर लाभार्थी बनाया जा सकता है तो उत्तम विद्यार्थी बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण-शिक्षा सभी के लिए क्यों उपलब्ध नहीं कराई जा सकती?
सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में विद्यार्थियों को पास करके डिग्री दे देने के कारण ही आज Ph.D वाले भी Peon बनने के लिए आवेदन करते हैं।
जो मेधावी विद्यार्थी हैं, उन्हें भी जीवन में कोई आशा की किरण नहीं दिखाई देती। विश्वविद्यालयों के टॉपर्स और गोल्डमेडलिस्ट दस-दस सालों से नौकरी पाने के लिए परीक्षा दे रहे हैं। समय पर परीक्षा ही नहीं होती, परीक्षा होती है तो पेपर लीक हो जाता है और परीक्षा परिणाम आता है तो धांधली हो जाती है।
ऐसी अव्यवस्था के कारण घनघोर निराशा में अभी-अभी एक मेधावी विद्यार्थी ने आत्महत्या कर ली क्योंकि नौकरी की उम्र खत्म होने को थी और उसकी शादी भी हो चुकी थी। सम्यक्-शिक्षा और सही व्यवस्था के अभाव में मंगलसूत्र भी कहां सुरक्षित रह पाता है? एक होनहार की आत्महत्या की खबर सुनकर मेरे हृदय के भाव शब्दों में कुछ यूं उतरे-
"पूरे खानदान में एकमात्र नौजवान बेटा था
रोजगार पाने को सारी शक्तियां समेटा था।
किंतु निकले रिजल्ट में उसका कहीं नाम नहीं था
बरसों की गई तपस्या का,कोई परिणाम नहीं था।
निराशा में वह सेल्फोस की गोली खाकर सो गया
सुसाइड नोट में शिक्षा पर हृदय का उद्गार बो गया।
जहां शिक्षक नहीं मिलते और परिणाम नहीं मिलता
वहां दिल को कभी सुकून व आराम नहीं मिलता।।"
ज्ञानप्रधान भारतीय संस्कृति की आधुनिक-शिक्षाव्यवस्था की दुर्दशा देखकर कौन होगा जो विश्वगुरु बनने का सपना देखे?
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹