संवाद


"लोक और तंत्र पर ध्यान"


'ध्यान' धर्मप्रधान भारत का सबसे पवित्र शब्द है ‌ किंतु "राजनीति" चीज ऐसी है कि ध्यान  को भी विवादित बना देती है।मतदान का आज आखिरी चरण है, अब सातों चरणों में लोक और तंत्र द्वारा निर्वाह की गई भूमिका पर ध्यान किया जाना चाहिए-


'जाना कहां है तुमको जरा ध्यान तो करो


यारों सफर का कुछ सरो-सामान तो करो।'


            राजतंत्र से लोकतंत्र इसलिए बेहतर है क्योंकि नेतृत्व करने वाला वंश-परंपरा से नहीं होता बल्कि जनता द्वारा चुना जाता है।


'राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्ठा:पापे पापा:समे समा:


राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजा:।'


             राजतंत्र के जमाने में लिखे संस्कृत के इस श्लोक में कहा गया है कि 'जैसा राजा होगा,वैसी प्रजा होगी'।किंतु लोकतंत्र में नेता वैसा ही होगा, जैसी जनता होगी।    


                 हमारा लोकतंत्र जितना पुराना होता जा रहा है,उतना ही परिपक्व होने के स्थान पर प्राणहीन होता जा रहा है। दुष्यंत कुमार सही कहते हैं कि-


'मूरत संवारने में बिगड़ती चली गई


पहले से हो गया है जहां और भी खराब


रौशन हुए चराग तो आंखें नहीं रहीं


अंधों को रोशनी का गुमां और भी खराब।'     


                    इस चुनाव का मुख्य मुद्दा 'लोकतंत्र खतरे में' इसीलिए बन सका क्योंकि आज तक मतदाता और नेता के लिए किसी विशेष योग्यता का निर्धारण नहीं किया गया है।मतदाताओं के लिए सिर्फ 18 वर्ष और  नेता बनने के लिए सिर्फ 25 वर्ष का होना पर्याप्त है। उम्र से योग्यता का कोई संबंध नहीं है। इसी कारण लगभग आधे मतदाता अपने मतदान के कर्त्तव्य का उपयोग ही नहीं करते हैं और चुने जाने के बाद अधिकतर नेता अपने मतदाताओं या विचारधारा के प्रति वफादार नहीं रहते हैं।


                     अब समय आ गया है कि नेताओं के लिए ही नहीं बल्कि मतदाताओं के लिए भी योग्यता का विशेष मापदंड निर्धारित हो।


           लोकतांत्रिक-गुण को दरकिनार करके जाति,धर्म के आधार पर जब तक मतदाता मतदान करेंगे तब तक उन्हें विचारधारा छोड़कर पार्टी बदलने वाले नेता मिलते रहेंगे और  'अंधे अंधा ठेलिया,दोनों कूप पड़ंत' वाली कहावत चरितार्थ होती रहेगी।


               2024 लोकसभा चुनाव की तिथि की घोषणा करते समय मुख्य-चुनाव-आयुक्त ने कहा था कि लेवल प्लेइंग फील्ड सबके लिए समान हो, इस हेतु 4 एम के आधार पर हम इस चुनाव की सफलता या असफलता का निर्धारण करेंगे-१.मोरल कोड ऑफ़ कंडक्ट,२.मिसइनफॉरमेशन,३.मनी पावर और ४.मसल पावर।       


           १.मोरल कोड ऑफ़ कंडक्ट का कितना पालन किया गया है, यह इससे ही पता चलता है कि लंबे  चुनावी शोर से वातावरण कोलाहलपूर्ण ही नहीं,कलहपूर्ण भी हो गया है। टीवी और सोशल मीडिया पर नेताओं की बहस और भाषण में आक्रामकता और कटुता भरी हुई थी।


             २. मिसइनफॉरमेशन से डीप फेक के जमाने में बच पाना बहुत मुश्किल है।फेक-वीडियो के आधार पर सभी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की ऐसी झड़ी लगा देते हैं, जिससे वातावरण उन्मादग्रस्त हो जाता है।


               ३.मनी पावर का प्रभाव जब्त किए गए धनराशि से ही पता नहीं चलता बल्कि वोट देने के बाद किए गए वादे के अनुसार नोट नहीं दिए जाने पर मतदाताओं द्वारा प्रतिनिधियों के घेराव से भी उसकी झलक मिलती है।


                 ४. मसल पावर का खुलेआम प्रयोग आज के तकनीक प्रधान युग में संभव नहीं है किंतु इसकी शिकायतें बताती हैं कि प्रवृत्ति गायब नहीं हुई है। नेता जाति और धर्म के आधार पर लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध उकसा देते हैं और बूथ तक पहुंचने में कई चुनौतियां पेश करते हैं।


               अंतिम चरण का मतदान खत्म होते ही बाहर का शोर कुछ कम हो जाएगा और जनता भी जनार्दन नहीं रह जाएगी। लेकिन अंदर का शोर बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा और चुने हुए नेता भगवान के रूप में प्रतिष्ठित हो जाएंगे।


           उनको अपने पाले में मिलाकर सरकार बनाने की जो कवायद होगी, उससे वातावरण ऊपर से भले शांतिपूर्ण लगे किन्तु अंदर ही अंदर लावा सुलग रहा होगा। किसी भी समय कोई भी ज्वालामुखी का विस्फोट होगा और पूरा वातावरण अशांति से भर जाएगा।


           किसी भी तंत्र की सफलता उसमें भाग लेने वाले सभी पक्षों के गुण या योग्यता पर निर्भर करती है। गुण या योग्यता आती है शिक्षा से।अतः शिक्षा जितनी गुणवत्तापूर्ण होगी,हमारा लोकतंत्र भी उतना ही गुणवत्तापूर्ण होगा।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे 🙏🌹