संवाद


'रामकृपा पक्ष पर भी विपक्ष पर भी'


एग्जिट पोल के बाद जो चुनाव परिणाम आया है,उसे एक वाक्य में कहना हो तो हृदय से अभी यही निकल रहा है कि भगवान ने मान सभी का रखा , पर अभिमान किसी का नहीं। सिर्फ बुद्धि के द्वारा अस्तित्व को जो मैनेज कर लेना चाहते हैं ,उनके लिए अस्तित्व का यह संदेश है कि बुद्धि एक बहुत छोटा यंत्र है। 'तंत्र' ने जो भी दावा किया और मीडिया ने जो दिलोदिमाग में बिठाने का प्रयास किया,उसे "लोक" ने धता बता दिया।


                   क्या कोई सोच सकता था कि अयोध्या के आसपास के सीटों पर भी प्रभु श्री राम की  कृपा नहीं होगी और हनुमान की भक्ति करने वाले केजरीवाल के प्रति सहानुभूति की लहर होने के बावजूद दिल्ली में सभी सीटों पर चुनाव परिणाम कुछ और रंग दिखाएगा? पश्चिम बंगाल में संदेशखाली के बाद भी ममता दीदी इतना भारी पड़ जाएंगी और बिहार में तेजस्वी का जादू जनसभा में दिखने वाले सैलाब के बावजूद वोटो में उतना तब्दील नहीं होगा ; यह सब देखकर मालूम पड़ता है कि मनुष्य के परिश्रम से ही सब कुछ निश्चित नहीं होता, परमात्मा का प्रसाद भी चाहिए।


                 सिर्फ परिश्रम पर और बुद्धि पर भरोसा अहंकार को बढ़ाता है; अतः कोई भी मनुष्य या मैनेजमेंट जब ज्यादा दावा करने लगता है तो ऊपर से एक आवाज आती है कि सब कुछ तेरे वश में नहीं है। यह ऊपर की आवाज विनम्र भी बनाती है और वक्त की अहमियत भी बताती है। यह ऊपर की आवाज बहुत धीमी भी होती है पर बहुत प्रभावी भी होती है। यह ऊपर की आवाज यदि सुनाई पड़ जाए तो कटुता और छल-प्रपंच से भरी हुई राजनीति से राहत मिल जाए। यह ऊपर की आवाज इस चुनाव परिणाम के रूप में तुलसी बाबा के शब्दों में कह रही है कि


'रामचंदु पति सो वैदेही ,सोवत मही विधि बाम न केहि


सियरघुवर कि कानन जोगु,करमप्रधान सत्य कह लोगु।'


                      चुनाव में नेता हों या कार्यकर्ता उन्हें तो सबके समर्थन की अपेक्षा रहती है। आज का विरोधी कल आपका समर्थक हो सकता है। राजनीति में कोई अछूत नहीं है क्योंकि बहुमत से सब कुछ निर्धारित होता है। इसलिए ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले बाद में सबके साथ के मंत्र का जाप करने लगते हैं। ऐसे में मूल्यों की राजनीति करने वाले उदार नेता की छवि ऊंचाई पर जाने में बहुत सहायक होती है।


                   जीत में दी गई प्रतिक्रिया भी उतना ही महत्त्व रखती है,जितना महत्त्व हार में दी गई प्रतिक्रिया रखती है-


'सृष्टि है शतरंज, और हैं हम सभी मोहरे यहां पर


शाह हो पैदल कि सब पर वार सबका है बराबर।


फूल पर हंसकर अटक तो शूल को रोकर झटक मत


वो पथिक! तुझ पर यहां अधिकार सबका है बराबर।'


                   सार्वजनिक जीवन में आपके द्वारा बोले गए वाक्य ही नहीं,आपके व्यवहार और भावभंगिमा को भी बहुत दिनों तक याद रखा जाता है। इस चुनाव परिणाम के बाद तो सत्तापक्ष पर जितनी निगाहें लोगों की लगी हुई हैं ,उससे भी ज्यादा विपक्ष पर लगी हुई हैं।


                कुछ चीजें तो  वश में होती है लेकिन बहुत सारी चीज़ें  वश में नहीं रहती है।जो अपने वश में होती है वह बहुत छोटी चीज है और जो अपने वश में नहीं है,वह बहुत विराट है लेकिन अदृश्य है। उस विराट अदृश्य में आपकी जीत में भी हार छुपी होती है और हार में भी जीत। इसको महाभारत के उस प्रसंग से समझा जा सकता है, जिसमें घटोत्कच के मारे जाने के बाद पांडव रो रहे थे किंतु कृष्ण हंस रहे थे ; दूसरी तरफ दुर्योधन खुशी में जयघोष कर रहा था किंतु घटोत्कच को मारने वाला कर्ण किसी अनिष्ट की चिंता में पड़ गया था-


हारी हुई पांडवी चमू में हंस रहे भगवान थे


पर जीतकर भी कर्ण के हारे हुए से प्राण थे।


             इस चुनाव परिणाम में जिसे जीत मिली है उसके चेहरे पर हार की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है और जिसे हार मिली है उसके चेहरे पर जीत की चमक साफ दिखाई दे रही है। इस चुनावी परिणाम का यह विचित्र खेल कुछ समझ नहीं आ रहा है। सारा खेल अपेक्षाओं का है।


              अतः "जो हो रहा था ,अच्छा हो रहा था ;जो हो रहा है,अच्छा हो रहा है ; जो होगा,अच्छा होगा" इस महावाक्य पर ध्यान करते हुए.....  तुम्हारी भी जय  जय ,हमारी भी जय जय.......के गीत से पूरे वातावरण को गूंजायमान होने दें।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹