संवाद
'फ़लसफ़ा मौत से आंख मिलाने का'
मुंबई के स्टूडेंट मौलिक पटेल की सोच और संघर्ष इतना प्रेरणा से भरा हुआ है कि कोई भी कलमकार अपने कलम को रोक नहीं सकता। थोड़े से अंधकार में अपने जीवनदीप को सदा के लिए बुझा देने वाले युवाओं के लिए मौलिक-दीप कहता है कि मेरे गहन अंधकार के क्षण को देखो और उसमें से गुजर रहे मेरे मन को देखो-
'निविड़ अंधेरों में मुझे कुछ सुनाई दिया
अंदर में कोई जलता दिया दिखाई दिया।'
11वीं क्लास के महत्वपूर्ण समय में 2022 में यूरिनेशन में दर्द के कारण जांच कराने पर सोनोग्राफी में ट्यूमर और बायोप्सी जांच में कैंसर निकला।
मेरी आंखों के सामने एक तरफ 12वीं बोर्ड की परीक्षा और नीट की परीक्षा थी, दूसरी तरफ कैंसर की हौंसला तोड़ देने वाली बीमारी के रूप में जीवन की परीक्षा भी सामने खड़ी थी। परिवार में इकलौता भी था और जीवन पर आई मुसीबत के पार जाने के लिए सबके साथ रहने के बावजूद अकेले ही मुझे लड़ना था। दीर्घ अवधि वाली कैंसर की कीमोथेरेपी और उसका दर्द कोई भी बांट नहीं सकता था, उसके बीच में जीवन लक्ष्य को पाने के लिए पढ़ाई पर एकाग्र रहने का संकल्प भी बाहर से नहीं मिल सकता था।
इलाज के दौरान अधिकतर समय अस्पताल में डॉक्टर से मिलने के लिए अपनी बारी के इंतजार में व्यतीत होता था, लेकिन उस इंतजार के पल में भी मैं अपना ध्यान अपनी किताबों पर लगाए रखता था। दवाओं का अंबार, जांच की बारंबरता और रिपोर्ट के उतार-चढ़ाव वाली खबर के बीच भी मैंने अपनी निगाहें अर्जुन की तरह मछली की आंख पर लगा रखी थी।
बार-बार दी जाने वाली कीमोथेरेपी के कारण मुझे ऑनलाइन पढ़ाई पर उतरना पड़ा और मॉक टेस्ट की शरण लेनी पड़ी। इलाज की सघनता और गंभीरता के कारण एक साल बोर्ड और नीट परीक्षा नहीं दे सका।बीमारी की जिद थी कि वो मुझे तोड़ देगी लेकिन अंतरात्मा की आवाज आती थी कि हार-थककर वो मुझे एक दिन छोड़ देगी। एक तरफ ट्यूमर के दो दो बड़े ऑपरेशन और दूसरी तरफ 23 कीमोथेरेपी से गुजरते हुए मैं अंदर बुझते हुए और टिमटिमाते हुए जीवनदीप को गौर से देख रहा था और सोच रहा था-
'चारा नहीं कोई जलते रहने के सिवा
सांचे में फ़ना के ढलते रहने के सिवा
ऐ शमा! तेरी हयाते फ़ानी क्या है
झोंका खाने और संभलते रहने के सिवा।'
अंततः मेरे संघर्ष और सोच को सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रसाद मिला।एक तरफ मैं कैंसर से भी जीता और दूसरी तरफ बोर्ड परीक्षा और नीट परीक्षा में भी जीता। मुझे महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड की परीक्षा में 94.67% अंक प्राप्त हुए और नीट की परीक्षा में 720 में से 715 अंक प्राप्त हुए। अब मैं केवीएम हॉस्पिटल मुंबई से एमबीबीएस करना चाहता हूं और औन्कोलोजिस्ट बनना चाहता हूं ताकि कैंसर के किसी भी मरीज को अपनी विशेषज्ञता के साथ अपने अनुभव और संवेदना से सर्वोत्तम सेवा दे सकूं।
'जिंदगी में जो कुछ भी हो,मैं हार नहीं मानता'-मेरी जिंदगी का यह फ़लसफ़ा किसी के भी माध्यम से सभी तक पहुंच सके तो हमारी उम्र के हमारे बहुत सारे साथी यह जरूर सोचेंगे कि यदि मौलिक ऐसा कर सकता है तो मैं क्यूं नहीं?
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹