🙏योग दिवस की शुभकामना🙏
'क्या हम योगभ्रष्ट हो चुके?'
योग-विज्ञान को जन्म देने वाला भारत योग से बहुत दूर चला गया। शिक्षा और परीक्षा की वर्तमान स्थिति को देखकर पतंजलि की आत्मा रोती होगी। शिक्षालय सिर्फ डिग्री बांटने के केंद्र बन कर रह गए और परीक्षा धन-पद पाने का गोरखधंधा।
पतंजलि ने योग के आठ अंगों में से सबसे पहले 'यम' की चर्चा की है। सत्य,अस्तेय,अपरिग्रह, अहिंसा,ब्रह्मचर्य रूपी 'यम' जिसके जीवन में आ जाए और जो शौच,संतोष,स्वाध्याय,तपऔर ईश्वरप्रणिधान रूपी 'नियम' का पालन करे ; वहीं तीसरे अंग 'आसन' में प्रवेश कर सकता है।
आज आसन-प्राणायाम करते हुए करोड़ों लोग टीवी पर दिखाई देंगे लेकिन उसमें से कितने लोग ऐसे होंगे जो यम-नियम का पालन करके आसन-प्राणायाम में प्रवृत्त हो रहे हैं। धन-पद-यश प्राप्त लोगों ने यम-नियम से दूर होकर एक ऐसी दुनिया बनाई है जिसमें नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इसी का परिणाम है कि मां-बाप अपने बेटों के लिए पेपर खरीद रहे हैं और शिक्षक उस पेपर को सॉल्व कर रहे हैं और अधिकारिगण इसको अंतिम अंजाम तक पहुंचा रहे हैं।
एक ऐसी दुनिया बन गई है जिसमें अनैतिक तरीके से जीने वाले लोग सफल हो रहे हैं और नैतिक तरीके से परिश्रम करने वाले हाथ मलते रह जा रहे हैं। फिर ऐसे समाज में 'योग दिवस' के प्रचार प्रसार के बावजूद अवसाद,आत्महत्या जैसी समस्याएं बढ़ेंगी ही बढ़ेंगी। क्योंकि अनैतिक रूप से सफल अपने पद के साथ न्याय नहीं कर पाएगा और नैतिक रूप से परिश्रम करने वाला अपनी असफलता की स्थिति के साथ चैन से जी नहीं पाएगा। तब कल्याण जी आनंद जी की कलम से निकला हुआ 'गोपी' फिल्म का यह गीत बहुत याद आएगा-
'रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आएगा
हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खायेगा।'
शिक्षा और परीक्षा का उद्देश्य ही यह था कि शिक्षा द्वारा योग्यता को पैदा किया जाए और उसके बाद परीक्षा द्वारा उसे सेवा करने का अधिकार दिया जाए अर्थात् अधिकारी बनाया जाए। लेकिन हमने जो शिक्षा दी उससे योगी नहीं पैदा हुए और नेट-नीट की परीक्षा ने तो साबित कर दिया कि यह देश योगभ्रष्ट हो चुका है। दुष्यंत साहब सही फरमाते हैं-
'इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म है
आदमी या तो जमानत पर रिहा है या फरार
अब किसी को भी नजर आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार।'
पतंजलि ने अष्टांग-योग के माध्यम से जीवन को एक वैज्ञानिक पद्धति दी है। विज्ञान में हर एक स्टेप महत्वपूर्ण होता है। अष्टांग योग में यम,नियम के स्टेप के बाद आसन,प्राणायाम सध सकेगा तब प्रतिहार,धारणा के द्वारा ध्यान तक पहुंच कर कोई व्यक्ति समाधि को उपलब्ध हो सकता है। आज शॉर्टकट के अपनाए जाने के कारण यह देश प्रदर्शन का हो गया है। यदि फिर से इसे दर्शन का देश बनाना हो तो दर्शन विषय को मूल में रखकर आज की शिक्षा और परीक्षा पर तत्काल पुनर्विचार होना चाहिए।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹