संवाद


🙏😭मृतात्माओं को श्रद्धांजलि🙏😭


'धर्म है एकांत की खोज'


मंगलवार की शाम अमंगल हो गई। तथाकथित धार्मिक सत्संग में तथाकथित बाबा के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उमड़ी भीड़ में सैकड़ों जिंदगियां चली गईं। टीवी पर आ रही खबरें और दृश्य इतने भयावह थे कि सुनना और देखना मुश्किल हो गया। हार्दिक संवेदना प्रकट करते हुए भीड़ के इस मनोविज्ञान को समझना जरूरी है।


भारतीय संस्कृति की दृष्टि में धर्म है-एकांत की खोज। लेकिन धार्मिक आयोजनों में सत्संग के लिए हजारों-लाखों लोग जुटते हैं। जरूरी नहीं है कि सब जगह हादसा हो। यदि जुटे हुए लोगों ने एकांत की साधना की है तो बहुत बड़ी संख्या में भी एकत्र होकर अपने एकांत को प्राप्त कर लेने के कारण ऐसे लोगों के बीच भगदड़ नहीं मच सकती।


एक बार बुद्ध के साथ हजारों भिक्षु गांव में रुके हुए थे। राजा अजातशत्रु बुद्ध से मिलने गए। लेकिन उन्हें दूर से कोई आवाज नहीं सुनाई दी। राजा का मानना था कि जहां हजारों लोग जुटेंगे वहां तो कोलाहल मचा होगा। वहां शांति ऐसी थी जैसे निर्जन वन में होती है। अजातशत्रु ने अपने मंत्री से कहा कि यहां खतरा है। कोई आवाज नहीं आ रही,अतः अपने सैनिकों को मेरी सुरक्षा में सावधान कर दो। मंत्री बड़ा विवेकशील और धार्मिक प्रवृत्ति का था। उसने राजा को समझाया कि राजनीतिक भीड़ से कोलाहल आती है, धार्मिक भीड़ से शांति और बढ़ जाती है। आप निर्भीक होकर बिना सुरक्षा के वहां चलें। राजा वहां जाकर आश्चर्यचकित हो गया। हजारों लोग ध्यान में मौन बैठे हैं। अजातशत्रु ने बुद्ध से पूछा कि यह कैसे संभव है कि इतने लोग एक जगह जमा हों और शांति इतनी घनी हो? बुद्ध ने कहा कि जब आने वाले लोग अंदर के कोलाहल से भरे होते हैं तो कोलाहल कई गुना बढ़ जाता है और जब आने वाले लोग अंदर की शांति को उपलब्ध कर एकत्रित होते हैं तो शांति भी कई गुना बढ़ जाती हैं।


यह कथा हमें संदेश देती है कि भगदड़ वहां मचती हैं,जहां राजनीतिक प्रवृत्ति के लोग ज्यादा जुट जाते हैं। राजनीतिक प्रवृत्ति का अर्थ होता है कि कुछ मांगने के लिए जा रहे हैं। मन भिखमंगा है। ऐसे मन वाले लोग अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए चमत्कार करने वाले बाबाओं के पास इकट्ठे हो जाते हैं। एक तरफ से सांसारिक कामना और दूसरी तरफ से केवल भगवान के आशीर्वाद से सब कुछ देने का आश्वासन देने वाले बाबा लोग जब एक जगह जुट जाते हैं तो अव्यवस्था को कोई रोक नहीं सकता।


हमारे ऋषियों का कहना है कि धर्म की शुरुआत ही वहां से होती हैं जहां मन मर जाए अर्थात् अमन होने पर शांति उपलब्ध होती है। अब आपका मन नहीं रहा,परमात्मा की मर्जी रही। धर्म है शांति की प्राप्ति के लिए, शक्ति की प्राप्ति के लिए नहीं।


आने वाले दिन धार्मिक आयोजनों के हैं। धार्मिक आयोजन में उन्हीं को जाना चाहिए जिन्होंने अपना एकांत साध लिया हो और जिनकी कोई सांसारिक इच्छा नहीं हो।


सांसारिक इच्छा रोटी,कपड़ा,मकान,नौकरी इत्यादि तो अपनी चुनी हुई सरकारों से मांगना चाहिए ; उस परम सरकार से तो मुक्ति। 'सा विद्या या विमुक्तये' के धार्मिक मंत्र को पाने के लिए गुरु के पास जाया जाता था। क्योंकि सरकारें रोटी,कपड़ा,मकान,नौकरी इत्यादि देने में विफल हो गईं, अतः तथाकथित बाबाओं के दरबार में भीड़ और बढ़ गई।


हमारे यहां विद्यालय,महाविद्यालय,विश्वविद्यालय खोले जाते हैं विद्या और अविद्या के अंतर को समझाने के लिए। लेकिन शिक्षा और परीक्षा की जर्जर व्यवस्था ने लोगों को कहीं का न छोड़ा। ऐसे निराश-हताश लोग धर्म की शरण में और जाएंगे और भी आश्वासन देने वाले बाबा मिल जाएंगे, इससे धर्म पर और प्रश्न चिन्ह उठेंगे -


'पहले उसे दरबार में देखा गया


फिर उसे सरकार में देखा गया,


जो गिरवी रख न पाया खुद्दारी को


उसे नीलामी के बाजार में देखा गया।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹