संवाद


'गर खेल धर्म बन जाए'


भारत में क्रिकेट एक धर्म है और क्रिकेट का सितारा  भगवान। जब क्रिकेट के विश्लेषक ऐसा कहते हैं तो धर्म के ठेकेदार बहुत नाराज हो जाते हैं। उनकी नाराजगी का कारण है कि धर्म जैसा ऊंचा स्थान खेल को क्यों दिया जाए? मुझे लगता है कि सिर्फ क्रिकेट ही नहीं गर हर खेल क्रिकेट जैसा ही लोकप्रिय हो जाए तो इस राष्ट्र का बहुत भला हो जाए।


                आखिर सच्चा धर्म करता क्या है? जाति,धर्म,वर्ण,स्थान की सीमाओं को तोड़कर सबको एक सूत्र में बांध देता है। अभी विश्व विजेता टीम के स्वागत के लिए मुंबई में लोगों का जो हुजूम जुटा है, वे सभी एक सूत्र में क्रिकेट के कारण बंधे हुए है। गौरव के क्षण को दिलाने वाले खिलाड़ियों के स्वागत में स्वत:स्फूर्त ढंग से लोगों ने पलक पांवड़े बिछा दिए हैं। कुछ ऐसा कशिश है इस खेल में और खिलाड़ियों में जो चुंबक की तरह लोगों को अपनी तरफ खींच रहा है। क्रिकेट खिलाडियों की न तो कोई जाति पूछता है और न धर्म ; सिर्फ खेल के प्रति उनकी दीवानगी देखी जाती है और खेल में परफॉर्मेंस।


             जो भीड़ राजनेताओं के जुटाए नहीं जुटती, उससे कई गुना ज्यादा भीड़ खिलाड़ियों के एक झलक पाने को बेताब हैं। संसद की पूरी बहस अंततः धर्म केंद्रित हो गई और सुनने के बाद न तो सुकून मिला, न कोई मार्गदर्शन। धर्म राष्ट्र के प्रति प्रेम भी जगाता है और जीवन के लिए राह भी दिखता है। जागरण और मार्गदर्शन तो क्रिकेट से मिल रहा है।


जिस संसद को संविधान की प्रस्तावना द्वारा दिया गया मूल संदेश 'हम भारत के लोग.......' की भावना हेतु सभी को प्रेरित करना था, वह प्रेरणा संसद से तो नहीं मिली किंतु खिलाड़ियों के स्वागत में उमड़े जन सैलाब से मिलती दिखी।


               जब अमेरिका के शिकागो में हुए धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म की व्यापक और सूक्ष्म दृष्टि प्रस्तुत की तो रातोरात वे विश्वविख्यात हो गए। तब भारत आगमन के समय में भी लोगों ने उनके स्वागत में ऐसा  ही उत्साह दिखाया था। भारत की पददलित आत्मा को उन्होंने झकझोर कर खड़ा कर दिया था। धर्म का यह 'विवेक' अद्भुत था जिसने खुलेआम घोषणा की -"तुम गीता पढ़ने की अपेक्षा फुटबॉल के द्वारा स्वर्ग के अधिक समय पहुंच सकोगे। तुम्हारी मांसपेशियों में जब ताकत होगी तो तुम गीता के मर्म को अधिक समझ सकोगे।"


              स्वामी जी ने उस समय फुटबॉल का नाम लिया , यदि आज वे होते तो क्रिकेट का नाम लेते और फिर से कहते-'खिलाड़ी के लिए खेल का मैदान, किसान के लिए खेत, विद्यार्थी के लिए अध्ययनकक्ष परमात्मा तक पहुंचने के लिए उतना ही प्रामाणिक रास्ता है जितना साधु का मंदिर।'


आज भारत क्रिकेट जैसे महंगे खेल के शौक को न सिर्फ पाल रहा है बल्कि इसमें विश्वविजेता भी बन रहा है। भारत का क्रिकेट संगठन 'बीसीसीआई' विश्व का सबसे अमीर संगठन भी बन गया है जिसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि अधिकांश गरीब घर की प्रतिभाओं की बदौलत इतनी अमीरी पैदा हो रही है। राष्ट्रकवि दिनकर जी ने सच ही कहा है-


'कुसुम मात्र खिलते नहीं राजाओं के उपवन में


अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुंज कानन में


कौन जाने रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल


गुदड़ी में रखती चुन चुन कर बड़े कीमती लाल।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹