संवाद
🙏 'शिक्षक असली हीरो' 🙏
3 जुलाई को विश्वविजेता टीम के स्वागत में उमड़ी लाखों की भीड़ के लिए जितना याद किया जाएगा,उतना ही 3 जुलाई को याद किया जाएगा विद्यार्थियों द्वारा अपना स्थानांतरण करवाकर उस स्कूल में नाम लिखवा लेने के लिए;जहां उनके शिक्षक का 1 जुलाई को प्रशासन द्वारा ट्रांसफर किया गया था।विद्यार्थी,अभिभावक और शिक्षक के परस्पर प्रेम और विश्वास की यह लोकल घटना अपने में ग्लोबल संदेश समाहित किए हुए हैं।
तेलंगाना के 53 वर्षीय सरकारी स्कूल शिक्षक जे. श्रीनिवास मंचेरियल जिले के पोनाकल गांव में पहली से पांचवी तक के बच्चों को पढ़ाते थे। बारह साल पहले 32 छात्रों को लेकर उन्होंने पढ़ाना शुरू किया था।उनका विद्यार्थियों के साथ संबंध इतना घनिष्ठ हुआ कि वे दिन रात उनकी बेहतरी के बारे में विचार करने लगे। स्कूल के समय में वे अपने विषय को सरल-सरस ढंग से पढ़ाते और घर के समय में विद्यार्थियों के जीवन को आगे बढ़ाने के लिए समय निकालते।
छात्रों ने भी उनके प्रेम को अपने हृदय में बसाया और पढ़ाई में मन लगाया। धीमे-धीमे यह बात विद्यार्थियों के अभिभावकों तक पहुंची और अगल-बगल के समाज में चर्चा का विषय बन गई। बच्चों के लिए फ्रेंड, फिलॉस्फर और गाइड बने श्रीनिवास की भूमिका ने छात्रों की संख्या 32 से 250 तक पहुंचा दी।
1 जुलाई 2024 को जिला प्रशासन ने उनका तबादला मौजूदा स्कूल से 3 किलोमीटर दूर दूसरे स्कूल में कर दिया। जब तबादले की खबर छात्रों को मालूम हुई तो उन्होंने अपने शिक्षक के यह कहते हुए पैर पकड़ लिए कि हम आपको नहीं छोड़ सकते। उन्होंने बच्चों को समझाया कि प्रशासन के आदेश का पालन तो मुझे करना ही होगा। अपने प्रिय शिक्षक के जाने पर विद्यार्थियों के भावुक होने की खबरें तो सुनने को मिलती है किंतु विद्यार्थियों द्वारा पुराने स्कूल से नाम कटवाकर अपने शिक्षक के नए स्कूल में नाम लिखवाने की खबरें सुनने को नहीं मिलती। कक्षा 1 से 5 तक के 250 छात्रों में से 133 ने खुद को उस नए स्कूल में ट्रांसफर करवा लिया जहां श्रीनिवास सर का तबादला हुआ था।
शिक्षक का आकर्षण ऐसा था कि घर से दूर आने जाने के कष्ट को उठाने के लिए नन्हे विद्यार्थी के साथ अभिभावक भी तैयार थे। छात्र और अभिभावक का यह सामूहिक निर्णय समाज के सोच में आए बदलाव का निर्णय है-
'मोम के ढेर को हल्की सी तमाजत भी बहुत
हो सके तो किसी शक्ल में ढालो मुझको
तुमसे तन्हा न हटेगा शब की स्याही का तिलस्म
मैंने पहले ही कहा था कि जला लो मुझको।'
जहां विद्यार्थी ढलने को तैयार हों,शिक्षक उस उद्देश्य से जलने को तैयार हों और समाज शिक्षक-विद्यार्थी के परस्पर प्रेम को बढ़ाने को तैयार हों; वहां क्रांति घट जाती है।
1 जुलाई को राजस्थान के उच्च शिक्षा सचिव ने अपने संबोधन में 'गुरु शिष्य परंपरा' को फिर से प्रारंभ करने को कहा। विशेषकर शिक्षकों को उन्होंने कहा कि सत्रारंभ के दिन से ही क्लास में विद्यार्थियों को नियमित पढ़ाएं , साथ ही बाहर भी उनके मेंटर की भूमिका निभाएं।
संदेश स्पष्ट था कि श्रीनिवास जी जैसे शिक्षक की भूमिका सबको निभानी चाहिए। लेकिन विद्यार्थी भी ऐसे प्यासे होने चाहिए,जो वहीं पहुंच जाए जहां शिक्षक हो। साथ ही अभिभावक भी इतने जागरूक होने चाहिए कि अच्छी शिक्षा और अच्छे शिक्षक का महत्त्व समझें।
गुरु शिष्य परंपरा को शुरू करने की इच्छा वाली सरकार को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि गैरशैक्षिक कार्यों से जितना ज्यादा शिक्षकों को मुक्त रखा जाएगा , उतना ज्यादा समय वे अपने विद्यार्थियों को दे पाएंगे।
इस व्यावसायिक जमाने में भारत की आध्यात्मिक गुरु-शिष्य परंपरा ही ऊंचे मूल्यों वाले इंसान तैयार कर सकती है। बशर्ते परंपरा के संवाहक गुरु ज्ञानी हों, शिष्य जिज्ञासु हों, समाज सहयोगी हो और सरकार शिक्षा हेतु समर्पित हो।
रघुरामन जी के मैनेजमेंट फंडा में जब मैंने इस शिक्षक के बारे में पढ़ा तो श्रीनिवास जी जैसे ही अनेकों समर्पित शिक्षकों की याद आई। किंतु श्रीनिवास जी जैसा सबका सौभाग्य नहीं होता कि बच्चे भी ऐसे साहसी मिल जाएं,अभिभावक भी इतने सहयोगी मिल जाएं और कलमकार भी इतना संवेदनशील मिल जाए कि छोटी जगह की इस अनोखी घटना को विराट समूह तक पहुंचा दे।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹