संवाद
'कमल विदेश में ही क्यूं खिलता है?'
भारतीय मूल की कमला हैरिस ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल कर दिया है। यदि वो रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप को हराने में सफल होती है तो पहली महिला राष्ट्रपति बन जाएंगी और वह भी विदेशी मूल की होने के बावजूद।
प्रतिभा को पहचानने की और उसका सदुपयोग करने की कला अमेरिका बहुत अच्छी तरह से जानता है। इसी कारण से नवोदित राष्ट्र अमेरिका विश्व का सुपरपावर बन गया।उसके पास अकूत धनसंपदा ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में अद्भुत व्यक्तित्वों की विराट उपलब्धियां हैं। आश्चर्य होगा यह जानकर कि विदेशी मूल की प्रतिभाओं की बदौलत अमेरिका ने ऊंचाइयां चूमी है। उसमें भारतीय मूल की प्रतिभाओं का योगदान विशेष है। भारतीय मूल का अमेरिकी वैज्ञानिक नोबेल प्राइज प्राप्त कर लेता है, भारतीय मूल का अमेरिकी नागरिक ऊंचे से ऊंचे पदों पर पहुंच जाता है किंतु दूसरा आर्यभट्ट कहा जानेवाला डॉ.वशिष्ठ नारायण सिंह जैसा अद्भुत गणितज्ञ अमेरिका में रहकर अद्भुत काम करता है लेकिन भारत लौटकर पागल हो जाता है क्योंकि उसकी प्रतिभा के अनुकूल परिस्थितियां नहीं मिलतीं।
आज प्रतिदिन 500 भारतीय प्रतिभाएं विदेशी नागरिकता ग्रहण कर रही हैं क्योंकि उन्हें अपना भविष्य विदेशों में ज्यादा सुरक्षित दिखाई दे रहा है। अवसरों की प्रचुरता, काम करने की परिस्थितियां और आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाला अमेरिका आज हर भारतीय की पहली पसंद है। इसके विपरीत भारत में भाई-भतीजावाद, राजनीतिक हस्तक्षेप, गलत आरक्षण और भ्रष्टाचार ने प्रतिभा संरक्षण के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं।
भारतीय मूल के सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन जाना और भारतीय मूल की कमला हैरिस का अमेरिका का उपराष्ट्रपति बन जाना ; यह दर्शाता है कि विदेशों में एक ऐसा वातावरण है,जहां प्रतिभा की कद्र होती है। प्राचीन काल में बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में भी एक समय में ऐसा वातावरण था कि दूर-देशों की प्रतिभाएं यहां खिंची चली आती थीं और अपने पूर्ण विकास को प्राप्त करती थीं। चीन,लंका,कंबोडिया,जापान जैसे दूरदराज के क्षेत्रों से जिज्ञासु पर्वत-पहाड़ों , खाईयों और घने जंगलों को पार करके यहां ज्ञान के लिए पहुंचते थे।यहां के गुरुओं के ज्ञान से तृप्त होने वाले लोग अपने देशों में जाकर भारत की विश्वगुरु की छवि बनाते थे।
आज तो भारत स्वयं ही अपने आप को विश्वगुरु घोषित करने लगा है जबकि भारत की शिक्षा और परीक्षा की दयनीय स्थिति को देखकर कोई भी विदेशी राष्ट्र इसे विश्वगुरु मानने को तैयार नहीं है। अध्ययन के लिए 1.33 मिलियन भारतीय विद्यार्थियों का विदेशों की ओर जाना यह दर्शाता है कि भारत में उच्च स्तर के शिक्षा संस्थान अब नहीं रहे हैं, जो भारतीय प्रतिभाओं को आकर्षित कर सकें। आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी दिल्ली जैसे सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों में भी शिक्षकों की कमी बताती है कि प्रतिभा संरक्षण के प्रति हम कितने लापरवाह हैं।
आज तो भारत की स्थिति यह है कि कोई भी प्रतिभा जाति,धर्म,लिंग,क्षेत्र,भाषा इत्यादि अनेक आधारों पर भेदभाव का शिकार होती है और खिलने के पहले ही दम तोड़ देती है। खेल संघ के शीर्ष पदों पर गैर-खिलाड़ी लोग पहुंच जाते हैं और शिक्षा क्षेत्र के शीर्ष पदों पर शिक्षाविद् की जगह राजनीतिविद् पहुंच जाते हैं।
'कमला' स्त्रीलिंग रूप है 'कमल' शब्द का। कहावत है कि कीचड़ में ही कमल खिलता है। लेकिन देश में कीचड़ जहां-जहां दिखाई देता है, वहां-वहां कमल नहीं। आज के समय में देश के हालात को देखकर कहावत में परिवर्तन करना पड़ेगा कि 'विदेश में ही कमल खिलता है।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹