संवाद
'ज्यादा गम , कम खुशी'
गटर के पानी में कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में सिर्फ होनहार ही नहीं डूबे हैं बल्कि व्यवस्था डूबी है। देश की राजधानी दिल्ली में सुप्रीम व्यवस्था की नाक के नीचे कोई भावी प्रोफेसर तो कोई भावी कलेक्टर-एसपी नवीन,तान्या,श्रेया के रूप में आधे घंटे की बारिश की पानी में डूब गए। इस समाचार को सुनकर मेरा मन डूबा जा रहा था कि उसी समय पेरिस ओलंपिक में मनु भाकर द्वारा ब्रॉन्ज जीतने की मनभर खुशी का समाचार मिला। लेकिन मनु की कहानी में भी खराब व्यवस्था की झलक इस रूप में मिली कि टोक्यो ओलंपिक में पिस्टल खराब होने से वह फाइनल में जगह नहीं बना पाई थी। आज पेरिस ओलंपिक में "खुद के कर्म पर भरोसा रखो; जो बीत गया उसकी चिंता में डूबने के बजाय लक्ष्य पर फोकस करो" इस गीता ज्ञान की बदौलत वह अपनी प्रतिभा और परिश्रम का कुछ फल पा सकी।
इस समय मन में एक बड़ा द्वंद्व चल रहा है कि होनहारों के डूबने का गम मनाऊं या मनु के जीत की खुशी मनाऊं?
'एक तरफ दर्दीला मातम,एक तरफ त्योहार है
विधना के बस इसी खेल में यह मिट्टी लाचार है।'
मुझे भी अपने विद्यार्थी जीवन की दो घटनाएं याद आ गईं-एक गम की, एक खुशी की। बिहार लोक सेवा आयोग की प्राथमिक परीक्षा का सेंटर मेरे निवास स्थान पटना से 12 घंटे की दूरी पर रांची में दिया गया था। गरीब परिवार के होनहार बच्चों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे रेल या बस का टिकट खरीद सकें, लेकिन वे परीक्षा छोड़ भी नहीं सकते थे क्योंकि इसके लिए उन्होंने बरसों से अपना खून-पसीना एक किया था। अंततः रेलगाड़ी पर सभी चढ़ गए और रांची से परीक्षा देकर वापस पटना भी आ गए। लेकिन तीन विद्यार्थियों की रेल से कटकर दर्दनाक मौत हो गई क्योंकि अधिक भीड़ होने के कारण कुछ विद्यार्थी रेल के डिब्बे के ऊपर भी बैठे हुए थे।
अभी हाल की सारी परीक्षाओं में विद्यार्थियों की अनुपस्थिति की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है। अनेक कारणों में से मुख्य कारण यह है कि केंद्र तक पहुंचने के लिए परीक्षार्थियों के पास पैसे नहीं थे।
इस गम वाली घटना के बाद खुशी की घटना यह है कि ऐसी अव्यवस्थाओं के बावजूद मेरे अधिकांश साथी पचासोभी परीक्षाओं की बाधा पार करके अपनी मंजिल को पा गए। अर्थात् उन्हें कोई न कोई नौकरी मिल गई। अतः सभी मेरे साथी कहते हैं कि 'भगवान के घर में देर है, पर अंधेर नहीं।' टोक्यो ओलंपिक की निराशा के बाद पेरिस ओलंपिक में पूर्ण हुई मनु भाकर की आशा भी यही कहती है।
लेकिन मेरा मूल प्रश्न यह है कि हमारा देश इतनी अव्यवस्था के गर्त में कैसे गिर गया कि हमारे होनहारों के सपने गटर के पानी में डूब जाते हैं, अव्यवस्था का अंधेरा इतना घना कैसे हो गया है कि युवा आत्महत्या कर लेते हैं? अच्छी व्यवस्था होने पर जहां लाखों करोड़ों सपने साकार हो सकते थे, वहां अव्यवस्थाओं के बावजूद एक मनु भाकर का सपना साकार होने पर हमें खुश तो होना चाहिए लेकिन उसके साथ यह भी सोचना चाहिए कि -
"एक फूल का खिल जाना ही उपवन का मधुमास नहीं है
रेतीले कण की तृप्ति से बुझती अपनी प्यास नहीं है।"
जब भारत गहन अंधविश्वास और आत्महीनता के अंधकार में डूबा हुआ था तब एक युवा नरेंद्र नाथ दत्त ने शिकागो के धर्म सम्मेलन में पहुंचकर भारत का आत्मगौरव सातवें शिखर पर पहुंचा दिया। लेकिन इससे भारत की आम जनता आत्मगौरव के शिखर पर प्रतिष्ठित नहीं हो गई। उसके लिए सही शिक्षा,वैज्ञानिक सोच और सही व्यवस्था चाहिए थी।
उस समय ब्रिटिश सरकार थी,अपनी सरकार नहीं थी।लेकिन आज तो हम अपनी सरकार में जी रहे हैं और उसका अमृत काल चल रहा है तो फिर एक मनु के ही सपने क्यों साकार हो पाते हैं और लाखों मनु के सपने क्यूं डूब जाते हैं??
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹