संवाद


'छात्र आंदोलन की आग'


छात्र शक्ति के आगे बांग्लादेश विवश हो गया। बंग-बंधु मुजीबुर्रहमान की मूर्तियों को तोड़ा जाना और शेख हसीना का देश छोड़कर भाग जाना इस बात का संकेत है कि पुराने आदर्श और नई पीढ़ी के यथार्थ में एक बहुत बड़ा फासला हो चुका है। मेरी समझ में किसी राष्ट्र का अस्तित्व में आना कुछ और बात है और नई पीढ़ी का भविष्य बनाना कुछ और बात है। हमें यह जानना चाहिए कि पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश का निर्माण हिंसक क्रांति के द्वारा हुआ था किंतु नई पीढ़ी के भविष्य का निर्माण शांतिपूर्ण शिक्षा व्यवस्था के द्वारा और युवाओं के लिए सृजित रोजगार के द्वारा होता है।


          19 जून को बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय के परिसर- उद्घाटन के अवसर पर पीएम मोदी का यह कहना कि आग की लपटें किताबें तो जला सकती हैं,किंतु ज्ञान को नहीं; आज के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा संस्थानों में ज्ञान के द्वारा उस शांति और सामंजस्य को बनाया जाता है जो किसी भी राज्य की कानून व्यवस्था के लिए जरूरी होता है।


           बांग्लादेश का विद्रोह बताता है कि पुलिस और सेना के द्वारा कानून व्यवस्था मजबूती से स्थापित नहीं होती, कानून व्यवस्था तो जड़ से तभी मजबूत होती है जब शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों के द्वारा कानून व्यवस्था के प्रति सम्मान पैदा किया जाता है। बांग्लादेश में वहां की आरक्षण व्यवस्था और सरकार की नीतियों के प्रति असंतोष बढ़ता गया, और शिक्षा संस्थानों में चल रहे इस विचार के प्रति सरकार सोई रही।


             भारत के शिक्षा संस्थान कैसे चल रहे हैं, इस संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। कॉलेज में छात्रों की कम उपस्थिति और गैरशैक्षिक कार्यों में शिक्षकों का व्यस्त रहना किसी भी दूरदर्शी को आने वाले तूफान का संदेश दे रहा है। देश में सरकारी स्कूल और कॉलेज की कीमत पर कोचिंग संस्थान का फलना-फूलना शुभ संकेत नहीं है।गरीब मेधावी छात्र के पास सरकारी स्कूल और कॉलेज के अलावा आखिर दूसरा क्या सहारा बचता है। जिनके पास खाने को पैसे नहीं है, उनको निजी स्कूल-कॉलेज और कोचिंग की महंगी फीस देने का पैसा कहां से आएगा? इसकी कमीपूर्ति सरकारी स्कूल और कॉलेजों में नियमित क्लासेज,पर्याप्त शिक्षक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण  के द्वारा हो सकती है।


          नई लोकसभा के प्रथम अभिभाषण में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा परीक्षा व्यवस्था के प्रति असंतोष जाहिर करना और  दिल्ली के कोचिंग बेसमेंट में पानी घुस जाने से छात्रों की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत:संज्ञान लेकर कोचिंग सेंटर को डेथ चेंबर बताना देश के लिए भारी चिंता और चिंतन का सबब होना चाहिए।


          शिक्षा के द्वारा योग्यता का निर्माण किया जाता है और परीक्षा के द्वारा योग्यतानुसार स्थान का निर्धारण किया जाता है। सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और निष्पक्ष परीक्षा की व्यवस्था पर भारत को सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए।


       50 वर्ष पूर्व लोकनायक जयप्रकाश नारायण  के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति द्वारा सत्ता परिवर्तन को भी छात्र शक्ति ने ही सुनिश्चित किया था। लेकिन सत्ता परिवर्तन से संपूर्ण क्रांति सफल नहीं होती। संपूर्ण क्रांति तो सफल होती है शिक्षा में क्रांति से। शिक्षा संस्थानों में जब शिक्षक अपने विचारों द्वारा सकारात्मक मन का निर्माण करता है तो वास्तविक राष्ट्र निर्माण होता है।


प्रधानमंत्री आवास में घुस जाना और अपने राष्ट्र नायक की मूर्ति को तोड़ देना तो छात्र-शक्ति के क्षणिक भावावेश का नतीजा है। भारत में भी छात्र शक्ति के इस विद्रोही भाव की झलक यदा-कदा दिख रही है-


"भीड़ भटके रास्तों पर दौड़ती है,


जब सफर का रहनुमा खामोश होता है।


मंत्र जपते होंठ जब जलने लगे तब


ऋत्वित्जों के आचरण में दोष होता है।


आओ मिलकर हम उन्हें आवाज दें


साथ जिनके जोश के खूब होश होता है।"


इस विध्वंसक क्षणिक भाव को राष्ट्र निर्माता शिक्षक सद्भाव में परिवर्तित करके सद्विचारों को मस्तिष्क में जन्म दे सकता है जिससे महान कर्म हो सकते हैं। छात्र आंदोलन की आग से रोशनी पैदा करने की कला शिक्षकों को मालूम है।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹