🙏स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना🙏
संवाद
'स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व'
बरसों की अहर्निश शिक्षा के बाद एक आचार्य ने अपने शिष्यों की परीक्षा के लिए दो प्रकार के सिक्के टेबल पर रख दिए। एक प्रकार के सिक्के के ऊपर लिखा था स्वतंत्रता और दूसरे प्रकार के सिक्के के ऊपर लिखा था उत्तरदायित्व। 100 में से 99 शिष्यों ने स्वतंत्रता वाले सिक्के उठा लिए। सिर्फ एक शिष्य था जिसने उत्तरदायित्व वाला सिक्का उठाया।
आचार्य ने सभी को कहा कि अब तुम अपने-अपने सिक्के के दूसरे पहलू को देखो। 99 शिष्यों ने देखा कि दूसरे पहलू पर लिखा हुआ था-उत्तरदायित्व। सिर्फ एक शिष्य जिसने उत्तरदायित्व वाले सिक्के को उठाया था ,उसके सिक्के के दूसरे पहलू पर लिखा था- स्वतंत्रता।
आचार्य ने कहा कि अंतिम परीक्षा पूर्ण हुई,सिर्फ एक शिष्य को इस परीक्षा में सफलता मिली है। अब वह स्वतंत्र है। बाकी शिष्यों को अभी आश्रम में रुकना होगा, उन्हें और भी शिक्षा लेनी पड़ेगी। उन्हें यह समझना पड़ेगा कि जो भी उत्तरदायित्व से बचता है,उसे स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं होती।
भारतीय संस्कृति के गुरुकुलों में इस प्रकार की शिक्षा और परीक्षा हुआ करती थी जिसको आज हमने पूरी तरह से भुला दिया है।
उत्तरदायित्व को उठाकर हमारे महापुरूषों ने परतंत्रता की बेड़ियों को काटने के बाद 15 अगस्त 1947 को जो स्वतंत्रता अर्जित की थी, उसे हम सभी ने स्वच्छंदता में तब्दील कर दिया है। जनता से लेकर नेता तक, विद्यार्थी से लेकर शिक्षक तक, प्रशासक से लेकर पत्रकार तक के जीवन में उत्तरदायित्व की भावना में भारी गिरावट आई है तभी तो मेरे हृदय के भाव इन शब्दों में प्रकट हुए-
'जनता स्वतंत्र है प्रलोभन पर अपना वोट गिराने को
भ्रष्टाचारी तभी जीतते हैं सदन की शोभा बढ़ाने को।
नेता स्वतंत्र है बिना चर्चा के वेतन भत्ते उठाने को
किसी बहाने से सदन को रोज स्थगित कराने को।
विद्यार्थी स्वतंत्र है बिना पढ़े नौकरी का जुगाड़ बिठाने को
विद्या की अर्थी निकाल परीक्षा-पूर्व प्रश्नपत्र पा जाने को।
शिक्षक स्वतंत्र है क्लास छोड़कर कोचिंग में पढ़ाने को
सरस्वती को सौत बनाकर लक्ष्मी को गले लगाने को।
प्रशासक स्वतंत्र है लोकसेवक से लोकस्वामी बन जाने को
हरे नोट के ही दबाव में कुछ फाइलें जल्दी निपटाने को।
पत्रकार स्वतंत्र है कथनी लेखनी से सनसनी फैलाने को
कामुक हिंसक खबरें देकर विज्ञापनों से मनी बनाने को।
ऐसी स्वतंत्रता से हम दो चार ही 15 अगस्त मना पाएंगे
फिर किसी विदेशी ताकत के पैरों तले कुचले जाएंगे।'
पुनर्जागरण काल के बाद स्वतंत्रता की अलख जगी थी। बिना शिक्षा के पुनर्जागरण नहीं हो सकता था। पुनर्जागरण के पिता माने जाने वाले राजा राममोहन राय और अन्य सभी महापुरुषों ने स्कूल-कॉलेज खोलकर तथा पत्र-पत्रिकाएं निकालकर जनमानस को शिक्षित किया। इससे भारतीयों में अपने गौरवशाली अतीत का बोध जागृत हुआ।पुनर्जागरण के फलस्वरुप सतीप्रथा जैसी कुरीतियों और अंधविश्वासों को छोड़कर कुछ भारतीय उत्तरदायित्व की भावना से भर गए।उनके ही त्याग और बलिदान का परिणाम है यह स्वतंत्रता रूपी फल। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि शिक्षारूपी वृक्ष पर ही स्वतंत्रता रूपी फल लगता है।
वह शिक्षारूपी वृक्ष आज जर्जर हो चुका है जिसका परिणाम पेपर लीक वाली परीक्षा व्यवस्था के रूप में सामने आ रहा है। निर्धन प्रतिभाओं को तराशने वाले सरकारी स्कूल-कॉलेज का स्थान आज कोचिंग ने ले लिया है और जीवन तैयार करने वाला शिक्षक सूचना तैयार करने में लगा है। ऐसे में मूल प्रश्न यह है कि 'क्या उत्तरदायित्व की भावना जगाने वाली शिक्षा के बिना स्वतंत्रता ज्यादा दिनों तक टिक सकती है?'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹