संवाद


'असफलता की दावत'


आईएएस कैडर में पदोन्नत होने पर मैंने अपने मित्र श्री रजनीश कुमार सिंह को स्वतंत्रता दिवस की शाम को विशेष बधाई दी। बिहार लोक सेवा आयोग के टॉपर्स में भी उनका नाम था। होम कैडर में IAS मिलना एक विशेष अवसर होता है जब आप अपने गृह राज्य या गृह जिले के लोगों की विशेष सेवा का मौका पाते हैं।


         लेकिन टॉपर होने या IAS होने से भी ज्यादा मेरे लिए महत्वपूर्ण है रजनीश द्वारा दी गई वो पार्टी जो उन्होंने यूपीएससी के प्रीलिम्स में असफल होने पर दी थी।


              यह वो दौर था जब हम सभी ग्रेजुएट होने के बाद बड़े सपने को साकार करने के लिए खून पसीना एक किए हुए थे। सफलता के हम सभी प्यासे थे और जो भी सफल होता,उससे विशेष पार्टी का हक हम सभी को बनता था। मित्र मंडली के समूह में से मेरे फ्रेंड फिलॉस्फर गाइड श्री डीके ठाकुर के 1993 में आईपीएस होने पर हम सभी के खुशी का ठिकाना नहीं था और उनसे एक विशेष पार्टी की मांग उठ रही थी।


             सफलता की दावत के दौर में एक दावत ऐसी भी थी जिसका आयोजन असफल होने पर किया गया था। स्वयं रजनीश ने सभी मित्रों को दावत पर बुलाया, खूब मजे से खाना खिलाया और अंत में हंसकर बताया कि यह दावत मैंने प्रीलिम्स में फेल होने पर दी है। सभी मित्र जरूरत से ज्यादा खा चुके थे लेकिन कारण जानने के बाद उस खाने को पचाना मुश्किल लग रहा था। यदि कारण पहले पता होता तो शायद कोई आता भी नहीं।लेकिन रजनीश के चेहरे पर असफलता का कोई दंश नहीं था, हार को पचाने की ही नहीं बल्कि हार को सेलिब्रेट करने की उसकी अदा ने मुझे कायल कर दिया। तब मुझे गीता के उस श्लोक का अर्थ समझ में आया जिसमें कृष्ण कहते हैं-


सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।


अर्थात् हे पार्थ!जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःखको समान करके फिर युद्ध में लग जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को प्राप्त नहीं होगा।


कल जब रजनीश को मैंने बधाई दी तो यही पूछा कि असफलता की दावत देने के पीछे आपकी सोच क्या थी? उन्होंने सहज अंदाज में कहा कि मैं अपनी असफलता से सीखना चाहता था,इसीलिए उस दिन को यादगार बनाने के लिए मित्रों के साथ आनंद मनाया। मैंने पूछा कि आनंद तो अकेले भी मनाया जा सकता था,सारे मित्रों की क्या जरूरत थी? उनका जवाब लाजवाब था-


'माहौल बेमज़ा है तेरे प्यार के बगैर


कैसे पिए शराब कोई यार के बगैर


बहारों ने मेरा दामन फूलों से भर दिया


पर जिंदगी उदास रही खार के बगैर।'


फिर मैंने उनसे पूछा कि आजकल के विद्यार्थी असफलता से जल्दी टूट जाते हैं, अवसाद में पड़ जाते हैं और आत्महत्या तक कर जाते हैं ; ऐसे लोगों को आप क्या कहना चाहेंगे? रजनीश के जवाब में मुझे ओशो के दर्शन की झलक मिली। उन्होंने कहा कि जीवन एक संघर्ष है। जिसको लोग असफल कहते हैं,उसको मैं असफल की जगह 'संघर्षरत' शब्द देना चाहूंगा। आजकल के विद्यार्थियों में यह संघर्ष की क्षमता बहुत कम हो गई है और धैर्य तो बिल्कुल गायब हो गया है। नई पीढ़ी को मेरा संदेश है कि जब तक तन में जान है,तब तक संघर्ष में प्राण लगाने से ही इस जीवन का मान (गौरव गरिमा)है।


साहित्य का मूल मकसद यही है कि अंधेरे में उजालों की बातें करे। लेकिन आज दोस्त की सफलता के उजाले में मुझे उसके अंधेरे याद आए क्योंकि उस अंधेरे में भी उसकी आंखें खुली थीं,जिसके कारण उसे वह 'सीख की रोशनी' दिख रही थी,जिसे अन्य सभी मित्र उस समय नहीं देख पा रहे थे। रजनीश के ही शब्दों में-'असफल होने पर सीख मिलती है और सफल होने पर मंजिल। प्राप्ति दोनों में है, बस दृष्टिकोण बदलना चाहिए। मंजिल मिलने के बाद भी जिंदगी रूकती नहीं,आगे ही बढ़ती जाती है। सीखते जाओ,आगे बढ़ते जाओ।'


शायद इसी भाव को रखकर कलाम साहब ने FAIL को व्याख्यायित करते हुए कहा था-First Attempt In Learning.


फेल होने पर सीख बहुत लोग ग्रहण करते हैं किंतु रजनीश विरले हैं जो मित्रों को दावत देकर पहले असफलता को अंगीकार करते हैं और फिर उससे सबक लेकर अपने संघर्ष से असफलता को सफलता में तब्दील कर देते हैं।


I am proud of you my dear.May god bless you!


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹


IAS Shri Rajnish के साथ बातचीत का ऑडियो लिंक कृपया सुनें👇