🙏रक्षाबंधन की शुभकामना🙏


संवाद


'नवदर्शन रक्षाबंधन का'


रक्षाबंधन का यह पर्व महिला सुरक्षा के सबसे बड़े प्रश्न के साथ सामने खड़ा है किंतु नारी की शक्ति से परिचय कराने वाली शिक्षा से बढ़कर अन्य कोई रक्षा का बंधन नहीं हो सकता।रक्षा का भाव लेकर कभी इंद्राणी द्वारा अपने पति इंद्र को राखी बांधी गई,तो कभी लक्ष्मी द्वारा राजा बलि को,कभी रानी कर्णावती द्वारा हुमायूं को ; किंतु आज रक्षाबंधन बहन-भाई के अटूट रिश्ते का परिचायक बन गया है।भाई की कलाई पर रक्षा का सूत्र बांधकर अपनी सुरक्षा का आश्वासन पानेवाली बहनें अब शिक्षा के कारण रक्षा करने वाली बन रही हैं। 'बेटी पढ़ाओ' के मंत्र ने न सिर्फ स्त्री पुरुष के रिश्तों को बदला है बल्कि पर्व-त्योहार की मान्यता को भी बदल कर रख दिया है।


          अपने जीवन के अनुभव से एक दृष्टांत सामने रखता हूं। उच्च-शिक्षा के लिए अपने घरवालों से लड़कर दो लड़कियां राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में पहुंचती हैं। दोनों का परिचय मित्रता में बदलती है और दोनों की पढ़ने की प्रवृत्ति दोनों को 'दो जिस्म एक जान' बना देती है। राजस्थान के पूर्वी छोर से आई हुई एक बाला का पश्चिमी छोर से आई हुई एक बाला के साथ ऐसा मिलाप होता है कि गुरुजन भी मजाक करते हुए पूछते थे कि तुम दोनों पीएचडी-थीसिस भी एक ही साथ मिलकर लिखोगी क्या?


        इत्तफाक से दोनों अपने-अपने घर की सबसे बड़ी बहन है। बचपन से ही घर का सारा काम करते हुए और अपने छोटे भाई-बहनों का सार-संभाल रखते हुए अपने पढ़ाई के जुनून को आगे बढ़ाती हैं। पढ़ाई में अव्वल रहने के बावजूद मां-बाप को उनकी शादी की चिंता ज्यादा सताती है जबकि उन दोनों को अपने कैरियर की चिंता दिन-रात खाए जाती है। अतः विद्रोह कर दोनों पढ़ाई हेतु घर छोड़ देती हैं और अच्छे शिक्षकों के आशीर्वाद से दर्शनशास्त्र विभाग की गोल्डमेडलिस्ट व टॉपर्स बन जाती हैं।


            कोई भी टॉपर अपने कैरियर को परम ऊंचाई पर ले जाने के लिए आत्मकेंद्रित हो जाता है लेकिन ये दोनों सहेलियां अपने से भी ज्यादा ध्यान अपने भाई-बहनों को पढ़ाने पर देती हैं। शायद इन दोनों का दर्शन स्वयं भी खिलना और चमन को भी खिलाने का रहा-


'सीख ले फूलों से ग़ाफ़िल मुद्दआ यह जिंदगी


खुद महकना ही नहीं चमन को महकाना भी है।'


            दोनों सहेलियां दर्शनशास्त्र का प्रोफेसर बन जाती हैं और अपने भाई-बहनों को भी उनके योग्यतानुसार पद अर्जित कराने में सहायक और मार्गदर्शक की भूमिका निभाती हैं।


             रक्षाबंधन का त्यौहार इनके लिए भी आता है और भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधने का रस्म ये दोनों भी निभाती हैं किंतु भाई पर अपनी रक्षा की जिम्मेदारी देने के लिए नहीं बल्कि रिश्तों को और प्रगाढ़ बनाने के लिए-


बंधनानि खलु संति बहूनि प्रेमरज्जुदृढ़बंधनमन्यत्


दारुभेदनिपुणोअपिषडंध्रिर्निष्क्रियो भवति पंकजकोशे।


           प्रेम का बंधन अनूठा होता है,जो भौंरा काठ की लकड़ी को छेद कर देता है, वही फूल की कोमल पंखुड़ियों में रात भर स्वेच्छा से बंद रहता है। रक्षाबंधन का भी बंधन ऐसा अनूठा बंधन है कि शक्ति का आभास और मुक्ति का एहसास दोनों देता है। जिस भाई को बहन न हो और जिस बहन को भाई न हो, उनको रक्षाबंधन के दिन एक अपूर्णता की अनुभूति होती है।


             परंपरा की सुरक्षा तो हमें करनी ही चाहिए क्योंकि-


'परंपरा जब लुप्त हो जाती है तो लोगों की आस्था के आधार टूट जाते हैं


उखड़े हुए पेड़ों के समान वे अपनी जड़ों से छूट जाते हैं।'


                   किंतु परंपरा को नए अर्थ में ढालने की तत्परता भी दिखानी चाहिए क्योंकि


'जो परंपरा बदलते समय के अनुसार नए अर्थ नहीं लेती


वो नई पीढ़ी के लिए अपने तजुर्बे का धरोहर नहीं देती।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹