🙏प्राणियों में सद्भाव हो🙏


संवाद


'सद्भावना की पोषक संस्कृत भाषा'


श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले रक्षाबंधन और संस्कृत दिवस की छांव में आने वाला 'सद्भावना दिवस' हमारे लिए विशेष महत्त्व का हो जाता है क्योंकि दुर्भावना की आग में देश झुलसा जा रहा है, सद्भावना की बारिश ही इस आग की तपिश को कम कर सकती है।सद्भावना दिवस 2024 की थीम है-'एकता में विविधता'. पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्री राजीव गांधी के जन्मदिवस को सद्भावना दिवस के रूप में मनाने के पीछे मूल मकसद यही है कि धर्म,जाति,भाषा,संस्कृति,परंपरा की विविधता वाले भारत देश में एकता को प्रतिष्ठित और प्रोत्साहित किया जाए।


संस्कृत भाषा में ऋषियों द्वारा दिए गए सूक्त सद्भाव को बढ़ाने में बहुत मददगार साबित हो सकते हैं क्योंकि उनकी घोषणा है कि 'एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति'. अर्थात् मूल तत्व एक ही है जिसे विविध नामों से पुकारा गया है। जैसे एक बीज के अंकुरित होने पर उसमें तने निकलते हैं,पत्तियां निकलती हैं, शाखाएं निकलती हैं,फूल निकलते हैं और फल निकलते हैं,उसी प्रकार एक बीज की हम सभी विविध अभिव्यक्तियां हैं। एकता में विविधता इसी का नाम है।


'विविधता में एकता' या 'एकता में विविधता' की अनुभूति के लिए दो रास्ते हैं- या तो बहुत गहराई में व्यक्ति जाए या बहुत ऊंचाई पर जाए। संस्कृत भाषा को देववाणी इसी अर्थ में कहा जाता है कि यह उन दिव्य लोगों के मुख से नि:सृत हुई है जिन्होंने अस्तित्व की गहराइयां और ऊंचाइयां एक साथ अनुभूत कीं। जब ऋषि बोलता है कि 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' तो इसका अर्थ हुआ कि सब कुछ अस्तित्व में ब्रह्म ही है। इस प्रकार की दृष्टि या भाव रखने से अपने पराए का भेद ही उत्पन्न नहीं होता है-


'सबमें तेरा रूप समाया,कौन है अपना कौन पराया'


इस परम सत्य का साक्षात्कार करने वाले लोगों के मुख से निकला कि सारी पृथ्वी अपना परिवार है-


'अयं निज परोवेति गणना लघुचेतसां


उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्।'


अर्थात् यह अपना है और यह पराया है ऐसी दृष्टि संकुचित लोगों की होती है, विराट लोगों के लिए तो पृथ्वी ही अपना परिवार है।


भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम मात्र नहीं होती है बल्कि अपने साथ एक संस्कार लिए हुए भी होती है। संस्कृत भाषा प्रेम की भाषा है जबकि आंग्ल भाषा व्यापार की भाषा है। प्रेम में कोई पराया नहीं होता और व्यापार में कोई अपना नहीं होता। सच्चिदानंद,ब्रह्म जैसे शब्द संस्कृत और संस्कृत से निकली हुई हिंदी आदि भाषाओं में ही पाए जा सकते हैं जबकि आंग्ल भाषा में हानि-लाभ वाले शब्द अधिकतर पाए जाते हैं।


संस्कृत ने 'मानव' शब्द दिया जो चेतना के करीब 'मन' शब्द से बना है जबकि अंग्रेजी में 'ह्यूमन' शब्द है जो ह्यूमस से निकला है जिसका अर्थ है मिट्टी। मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है,उसकी दूसरी कोई संभावना नहीं है किंतु 'मन' चेतना के करीब होने से बहुत संभावनाएं लिए हुए हैं। यदि मन ऊंचाइयों की ओर जाए तो इंसान भगवान बन जाता है और यदि मन नीचे की ओर जाए तो वह शैतान बन जाता है। एक तरफ राजीव गांधी की हत्या करने वाले नलिनी जैसे लोगों का मन है,जिसने उस सुंदर आकृति के चिथड़े उड़ा दिए,दूसरी तरफ अपने पति और पिता के हत्यारे को माफ कर देने वाला गांधी-परिवार का मन है जो दुर्भावना का जवाब सद्भावना से देता है।


सद्भावना दिवस उन लोगों को याद करने का दिवस है जो प्रेम में जीते हैं और जिनकी वाणी प्रेम से पगी हैं क्योंकि प्रेम की दरिया बहाने वाले संतों के मुख से यही निकलता है कि


'जात हमारी ब्रह्म है,मात-पिता है राम


गिरह हमारा सुन्न में,अनहद में बिसराम।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹


🙏सद्भावना दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं🙏