चीरहरण के युग में कृष्णचेतना का जन्म
August 25, 2024🙏श्रीकृष्णजन्माष्टमी की शुभकामना🙏
संवाद
'चीरहरण के युग में कृष्णचेतना का जन्म'
विज्ञान का आविष्कार सर्वसामान्य के लिए भी उतना ही सुलभ हो जाता है जितना आविष्कार करने वाले वैज्ञानिक के लिए किंतु चेतना का परिष्कार सिर्फ उसी के लिए सुलभ होता है जो साधना करता है और उतना ही सुलभ होता है जितनी साधना करता है। यही कारण है कि राम और कृष्ण जैसी चेतना को जन्म देने वाली धरती राम और कृष्ण जैसी चेतनाओं से आज लगभग शून्य दिखाई देती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम और मर्यादा का अतिक्रमण करने वाले कृष्ण के भक्तों की संख्या जितनी बड़ी होती जा रही है, उतना ही उनकी धरती पर बलात्कार और हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं जो इस शुभ अवसर पर चिंतनीय है। आज हर रोज बलात्कार और हिंसा की लगभग 100 घटनाओं की एफआईआर दर्ज हो रही है। क्या राम व कृष्ण जैसी आध्यात्मिक चेतना को जन्म देने वाला हिंदुस्तान यही है?
सर्वसुलभ कामुक और हिंसक साइट्स के जमाने में और विकृत मनवाले परिवेश में मर्यादा पुरुषोत्तम राम तो बहुत दूर के आदर्श लगते हैं लेकिन कृष्ण तो ऐसे लगते हैं मानो हमारी आंखों के सामने कीचड़ में कमल खिला हो।
आखिर 'कृष्ण' का अर्थ ही है जो सबको अपनी ओर आकर्षित कर ले। परस्पर विरोधी दिखाई देने वाली चीजें भी जहां आकर्षण के बड़े प्रभाव में अपने विरोध को भूलकर उनमें समाहित हो जाती हैं-उस परम चेतना का नाम कृष्ण है।
यही कारण है कि कंस के कारागृह में जिसका जन्म होता है, वह परम स्वतंत्रता का सबसे बड़ा उद्घोषक बन जाता है। रण को छोड़कर भागने वाला रणछोड़(कृष्ण) पलायन को तत्पर अर्जुन जैसे विषादग्रस्त को महाभारत युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार कर देता है। 'प्राण जाए पर वचन न जाई' की घोषणा करने वाले रघुकुल की धरती पर वह कृष्ण अपने सखा के कल्याण के लिए सभी के समक्ष की गई युद्ध में शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को दुनिया के सामने तोड़ देता है और भीष्म पर शस्त्र उठा लेता है। एकपत्नीव्रत का पालन करने वाले राम के देश में कृष्ण गोपियों के साथ रास रचाते हैं,राधा के साथ हृदय मिलाते हैं , रुक्मिणी के साथ विवाह रचाते हैं और मीरा के साथ भावनाओं का ज्वार उठाते हैं।
मुरलीधर होते हुए भी उनमें गिरिधर बनने की सामर्थ्य हैं।कृष्णा(द्रौपदी)के चीर हरण पर जब सारी सभा विवश हो गई तब गोपियों के वस्त्र चुराकर वृक्ष पर चढ़ने वाले कृष्ण ने ही नारी के शील की रक्षा की। सोलह हजार रानियों के स्वामी होने के बावजूद भी वे अच्युत हैं। संसार के हर रूप और हर रंग में रंग कर भी वे परम संन्यासी हैं तभी तो ज्ञानियों ने उन्हें पूर्णावतार कहा।
कृष्ण चेतना का मतलब मेरी समझ में यही है कि जीवन किसी सिद्धांत से, किसी परंपरा से और किसी प्रतिज्ञा से बड़ा है। वासुदेव राजा के घर जन्म लिए किंतु परिस्थिति ने गोपालक नंद बाबा के यहां भेज दिया तो बांसुरी बजाते हुए गाय चराने लगे। गोपी संग खिल रहे प्रेमपूर्ण जीवन से कर्तव्य निभाने की परिस्थिति आई तो गोकुल छोड़कर मथुरा में प्रेमरीति भूल कर राजनीति में लीन हो गए। जरासंध का अत्याचार बढ़ गया तो अपने प्रजा की रक्षा के लिए मथुरा को छोड़कर द्वारका जाकर नई नगरी बसा ली।जीवन की परिस्थिति हर पल बदल रही है, कृष्णचेतना उस बदली हुई परिस्थिति में अपने विवेक से ऐसी मन:स्थिति का निर्माण करती है कि उसके लिए कांटे भी फूल बन जाते हैं-
'यह कौन चमनपरस्त गुजरा है इन राहों से
मैंने कांटों पर भी होठों के निशान देखे हैं।'
कृष्ण भक्ति का सबसे बड़ा आंदोलन इस्कॉन को देखकर ऐसा लगता है कि कृष्ण चेतना ने सारे विश्व को अपने आगोश में ले लिया है। किंतु वास्तविक कृष्ण का जन्म भक्त बनने से नहीं उस भगवत्ता को प्राप्त करने से होता है। वह भगवत्ता जीवन के हर उत्तरदायित्व को स्वीकार करने पर उपलब्ध होती है।
आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उत्तरदायित्व से भागने वाली चेतनाएं अपने बुद्धिबल से स्वयं को निर्लिप्त बताने लगती हैं, तब मेरे हृदय के भाव इन शब्दों में उतर आए-
'आज के बुद्धिजीवी हर मामले में प्रायः तटस्थ रहते हैं
उससे भी बड़ा अपराध कि वे स्वयं को निर्लिप्त कहते हैं।
तटस्थता और निर्लिप्तता में बहुत अंतर है
जिम्मेदारियों से बचने का यह अनूठा जंतर है।
मेरी नजरों में तटस्थता नपुंसकता के बहुत करीब है
जहां साहस का अभाव है,आत्मबल बहुत गरीब है।
वरना वाल्मीकि भी क्रौंच वध पर आंखें मोड़ सकते थे
उठ रही क्षोभ और करुणा की धारा को तोड़ सकते थे।
किंतु बहेलिये के कृत्य ने उन्हें ऐसा झकझोरा
लांघ तटस्थता की सीमा उन्हें महाकाव्य की ओर मोड़ा।
जब कभी चीरहरण पर महारथी तटस्थ या विवश हो जाएंगे
उसी क्षण महाभारत के शंख व दुंदुभी बज जाएंगे।।'
'शिष्य-गुरू संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे🙏🌹
जय कन्हैया लाल की🙏🌹