संवाद


'अक्षर के देवता के देश में साक्षरता व शिक्षा'


2024 वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की थीम है- "बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देना:आपसी समझ और शांति के लिए साक्षरता". अक्षर के देवता गणेश की पूजा करने वाले देश को इस पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। भाषाविज्ञान का यह नियम है कि 'चार कोस पर पानी बदले,आठ कोस पर बानी'. इसलिए 'एक भाषा, एक देश' जैसी बात सोचने वाले लोग किसी छोटे देश में सफलता प्राप्त कर भी लें,किंतु भारत जैसे विविधता वाले बड़े देश में यह संभव नहीं दिखता। देववाणी संस्कृत के नाटकों में भी कुछ पात्र संस्कृत बोलते थे जबकि स्त्रियां तथा अन्य पात्र प्राकृत।


               स्रष्टा ने जिस सृष्टि की रचना की है उसमें विविध प्रकार के रंग भरे हैं जो जगत के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देते हैं। विविधता में एकता की समझ रखने वाले का हृदय कृतज्ञता से भर जाता है-


'एक रंग मांगा था तुमने सुरधनु का उपहार  दे दिया


एक रूप मांगा था तुमने यह सारा संसार दे दिया।'


                 अब ऐसे विविधता भरे संसार को समझने के लिए बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देना ही एकमात्र रास्ता है, इससे आपसी समझ और जगत की शांति बढ़ेगी।


           ज्ञानप्रधान भारतीय संस्कृति का सबसे ज्यादा जोर शिक्षा पर था जिसके परिणामस्वरुप नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय अस्तित्व में आए जिन्होंने विश्व की सारी प्रतिभाओं को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। इन शिक्षाकेंद्रों पर कई भाषाएं और कई विषय पढ़ाए जाते थे तभी तो इन शिक्षाकेंद्रों पर संस्कृत ग्रंथों के साथ पाली और प्राकृत के ग्रंथों की भी रचना हुई।


                  आज हमारे देश में शिक्षा सबसे उपेक्षित विषय है। जीडीपी का महज तीन प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने वाला देश बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कैसे आगे बढ़ सकता है? नई शिक्षा नीति में कहने को तो प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रावधान है, किंतु क्या हमने सभी जगह मातृभाषा पढ़ाने वाले शिक्षकों की व्यवस्था की है? दिल्ली जैसे राज्य ने अपनी जीडीपी का 24% शिक्षा पर निर्धारित करके शिक्षा के सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया है और वहां स्कूलों की स्थिति ही नहीं शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरी है तभी तो अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी मेलानिया ट्रंप वहां के हैप्पीनेस क्लास का अवलोकन करने के लिए आईं।


             अक्षर के देवता गणेश की पूजा करने वाले देश में निरक्षरता का अभिशाप आज भी बना हुआ है।इससे भी ज्यादा दुख की बात यह है कि तथाकथित साक्षर और शिक्षित लोगों की आपसी समझ और शांति के प्रति दृष्टिकोण अत्यंत गरीब है। कोई धर्म के आधार पर बांट रहा है तो कोई जाति के आधार पर। बलात्कार और हिंसा से देश शर्मसार हुआ जा रहा है और चुनावी माहौल ने शिक्षा के माहौल को तहस-नस कर दिया है। इलेक्शन-अर्जेंट की तर्ज पर एजुकेशन-अर्जेंट का ख्याल हमारी सोच में क्यूं नहीं आता?


            ऐसे में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमें याद आते हैं जिन्होंने 1893 में गणेश महोत्सव को सार्वजनिक रूप देते हुए उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, समाज को संगठित करने और आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बना दिया।


            आज गणेश-मंडपों में क्या हो रहा है? क्या अक्षर की आराधना और चेतना को ऊंचाई पर ले जाने की कोई साधना वहां चलती हैं? सभी से चंदा एकत्रित करके हमारे मोहल्ले में भी गणेश-मंडप सजा था। कुछ देर के लिए आरती की आवाज लाउडस्पीकर पर गूंजती थी किंतु बाकी समय फिल्मी गाने और डांस चलते थे। अंतिम दिन मुझे जबरदस्ती मंडप में बुलाया गया और कुछ बोलने को कहा गया। मैंने एक श्लोक बोला-


'वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।


मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।'


         सभी एकत्रित लोगों से पूछा कि यह श्लोक कहां से लिया गया है और इसका क्या अर्थ है? इसका जवाब नहीं मिला। इसका मतलब यह नहीं कि वहां पढ़े-लिखे लोग नहीं थे। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि गणेश मंडपों में तिलक ने सांस्कृतिक जागरण के लिए जो प्रयोग किए थे उससे हम दूर हो गए हैं। संस्कृत भाषा में विनायक की आराधना के साथ रामचरितमानस को शुरू करने वाले तुलसीदास जन-जन तक पहुंचने के लिए अवधी भाषा में उतर आए। बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा ऐसे मिलता है।


            आपसी समझ और शांति की सेवा में साक्षरता और शिक्षा तब लगती है जब लोकमान्य तिलक जैसी चेतनाएं गणेश मंडप में जाकर गणेश के बारे में जनता को बताती है कि वे एकदंत इसलिए कहलाए क्योंकि अपना एक दांत तोड़कर लेखनी बना ली और उससे महाभारत को लिखने का कार्य किया। गजानन-लंबोदर का प्रतीकात्मक संदेश है कि सूक्ष्म दृष्टि हो तो विपरीत को भी अपनी सेवा में लगाया जा सकता है अन्यथा अक्षर के देवता की हम पूजा करते रहेंगे और विवेकहीन- साक्षरता-शिक्षा के अभियान के साथ नासमझी और अशांति के कार्यों को करते हुए गणपति बप्पा मोरिया...... गाते रहेंगे।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹