संवाद


'स्वार्थ से परमार्थ की ओर'


24 सितंबर NSS का स्थापना दिवस है जिसका ध्येय वाक्य है-'Not me but you'(मैं नहीं बल्कि आप).       


           अहंकार प्रधान युग में पर की सत्ता कोई कैसे स्वीकार कर सकता है और उसे स्व से भी ऊपर कैसे रख सकता है?        


                यह नामुमकिन लगता है। किंतु यदि उन लोगों की तरफ आंखें उठाएं जिन्होंने अपनी आत्मा को जाना,उनके लिए दूसरे की पीड़ा प्रमुख हो गई और उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया,दूसरों के दुख दूर करने के लिए। विवेकानंद,सुभाषचंद्र बोस तो आज जिंदा नहीं है किंतु  देश और मानवता के लिए किए गए उनके त्याग और बलिदान के कार्य सदा के लिए अमर हो चुके हैं।         


               जिंदा लोगों में से कहेंगे तो मैं नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी का नाम अवश्य लेना चाहूंगा जो बचपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता हैं, जिन्होंने अनेक देशों में लाखों बच्चों को अपना सर्वस्व लुटा कर बाल मजदूरी से मुक्त कराया।   


           Not me but you वाक्य को जीना संभव लगता है ,जब मैं उन चिकित्साकर्मी, नर्सिंगकर्मी,पुलिसकर्मी, शिक्षकों और समाजसेवी कोरोना योद्धाओं को देखता हूं जिन्होंने अपने परिवार को छोड़कर परपीड़ा को हरने में अपना सब कुछ लुटा दिए।यदि टीवी चैनलों और समाचारपत्रों में सतत उनकी चर्चा होती और उनके कार्यों को दिखाया जाता तो युवा पीढ़ी प्रेरणा पाती। सेवा कार्य के लिए नई पीढ़ी को कहने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि वे स्वयं सेवा करके इस जीवन की सार्थकता पाते।       


            किंतु दुर्भाग्य इस बात का है कि कोरोना महामारी के संकट काल में सेवा कार्य में अपनी जान देने वाले और अपना दिन-रात लगाने वाले 5 देवदूतों का नाम हमारी जबान पर नहीं याद आ सकता किंतु ड्रग्स का धंधा करने वाले और घोटाला करने वाले 50 यमदूतों का नाम मीडिया कवरेज के कारण हर कोई गिना सकता है।          


               जब चर्चा दिन-रात अहंकारियों की होगी तो मैं मजबूत होगा। जरूरत है विमर्श को बदला जाए और दिन-रात चर्चा  सेवाभावी आत्मवानों की हो।  यह दायित्व शिक्षकों और शिक्षालयों को लेना होगा। उन्हें अपने आसपास और परिवेश से कम से कम 5 नामों को जुटाने का प्रयास करना चाहिए जो अंधेरे में चुपचाप मानवता की सेवा में अपने को भूलाए हुए और खपाए हुए हैं।      


              कोरोनायोद्धाओं के और नि:स्वार्थ-सेवाभावी लोगों के नाम पर अपनी गली, मोहल्ले का नामकरण करें। उनका साक्षात्कार युवा पीढ़ी से करवाएं। अन्यथा युवा पीढ़ी जिंदा आदर्श के अभाव में गहरे अंधकार में जी रही हैं और निराशा के गर्त में गिरती जा रही हैं।उनको लगता है कि "खाओ पियो और मौज करो" सिद्धांत वाले ही सब जगह छाए हुए हैं और धन,पद,प्रतिष्ठा पर अधिकार जमाए हुए हैं।       


              जबकि वास्तविकता यह है कि अपना सर्वस्व त्याग कर दूसरे के लिए जीने वाले एक व्यक्ति के समक्ष पर्दे पर झूठे महान रूप दिखाने वाले सैकड़ों तथाकथित बड़े लोग एकदम फीके हैं।     


              सेवा कार्य के लिए तन-मन-आत्मा से पवित्र लोगों को ही परमात्मा बड़े पुण्य कार्य का अधिकारी बनाता है। अहंकारविहीन आत्मवान लोगों से सेवा-कार्य वैसे ही होता है,जैसे बड़े वृक्षों से छाया और फल हमें स्वत: ही प्राप्त हो जाता है-


किस पर करते कृपा वृक्ष यदि अपना फल देते हैं?


गिरने से पहले उसको वे क्यों रोक नहीं लेते हैं??


             एक बार परमात्मा ने एक महात्मा को कहा कि मैं आपको वरदान देता हूं कि जिसे भी छू देंगे वह स्वस्थ हो जाएगा। महात्मा ने कहा कि इससे मेरा अहंकार बढ़ जाएगा। यदि वरदान देना है तो मेरी छाया को दीजिए ताकि दूसरा कोई स्वस्थ भी हो जाए और मुझे पता भी न चले। ऐसी भाव दशा से Not me but You मंत्र सिद्ध होता है। -


'शिष्य-गुरु संवाद'से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹