🙏बापू और लाल को नमन🙏


संवाद पुराना है,श्रद्धांजलि बहाना है


"महात्मा का हृदय कहां से लाएंगे?"


गांधी की प्रार्थना तो हम उधार ले लेंगे किंतु महात्मा का हृदय कहां से लाएंगे? झूठ,घृणा,हिंसा के माहौल में सत्य,प्रेम,अहिंसा का दीप कैसे जलाएंगे?


'एक हाथ में गीता दूसरे हाथ में कुरान कहां से लाऊं?


खुद की कमियों को देखने वाला ईमान कहां से लाऊं?'


गांधी की जितनी चर्चा बढ़ती जा रही है, सत्य-प्रेम-अहिंसा से उतनी ही दूरी भी बढ़ती जा रही है। एक तरफ नफरत के बीज दिलों में बोए जा रहे हैं,धार्मिक कट्टरता बढ़ती जा रही है और हेट- स्पीच पर स्वयं सुप्रीम कोर्ट सरकारों की भूमिका पर सवाल उठा रहा है तो दूसरी तरफ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और स्टैच्यू आफ इक्वालिटी की तर्ज पर महापुरुषों की प्रतिमा की संख्या और ऊंचाई भी बढ़ती जा रही हैं।


विश्व अहिंसा दिवस सबसे माकूल दिवस है,इस बात पर विचार करने का कि आखिर क्यों गांधी हमसे दूर होते जा रहे हैं और क्यूं हम हिंसा के रास्ते पर बढ़ते जा रहे हैं?


गांधीजी मूलतः धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे किंतु करुणावश उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में देश काल की जरूरतों के अनुसार सक्रिय भूमिका निभाई। मन-वचन-कर्म की उनकी एकता ने उन्हें मोहन से महात्मा बना दिया। 'ईशावास्यमिदं सर्वम्' की अपनी धारणा के कारण से वे अपने विरोधियों से भी प्रेम ही कर सकते थे ।


देश को स्वतंत्र कराने के क्रम में उन्होंने सर्वप्रथम व्यक्तियों को कई प्रकार की वासनाओं की गुलामी से स्वतंत्र होने का रास्ता दिखलाया ताकि सरकार के विरुद्ध अहिंसक तरीके से आंदोलन चलाया जा सके। इसी क्रम में सत्याग्रह का सिद्धांत व्यवहार में आया। प्रार्थना,उपवास,आत्मशुद्धि के उपाय इत्यादि को आज तक किसी ने राजनीतिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाया था किंतु गांधी ने इसे स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण अस्त्र बना दिया।


हृदय परिवर्तन पर ज्यादा जोर देने के कारण एक तरफ उन्हें कुछ लोग धार्मिक-संत मानते थे तो दूसरी तरफ सत्य के साथ प्रयोग के कारण उनको अव्यावहारिक-राजनीतिज्ञ मानने वालों की भी कमी नहीं थी।


मूलत:धार्मिक प्रवृत्ति वाले गांधी आज के दौर में मूलतः राजनीतिक प्रवृत्ति वाले लोगों के हाथों में एक साधन मात्र बनकर रह गए हैं। ऐसे लोग महात्मा को ही नहीं परमात्मा को भी सत्ता प्राप्ति के लिए साधन बना ले रहे हैं-


देते हैं भगवान को धोखा, इंसां को क्या छोड़ेंगे?


धर्म की आड़ में इनकी राजनीति परवान चढ़ती जा रही है और देश टूटने की ओर बढ़ता जा रहा है। महात्मा के समान हृदय की विशालता पाया जाना तो इन सत्तालोलुप राजनीतिज्ञों में बहुत दूर की बात है, इनके कृत्यों को देखकर लगता है कि हृदय ही नहीं बचा है।


गांधी तो धार्मिक हृदय लेकर राजनीति को सेवा का माध्यम मात्र बनाकर पूरा जीवन संघर्ष करते हुए जीए और देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर गए। आज विशुद्ध राजनीतिक प्रवृत्ति वाले लोग धर्म को और धार्मिक प्रार्थनाओं को विवाद का विषय बना कर लोगों के बीच खाई को बढ़ा रहे हैं।


धार्मिक स्थलों पर जाकर फोटो खिंचवाने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता और न ही दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने से कोई धार्मिक हो पाता है।


गांधी के अनुसार तो दूसरे के धर्म को भी अपने धर्म के समान आदर देने से और दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझने से हृदय में धर्म का उदय होता है।


गांधी जी कहा करते थे कि धर्म के बिना राजनीति विधवा के समान है। किंतु उनके लिए धर्म के मायने वे ही नहीं थे जो आज लिया जा रहा है। गांधी के लिए धर्म के मायने थे-सत्य प्रेम अहिंसा।


जब तक महात्मा के समान शुद्ध और सात्विक हृदय वाले व्यक्तित्व अधिकाधिक संख्या में सिर्फ सेवा हेतु राजनीति में नहीं आएंगे तब तक इंसान को इंसान से जोड़ने वाला सच्चा धर्म सिर्फ राजनीतिक नारों में या दिखावटी प्रार्थनाओं में सिमटा रहेगा।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ. सर्वजीत दुबे


गांधी शास्त्री जयंती की शुभकामना🙏🌹