🙏विनम्र-श्रद्धांजलि अनमोल रतन को🙏


संवाद


'संपत्ति और हृदय से समृद्ध रतन'


'समाजवाद जब कभी भी आएगा तो पूंजीवाद के रास्ते से आएगा' रहस्यदर्शी ओशो की जब यह बात मैंने पढ़ी थी तो मेरी समझ में नहीं आया था। किंतु रतन टाटा की मौत के बाद उनके लिए उमड़े भावनाओं का ज्वार देखकर और उनके जीवन के विभिन्न दृष्टांतों को पढ़कर ओशो की कही बात समझ में आने लगी।


       दरिद्रनारायण की धारणा को मानने वाला भारतीय मानस पूंजीपति को एक शोषक के रूप में देखता है और यह दृष्टि भारत की गरीबी का एक प्रमुख कारण है। साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव के कारण और गांधी जी द्वारा गरीबी को महिमामंडित किए जाने के कारण हम उद्योगों और उद्योगपतियों के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण नहीं अपना सके। वर्ग-संघर्ष की मार्क्सवादी दृष्टि को अपनाने वाले सोवियत संघ जैसे देश विखंडित हो गए जबकि पूंजीवादी देश विकसित देशों की श्रेणी में आ गए। लेकिन भारत में आज भी चुनाव के समय में पूंजीपति मुख्य रूप से निशाने पर रहते हैं। चंद पूंजीपतियों की निंदा करके असंख्य गरीबों का वोट तो हासिल किया जा सकता है किंतु इससे भारत की गरीबी को दूर नहीं किया जा सकता। गरीबी को दूर करने के लिए रतन टाटा जैसे व्यक्तित्व से संपत्ति पैदा करने की कला भी सीखनी होगी और अर्जित संपत्ति को खुले हाथ से बांटने की कला भी सीखनी होगी।


            रतन टाटा के जीवन के बारे में जानकर भारतीय संस्कृति का अत्यंत महत्वपूर्ण 'श्रेष्ठी' शब्द स्मरण में आ गया। प्राचीन काल में अपने व्यापार के माध्यम से अकूत धन संपदा अर्जित करने वाले श्रेष्ठीजन ही शिक्षा और संस्कृति के मुख्य संवाहक रहे थे। भारत जब सोने की चिड़िया था,तभी उसे विश्वगुरु के रूप में संसार जानता था। किंतु कालक्रम से 'सेठ' शब्द समादृत नहीं रहा और अब तो निंदासूचक बना दिया गया जो समाज और राष्ट्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।


            संपत्ति पैदा करने वालों को यदि श्रेष्ठ निगाहों से नहीं देखा जाता तो देश कभी भी समृद्ध नहीं हो सकेगा। रतन टाटा को जानने के बाद भारत के अवचेतन-मन में बसी पूंजीपतियों के प्रति निंदापरक दृष्टि बदल जानी चाहिए। जिस प्रकार महाराणा प्रताप की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए भामाशाह ने अपना धन सहर्ष समर्पित कर इतिहास में अपना स्थान दर्ज कर लिया था, उसी प्रकार रतन टाटा ने अपनी संपत्ति का 65% हिस्सा कल्याण कार्यों के लिए दान करके इतिहास में अपना स्थान दर्ज कर लिया है। मानव कल्याण ही नहीं बल्कि पशु कल्याण के लिए भी उनके हृदय में जो संवेदना थी, उसकी मिसाल लाखों करोड़ों आत्माओं को प्रेरित करती रहेगी।


         भारत के इस अद्भुत रतन से  युवाओं को सीखना होगा कि घाटे में जाने वाली कंपनियों को भी मुनाफे में बदलने की कला क्या होती है। अमीरी के महल में भी रहने वाले राजा जनक की तरह फकीरी के हृदय को कैसे जिंदा रखा जा सकता है? बकिंघम पैलेस में मिलने वाले अपने सम्मान समारोह को भी अपने कुत्ते की तबीयत खराब होने पर कैसे छोड़ा जा सकता है?


'हमारे बाद अब महफिल में अफसाने बयां होंगे


बहारें हमको ढूंढेंगी न जाने हम कहां होंगे...


              तन तो मिट्टी है एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा किंतु संपत्ति के साथ संवेदनाओं से समृद्ध यह रतन-मन इन फिजाओं में घूमता रहेगा और भारत को अपने बुद्धि बल से संपत्ति सृजित करने के साथ संवेदनापूर्णहृदय-बल से समृद्ध होने का संदेश देता रहेगा.....


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹