संवाद


'क्या विजयादशमी और दुर्गापूजा साथ नहीं?'


बड़ों की डांट में भी आशीर्वाद छुपा होता है।विजयादशमी पर एक लेख मैंने लिखा कि नौ दिनों तक शक्ति की उपासना करने के बाद श्री राम की विजय हुई, जिसके उपलक्ष्य में विजयादशमी मनाई जाती है।प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक व तकनीकी सलाहकार प्रोफेसर डॉक्टर ओमप्रकाश पांडे जी का फोन आया। उन्होंने डांटते हुए कहा कि आपका आज का यह लेख तथ्य नहीं है।


           नई शिक्षा नीति के प्रमुख आर्किटेक्ट में से एक लब्धप्रतिष्ठित विद्वान ओम् सर को सादर नमस्कार करते हुए मैंने निवेदन किया कि तथ्य और सत्य बताने की कृपा करें। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस के कई श्लोकों और चौपाइयों को उद्धृत करते हुए उन्होंने बताया कि तिथि,वार,नक्षत्र किसी भी हिसाब से विजयादशमी और 'नवरात्रि की दुर्गापूजा' के साथ आने का संबंध नहीं है। अंग्रेजों द्वारा बंगाल में होने वाली दुर्गा पूजा का संबंध अवध में होने वाली विजयादशमी के साथ एक विशेष प्रयोजन से जोड़कर प्रचारित कर दिया गया।


            भारतीय अपने ग्रंथों का गहराई से अध्ययन नहीं करते जिसका परिणाम हुआ कि कई गलत परंपरा चल रही हैं। संस्कृत का आचार्य होने के नाते आपका दायित्व है कि वैदिक ग्रन्थों और रामायण,महाभारत इत्यादि का सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन कर प्रचलित मान्यताओं का खंडन करें। ज्ञान और प्रेम से सिक्त धाराप्रवाह उनकी वाणी में मैं बहुत देर तक डूबता उतराता रहा-


'कई बार डूबे,कई बार उबरे, कई बार साहिल से टकरा आए


तलाशोतलब में वो लज्जत मिली है,दुआ कर रहा हूं कि मंजिल ना आए।'


        गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय(GGTU) के पूर्व कुलपति प्रो.डॉ. इंद्रवर्धन त्रिवेदी जी के आमंत्रण पर बांसवाड़ा में आकर प्रो.ओम् प्रकाश पांडे जी ने 'सृष्टि का रहस्य' विषयक जो व्याख्यान दिया था, वह आज भी मेरे दिलोदिमाग में छाया रहता है। घंटों तक उन्होंने पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से ज्ञान की ऐसी धारा प्रवाहित की जिसमें काल का बोध ना रहा ...... 'ज्ञानम् अनंतम् आनंदम्।'


         उनके स्वागत उद्बोधन का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था और मेरे द्वारा उठाए गए प्रश्नों से उनका ऐसा सान्निध्य प्राप्त हुआ कि मैं लगातार अपने लेख को उनके पास भेजता रहा। संकोची स्वभाव होने के कारण कभी उनसे वार्त्ता करने की हिम्मत मैं न जुटा सका किंतु इस विजयादशमी ने ऐसा सौभाग्य दिया कि स्वयं ज्ञान गंगा द्वार पर आ गई।


          भारतीय संस्कृति की एक रहस्यमय बात समझ में आई कि शिष्य ही गुरु को नहीं ढूंढता है बल्कि गुरु भी शिष्य को ढूंढता रहता है। साहित्य अकादमी, वेद रत्न सम्मान, सरस्वती सम्मान और बाल्मीकि सम्मान से नवाजे जा चुके पांडे सर ने मुझे कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के संबंध में पूछे गए आपके अनेक प्रश्नों का उत्तर मैं बांसवाड़ा में आकर देने के लिए तैयार हूं। मुझे अपने कानों पर भरोसा न हुआ। मैंने पूछा कि सर! कब आपको समय मिलेगा इतनी दूर बांसवाड़ा में आने का? उन्होंने कहा कि इसी माह....।


            ज्ञान का एक स्वभाव होता है कि वह बंटना चाहता है। इसीलिए कई बुद्धपुरुष जंगल के एकांत में जिस ज्ञान को प्राप्त किए,उसे बांटने के लिए नगर के कोलाहल के बीच आ गए। नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा को स्थान दिलाने वाले कई विदेशी विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर का दायित्व निभा रहे परमादरणीय पांडेय सर अस्वस्थ होने के बावजूद अपनी ज्ञाननिधि को बांटना चाहते हैं ;-


'किस पर करते कृपा वृक्ष यदि अपना फल देते हैं?


गिरने से उसको संभाल क्यों रोक नहीं लेते हैं?


सरिता देती वारि कि पाकर उसे सुपूरित घन हो


बरसे मेघ,भरे फिर सरिता,उदित नया जीवन हो।'


            वे तो सहर्ष बांटना चाहते हैं किंतु इससे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि 'क्या हम ज्ञान के प्यासे हैं?'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹