🙏विश्व विद्यार्थी दिवस की शुभकामना🙏
संवाद
'स्वप्नद्रष्टा कलाम'
कलाम साहब के जीवन का एक केंद्रीय बिंदु है-सपना। वे बार-बार नई पीढ़ी को बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित करते रहे-
'खुले नयन से सपने देखो, बंद नयन से अपने
सपने तो रहते हैं बाहर , भीतर रहते अपने।'
उनके अनुसार सपने वे नहीं होते जो नींद में आते हैं, बल्कि सपने वे होते हैं जो नींद आने ही नहीं देते।
मैं जिस जनजातीय बांसवाड़ा क्षेत्र में हूं, वहां की युवा पीढ़ी की आंखों में इस सपने का सर्वथा अभाव हो गया है। नए-नए स्कूल और कॉलेज खोले जा रहे हैं,यहां तक की विश्वविद्यालय भी खुल गया किंतु युवाओं की आंखों में हम सपने नहीं जगा पाए। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि करोड़ों की लागत से बना हुआ इंजीनियरिंग कॉलेज विद्यार्थी के लिए तरसता है। सरकारी सुविधाएं जितनी बढ़ती जा रही हैं, उतनी ही नई पीढ़ी बड़े सपने से दूर होती जा रही है।
क्या सुविधाओं का सपने से कोई रिश्ता है? कलाम साहब के जीवन को देखने से तो ऐसा लगता है कि सुविधाओं की कमी से सपने और ज्यादा प्रबल हो जाते हैं। तभी तो वे 4:00 बजे सुबह स्नान करके अपने शिक्षक के पास पढ़ने के लिए पहुंच जाते थे क्योंकि शिक्षक के द्वारा नि:शुल्क शिक्षा की यही शर्त रखी गई थी। पैसे का अभाव दूर करने के लिए वे न्यूज़पेपर बांटते ही नहीं थे बल्कि ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए उसे पढ़ भी जाते थे। गांव में उपलब्ध एक मनिक्कम की लाइब्रेरी उनकी पसंदीदा जगह थी,जहां पर वे किताबों और पत्र-पत्रिकाओं को ढूंढते रहते थे।
बांसवाड़ा के युवा तो किताबों को खरीदते ही नहीं। पासबुक में भी लास्ट मिनिट पासबुक इनका आदर्श हो गया है। कॉलेज के विद्यार्थियों को शुद्ध लिखना और पढ़ना नहीं आ रहा। उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन के समय उनके रूप को देखकर परीक्षक भी सपने और यथार्थ के अंतर को भूलते जा रहे हैं। महाकवि भारवि ने एक वर्ण से श्लोक की रचना करके अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था-
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥
अर्थात् जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है,वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है।
इसी प्रकार की प्रतिभा का परिचय यहां के कुछ विद्यार्थी पूरी उत्तरपुस्तिका में न न न न ....लिख कर दे रहे हैं। आखिर वे कहीं यह तो नहीं कहना चाह रहे हैं कि शिक्षा नहीं चाहिए,सपना नहीं चाहिए....।
शिक्षा एक बहुत बड़ी बेचैनी देता है। कलाम साहब के शिक्षक अय्यर साहब उनको समुद्र के किनारे ले गए और उड़ते पंछियों को दिखाकर एक बेचैनी पैदा की -
'परों में शक्ति हो तो नाप लो उपलब्ध नभ सारा
उड़ानों के लिए पंछी गगन मांगा नहीं करते
जिसे मन प्राण से चाहा निमंत्रण के बिना उसके
सपन तो खुद-ब-खुद आते नयन मांगा नहीं करते।'
सम्यक शिक्षा की परिभाषा मेरी नजर में यही है कि बीज में वृक्ष होने के सपने जगा देती है। यदि आंखों की भूमि बंजर हो या उसमें नमी की कमी हो तो ही ख्वाब उसमें नहीं पलते-
'भूमि आंखों की है बंजर या नमी की है कमी?
ख्वाब आंखों में किसी के किसलिए पलते नहीं??
इस क्षेत्र के आचार्यों की पीड़ा यही है कि- शिक्षालय सूने क्यों हो गए?, शिक्षार्थी दूर क्यों हो गए?,हमारी शिक्षा नीति सपने जगाने में क्यों विफल हो गई?,विद्या की आराधना में यहां के विद्यार्थी अपना पुरुषार्थ क्यूं नहीं लगाते?
'है नहीं परिणाम केवल आदमी प्रारब्ध का
यह तरु पुरुषार्थ के सींचे बिना फलते नहीं।'
जीवन एक बीज है जो पुरुषार्थ के जल से सींचने पर वृक्ष बनता है। शिक्षक बीज में ही वृक्ष को देख लेता है और विद्यार्थी के सपनों को जगा देता है। वृक्ष बनने पर विद्यार्थी को पता चलता है कि सपना दिखाने वाला शिक्षक कितना महत्वपूर्ण था। कलाम साहब को विद्या और विद्यार्थी से इतना अनुराग था कि उनके जन्मदिवस को यूएनओ ने 'विश्व विद्यार्थी दिवस' के रूप में मनाने का 2010 में निर्णय लिया।
एक बार जब उनसे पूछा गया कि आपको एक राष्ट्रपति के रूप में याद किया जाए या मिसाइल मैन के रूप में या एक वैज्ञानिक के रूप में? तो उनका जवाब बहुत प्यारा था-एक शिक्षक के रूप। एक शिक्षक ने उनकी आंखों में सपने जगाए थे और कलाम साहब ने राष्ट्र की आंखों में सपने जगा दिए।
काश!वो सपने बांसवाड़ा के विद्यार्थियों की आंखों में भी जग जाए।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹