संवाद
'पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता: सरकारों से ज्यादा नागरिक जिम्मेदार'
पर्यावरण (ecology) शब्द जर्मन 'ackologie' से निष्पन है जिसका प्रयोग जर्मन विद्वान अर्नस्ट हैकल द्वारा 1990 में किया गया। यह यवन शब्द 'oikos' शब्द से व्युत्पन्न है जो संस्कृत भाषा के 'ओक' शब्द से गृहीत है। पर्यावरण का अर्थ है चारों ओर जो भी चेतन और अचेतन हमें घेरे हुए हैं। संस्कृत के ग्रंथों में 'पर्यावरण' शब्द नहीं मिलता है। भारतीय संस्कृति की दृष्टि में प्रकृति ही पर्यावरण है।
प्रकृति को आज इस हद तक नुकसान पहुंचा दिया गया है कि पारिस्थितिक संकट को अंग्रेजी में 'इकोसाइड' नाम दिया गया है जो 'सुसाइड' से ध्वनिसाम्य रखता है।
हम जीवन में तटस्थ नहीं रह सकते। प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वे पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता के संबंध में अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें। जीवन हम सबका हैं और यह पर्यावरण सबसे जुड़ा हुआ है। सिर्फ सरकारों के भरोसे इन बातों को नहीं छोड़ा जा सकता। किंतु सरकारें भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकतीं। सरकारों के पास शक्ति और संसाधन दोनों होते हैं तथा नियम-कानून बनाने का अधिकार व उन्हें लागू कराने का अधिकार उन्हीं के पास होता हैं। सरकारें तो 70% अपने जीडीपी का रक्षा पर खर्च करके और 5% के लगभग शिक्षा पर खर्च करके अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कर दी हैं। ऐसी नीतियों के कारण पर्यावरण ही संकट में नहीं है बल्कि अगली पीढ़ियां उससे ज्यादा संकट में है।
प्रकृति को तो बचाना ही होगा और अगली पीढ़ियों को जागरूक बनाने के लिए शिक्षा पर बहुत बड़ा संसाधन लगाना होगा।प्रकृति की संगति मानव को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बनाएगी। पहले शिक्षालय प्रकृति की गोद में चलते थे जबकि आज के शिक्षालय कंक्रीट के भवनों में चलते हैं। इसलिए एक हृदयहीन स्थिति पैदा हो गई है कि एक तरफ वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ छोटे बच्चों के लिए क्रेच भी बढ़ते जा रहे हैं-
'बहलाकर छोड़ आते हैं लोग वृद्धाश्रम में मां-बाप को
अपने घरों में अब पुराना सामान कौन रखता है?
हर एक को दिखता है दूसरे में एक बेईमान इंसान
पर खुद के भीतर अब ईमान कौन रखता है?'
विराट के हम सभी हिस्से हैं और बुद्धि के कारण अलग-थलग होकर अन्य को साधन बना रहे हैं जो जीवन का संतुलन खराब कर रहे हैं। पद्म पुराण कहता है कि 10 कूप के बराबर एक बावड़ी होती है , 10 बावड़ी एक तालाब के बराबर होती है , 10 तालाब एक पुत्र के बराबर होता है और 10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है-
दश कूप समो वापी ,दश वापी समो हृद्
दश हृद समो पुत्र:, दश पुत्र समो द्रूम:।
पद्म पुराण की यह उक्ति विचारणीय है क्योंकि आज विज्ञान साबित कर रहा है कि पेड़ के बिना मानव नहीं बच सकता।
सद्गुरु कहते हैं कि पृथ्वी हमारी नहीं है बल्कि हम पृथ्वी के हैं। सरकारें कहती हैं कि आर्थिक विकास दर से जीवन समृद्ध होगा किंतु जानने वाले कहते हैं कि पृथ्वी जितनी हरी भरी होगी उतना जीवन समृद्ध होगा। जो सांस हम छोड़ते हैं वह पेड़ ले रहा है और जो श्वास पेड़ छोड़ते हैं वह हम ले रहे हैं।हमारा जीवन परस्पर जुड़ा है।
भारतीय संस्कृति ने प्रकृति के सारे तत्वों को देवी देवता के रूप में प्रतिष्ठित कर उनसे अपना अभिन्न संबंध बनाया। पृथ्वी हमारी माता है तो आकाश हमारा पिता है-इस भाव को सरकारों को भी आत्मसात करना होगा और नागरिकों को भी समझना होगा।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹