🙏धन्यतेरस की शुभकामना🙏
संवाद
'घटना या दुर्घटना?'
हमलोगों के जीवन में आसपास जो घटना या दुर्घटना घटती है,उससे कोई गहरा संदेश हम ग्रहण नहीं कर पाते। क्योंकि दूरदृष्टि वाले बुद्धपुरुष का संगसाथ नहीं रहा। अभी मेरी मैडम के घर में एक घटना घटी जिसे सुनकर कलेजा मुंह को आ गया। किंतु दिन बीतते ही बात आई गई हो गई। लेकिन मेरे मन में घटना के तह तक जाने की जिज्ञासा हट ही नहीं रही।
दुर्घटना इतनी बड़ी कि महंगी लग्जरी गाड़ी चकनाचूर हो गई किंतु आश्चर्य की बात कि गाड़ी में बैठे पांच परिजनों में से एक को भी खरोंच तक नहीं आई।उसी स्थान पर कई साल पहले उन्हीं का एक्सीडेंट हुआ था,जिसमें हड्डी टूट जाने से अपार कष्ट हुआ था ; किंतु इस बार तो कष्ट कुछ नहीं किंतु आश्चर्य बहुत बड़ा हुआ। एक नीलगाय फुल स्पीड गाड़ी के सामने अचानक आ गई और गाड़ी का पुर्जा-पुर्जा ऐसा बिखरा कि क्रेन से गाड़ी को उठाना पड़ा। दुर्घटनास्थल पर गांव के लोग एक नजर गाड़ी की तरफ देखते थे और दूसरी नजर गाड़ी में बैठे लोगों की तरफ।
गाड़ी देवी-जागरण की पूजा के लिए अपने भाई के घर जा रही थी।नीलगाय गाड़ी से टकराकर मर गई, इस अफसोस से सब मरे जा रहे हैं और देवी की कृपा से किसी का बालबांका भी नहीं हुआ, इस दैवीय-अनुग्रह के भाव से सब दबे जा रहे हैं।
परिजनों की तरफ से सोचूं तो यह घटना है और नीलगाय की तरफ से सोचूं तो यह दुर्घटना है ; बुद्धपुरुष की तरफ से सोचूं तो इसमें कई जन्मों के पाप और पुण्य के कर्मों का हिसाब-किताब है।
बिहार के वेणुवन में भगवान बुद्ध अपने शिष्य आनंद के साथ जा रहे थे और एक सुअरी को देखकर ठिठक कर रुक गए और मुस्कुराए। आनंद बेचैन हुआ और सुअरी को देखकर उनके मुस्कुराने का कारण पूछा। बुद्ध ने सुअरी के पिछले तीन जन्मों की कथा सुना दी। आनंद जिसे क्षणिक घटना समझ रहा था, वह तो शाश्वत-स्थापना का सूत्र निकला।
वह सुअरी अपने पहले जन्म में मुर्गी थी। किसी ध्यानी पुरुष की कुटिया के पास रहती थी तो ध्यान में रस लेती थी। इस पुण्य के कारण से वह अगले जन्म में राजकुमारी हो गई। राजकुमारी होने के बावजूद भी संसार का सुख उसे क्षणिक लगता था और मन गहरे ध्यान में डूबता था। इस गहरे बोध के कारण वह स्वर्ग में अप्सरा हो गई। स्वर्ग के स्थाई सुख में वह डूब गई और भोगविलास में खो गई। इस कारण से इस जन्म में उसे सुअरी का जीवन मिला।
बुद्ध व आनंद की वार्ता और सुअरी की कथा को पढ़ने के बाद मैं नीलगाय और परिजनों के पाप-पुण्य को लेकर ऊहापोह में पड़ गया हूं। एक छोटा सा कर्म हमारा जन्म निर्धारित करता है और हम जानें अनजानें कितने प्रकार के कर्मों के जाल फैलाते चले जाते हैं-
'ये हश्र है हर बशर का
नेकी बदी का ऐ दिल शुमार होगा
वहां न कोई अजीज होगा,
किसी का न कोई यार होगा।
कहीं जरूरत मेरी जहां को
और कहीं मुझे आरजू ए दुनिया
बुझेगी जब तक न प्यास सबकी
जनम यहां बार-बार होगा।।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹