🙏ऊं सूर्याय नमः🙏


संवाद


'सूर्य-पूजा का अद्भुत पर्व छठ'


प्रकृति पूजक देश भारत के पूर्वांचल से शुरू हुआ छठ पर्व की वैज्ञानिकता और दार्शनिकता इसे एक दिन विश्वव्यापी बनाएगी। अभी तो भारत के भिन्न-भिन्न भागों में इसकी महत्ता बढ़ती जा रही है।


         छठ पर्व की वैज्ञानिकता :- भारतीय दृष्टि अद्वैत की है अर्थात् हम दो नहीं है, एक ही मूल तत्व से हम सब बने हैं।वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य से समस्त सौर परिवार का जन्म हुआ-पृथ्वी,मंगल,बृहस्पति,शनि इत्यादि। फिर पृथ्वी से मनुष्य,अन्य जीवों तथा पेड़-पौधों का जन्म हुआ। दूसरे शब्दों में हम कहें तो सूर्य मां है और पृथ्वी उसकी बेटी और फिर हम सभी पृथ्वी की संतानें।'पुत्रोअहम् पृथिव्या:' में इसी सत्य की ऋषि ने उद्घोषणा की है।


              सूर्य पृथ्वी से बहुत दूर भले दिखाई देता हो किंतु पृथ्वी के रग रग में सूर्य समाया हुआ है। इतना ही नहीं हमारे रक्त के एक-एक कण में और हड्डी के एक-एक टुकड़े में सूर्य समाविष्ट है। जिस दिन सूर्य बुझ जाएगा, उस दिन पृथ्वी पर हमारा जीवन भी बुझ जाएगा। सूर्य के उगने के साथ ही पृथ्वी पर जीवन भी उग जाता है,खिल जाता है।वस्तुत: सूर्य के साथ हमारा सहानुभूति(sympathy)का ही नहीं बल्कि समानुभूति (empathy)का भी रिश्ता है।


              आज वैज्ञानिक और चिकित्सक भी मानते हैं कि यदि जलाशय साफ सुथरा रहे तो अर्घ्य देते समय सूर्य की किरणें अर्घ्य जल से गुजरकर जब शरीर को स्पर्श करती हैं तो कुष्ठ-रोग जैसा चर्म रोग भी सही हो जाता है। मयूर कवि ने 'सूर्य शतक' लिखकर इसी पद्धति से अपना कुष्ठ रोग सही किया था।


         वैज्ञानिकता से भी अद्भुत है छठ पर्व की दार्शनिकता :- सारी दुनिया सिर्फ उगते हुए सूरज की पूजा करती है किंतु छठ पर्व में सबसे पहला अर्घ्य डूबते हुए सूरज को दिया जाता है। फिर रात भर सूर्य की आराधना कर उगते हुए सूर्य की प्रतीक्षा की जाती है। यह जगत को एक विशेष संदेश है कि अवसान और उत्थान प्रकृति का सहज नियम है। डूबा हुआ भाग्य का सूरज एक दिन अवश्य उगेगा। प्रलय के बाद सृष्टि और फिर सृष्टि के बाद प्रलय यह जगत का नियम है। इसको हमारी संस्कृति ने श्रद्धा नाम दिया है। किसी कवि के शब्दों में कहें तो-


'मैं पाबगिल हूं पर सितारों की बात करता हूं


खिजांजदा हूं पर बहारों की बात करता हूं


दबी हुई है जहां सोज आज सीने में


मैं राख हूं पर शरारों की बात करता हूं।'


अर्थात् डूबते हुए सूरज के बाद रात का अंधकार उगते हुए सूरज की विशेष याद दिलाता है -यह है छठ पर्व की दार्शनिकता।


           छठ पर्व के अवसर पर जैसी बाह्य-शुद्धि और आंतरिक-शुद्धि व्रतियों व श्रद्धालुओं में देखी जाती हैं , वैसी शुद्धि दुर्लभ है। पर्यावरण प्रदूषण के इस जमाने में पर्यावरण शुद्धि का सबसे बड़ा यज्ञ मेरी नजर में सूर्य पूजा का पर्व छठ हो सकता है। बस जरूरत है कि छठ पर्व की परंपरा में छुपी हुई वैज्ञानिकता और दार्शनिकता लोगों को समझाया जा सके-


'खोल आंख जमीं देख ,फलक देख  फजा देख


मशरिक से  उभरते  हुए  सूरज  को  जरा  देख।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे


छठ पर्व की शुभकामना🙏🌹