संवाद


'कविताओं से दर्द का इलाज'


पोएम-पैथी (Poem-pathy) इलाज की एक नई तकनीक लंदन में काफी लोकप्रिय हो रही है जो बुजुर्गों के अकेलापन,उदासी और एंग्जाइटी के दर्द में काफी कारगर साबित हो रही है। हमने एलोपैथी,होम्योपैथी,नेचुरोपैथी आदि का नाम तो सुना था और उसका प्रयोग भी किया, किंतु पोएमपैथी का नाम ही नहीं सुना ,प्रयोग की तो बात ही क्या?


लेकिन लंदन में तो पोएम फार्मेसी (Poem- pharmacy)खुल गई,जहां जाकर लोग कविताएं पढ़ते हैं,एक दूसरे को सुनाते हैं और कविताओं पर बात करते हैं। इससे 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' की अनुभूति लोगों को हो रही है। बड़ी संख्या में बुजुर्ग ही नहीं युवा भी इससे जुड़ने लगे हैं और लंदन से बाहर के भी लोग यहां आने लगे हैं।


           'पोएम फार्मेसी एबुलियंस' (Poem pharmacy ebulliance)की संस्थापक डेब अल्मा ने तो अपने फार्मेसी की टेबलों पर रखी बोतलों पर भी कविताएं  चस्पा कर रखी हैं। उन्हें विश्वास है कि मनोरोग के इलाज में पोएम फार्मेसी मील का पत्थर साबित होगी। हो सकता है कि पोएम फार्मेसी के लिए उन्हें कल नोबेल प्राइज भी मिल जाए किंतु यह कोई अभिनव प्रयोग नहीं है।


         हृदय में कई भाव हैं-रति,हास,शोक,क्रोध, उत्साह,भय,जुगुप्सा,विस्मय इत्यादि-


'रतिर्हासश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा


जुगुप्सा विस्मयश्चेति स्थायिभावाः प्रकीर्तिताः।'


इनको हमारे काव्यशास्त्रों में स्थायी-भाव कहा गया है। ये भाव हमारे मन में उमड़ते हैं,घुमड़ते हैं और ज्यादा  सघनीभूत होने पर बादल की तरह बरसना चाहते हैं। जब समाज और शासन के दबाव और भय से इन भावों को अभिव्यक्त नहीं होने दिया जाता तो ये भाव मनोरोग में बदल जाते हैं। इन भावों की सर्वोच्च अभिव्यक्ति देने वाले वेद के ऋषियों को हमारी संस्कृति में 'कवि' नाम भी दिया गया। विश्व की किसी अन्य संस्कृति में कवि के लिए दो संबोधन नहीं है-कवि और ऋषि।


        कवि तो आजकल बहुत दिखाई दे जाते हैं किंतु ऋषि कम। कवि के पास बहुत उच्च कोटि के शब्द हो सकते हैं किंतु ऋषि के पास उच्च कोटि के शब्दों के साथ उच्च कोटि का जीवन भी होता है। इसलिए कवि होना तो भाग्य हैं किंतु ऋषि होना सौभाग्य।


           पोएम फार्मेसी की आवश्यकता के संबंध में एक बात महत्वपूर्ण है कि जैसे-जैसे शिक्षा और समृद्धि बढ़ी हैं हैं,वैसे-वैसे व्यक्ति की तन्हाइयां, उदासियां और मानसिक बीमारियां भी बढ़ी हैं। उसका मूल कारण है कि भावों को सुनने वाला,समझने वाला दुर्लभ हो गया-


'पहले मन की बात सबसे करते थे


पर आजकल छुपाने लगे हैं


हम खुद पर तरस खाने लगे हैं


अब ऐसे भी दिन आने लगे हैं।'


            शिक्षासंपन्न और सुविधासंपन्न लोगों के लिए तो यह पोएमपैथी रामबाण औषधि है क्योंकि कविता एक ऐसी कला है जो मन की सर्वोच्च अवस्था में विकसित होती है, फिर चाहे वह अवस्था खुशी हो या दुख-उदासी-दर्द की। कवि तो सहृदय होता ही है, कविता सुनने वाले के लिए भी सहृदय होना जरूरी है। प्रार्थना और भजन की लोकप्रियता तथा मंदिरों व कथावाचकों की आकषर्कता हमारे यहां भावों के रेचन के बहुत बड़े माध्यम हैं।


            एक बार किसी विद्यार्थी ने मुझे पूछा कि आप बोलते समय अधिकतर कविताएं क्यों उद्धृत करते हैं? मेरे मुख से अचानक जवाब निकला कि कविताएं तुम्हारे ह्रदय में सीधे प्रवेश कर जाती हैं। यही कारण है कि बच्चों को भी कविता या Poem जल्दी याद हो जाती है , चाहें वह- 'चंदा मामा दूर के, पुए पकावे गुड़ के' कविता हो या 'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार' Poem हो। फिर मेरे हृदय से 'कविता क्या है?' पर यह कविता निकली-


            'कविता क्या है?'


'कविता दिल की नर्म नाजुक गहराई है


बिस्मिल्ला के लब से सटी हुई शहनाई है।


बीच सहरा में बसी हुई हरी भरी अमराई है


जीवनधारा में उठी हुई पल भर की तरुणाई है।


अंधेरी रात के बाद उषा की पहली अंगड़ाई है


कड़ी दोपहर में घनेरे मेघों की शीतल परछाई है।


शाम के वक्त डूबते सूर्य की स्निग्ध अरूणाई है


रात में मिलन के लिए चांद की हौसला अफजाई है।


भंवर में पड़े हुए जीवों की रहनुमाई है


अजान को अल्लाह तक पहुंचाने की रसाई है।


कविता दिल की नर्म नाजुक गहराई है.....'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹