🙏बाल दिवस के साथ जनजातीय गौरव दिवस और प्रकाश पर्व दिवस की शुभकामना🙏


संवाद


"महापुरुषों के सद्गुणों की चर्चा महापुण्य"


शिक्षा-संस्थान महापुरुषों के सद्गुणों को नयी पीढ़ी तक पहुंचाने के सबसे सशक्त माध्यम है। 14 नवंबर को बाल दिवस के अवसर पर , जनजातीय गौरव दिवस और प्रकाश पर्व दिवस के माध्यम से नई पीढ़ी को पंडित नेहरू के साथ श्री बिरसा मुंडा जी और गुरु नानक जी के जीवन- मूल्य से भी परिचय कराया गया। इस अवसर पर यह विचार किया गया कि महापुरुषों की आलोचना तो हम अवश्य करें किंतु निंदा से परहेज करें।किसी भी जाति,धर्म,क्षेत्र या विचारधारा के महापुरुष जीवन को ऊंचाइयों पर ले जाने की प्रेरणा देते हैं। साधारण रूप में जन्म लेकर भी वे अपने गुण और कर्म से असाधारण हो जाते हैं। जब कभी भी उनके नाम की चर्चा होती है तो उनके त्याग,तपस्या से अर्जित उनके गुण और कर्म हर व्यक्तित्व में छिपी हुई महानता को पुकार लगाते हैं। तब मानव में छिपी हुई हीनता की जगह उसकी महानता अंगड़ाई लेने लगती है। अपनी दिव्य आत्माओं की तरह वह भी त्याग-तपस्या के द्वारा अपने दिव्य गुणों को निखारने लगता है।


एक गांधी के पैदा होने के साथ कई गांधी स्थानीय स्तर पर पैदा हो गए थे, जिन्होंने गांधी के बताए सत्य,प्रेम,अहिंसा के मार्ग पर चलकर विराट जन आंदोलनों को जन्म दिया।


यूं ही नहीं मिलती राही को मंजिल


एक जुनून सा दिल में जगाना पड़ता है।


महान होने का जुनून जगते ही मानव को अपनी असीमित शक्ति का पता चलता है और परमात्मा की कृपा भी मिलने लगती है-


पूछा चिड़िया से "कैसे बना आशियाना?" तो वह बोली


भरनी पड़ती है उड़ान बार-बार


तिनका तिनका उठाना पड़ता है।


महापुरुषों के बताए रास्ते पर कदम दर कदम चलते हुए कईयों को महानता उपलब्ध हो जाती है। तब वह जाति,धर्म,क्षेत्र या विचारधारा भी विश्व का ध्यान आकृष्ट करने लगती है।


क्या गांधी के जन्मदिवस को यूएनओ द्वारा विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाने से भारत का मान नहीं बढ़ा है?


दुर्भाग्य से आजकल हिंदुस्तान में महापुरुषों के दुर्गुण को खुर्दबीन से ढूंढ कर लाया जा रहा है और तिल का ताड़ बना कर परोसा जा रहा है।


कौन कहता है कि महापुरुषों में अवगुण नहीं होते?


क्रोध,लोभ,मोह,काम हर व्यक्ति में पाए जाते हैं। किंतु जो महापुरुष होते हैं,वे अपने क्रोध को करुणा बना लेते हैं और लोभ को दान बना देते हैं।


हर व्यक्ति के जीवन में कई बार कमजोर क्षण भी आते हैं और मजबूत क्षण भी। महापुरुषों की सजगता के कारण उनके मजबूत क्षण बहुत मजबूत हो जाते हैं और कमजोर क्षण बहुत कमजोर।


जिन्हें भी ऊंचाइयों पर जाना हैं,वे महापुरुषों के मजबूत क्षणों को अपने मन के मंदिर में बसाएंगे और कमजोर क्षणों को नजरअंदाज करेंगे।


आजकल आबोहवा अजीबोगरीब हो गई है। महापुरुषों की सार्वजनिक छीछालेदारी की जा रही है और वह भी समाज के अग्रणी-जनों द्वारा।


आखिर इससे मिलेगा क्या?


भावी पीढ़ियों को यह गलत संदेश जा रहा है कि दुर्गुण तो महापुरुषों में भी होते हैं,फिर हममें हैं तो आश्चर्य क्या?


जबकि यह संदेश जाना चाहिए कि महापुरुषों ने अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाया,अपने दुर्गुणों को सद्गुणों में बदला और खरपतवारों के बीच भी अपनी तपस्या से फूल खिलाने में सफल रहे।


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹