🙏विश्व सहिष्णुता दिवस की शुभकामना🙏


संवाद


'सहिष्णुता की समझ'


16 नवंबर 'अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस' के रूप में 'संयुक्त राष्ट्र संघ' द्वारा मनाया जाता है।आज असहिष्णुता विश्व की सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरी है जिसके कारण धर्मों, जातियों और संस्कृतियों के बीच दूरियां इस कदर बढ़ती जा रही है कि संघर्ष में ही समय और ऊर्जा खत्म हो जाती है फिर विकास कहां से होगा और कैसे होगा?सबका साथ,सबका विकास,सबका विश्वास और सबका प्रयास ही विश्व-विकास का मूलमंत्र हो सकता है।


         स्वतंत्रता के संघर्ष की सबसे बड़ी चुनौती असहिष्णुता रही जिसके कारण भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान बना। हिंदू मुस्लिम एकता की बात करने वाले गांधी को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। लेकिन सहिष्णु भारत कहां है और एक धर्म के आधार पर बना असहिष्णु पाकिस्तान कहां है? आज भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में से एक है और पाकिस्तान कंगाली के रास्ते पर खड़ा है। आज बांग्लादेश ही नहीं कनाडा जैसे देश में भी हिंदू मंदिरों पर आक्रमण के मूल में असहिष्णुता ही है।


           बांटना और काटना जैसा शब्द जब नेताओं ही नहीं धर्माचार्यों के भी मुख से निकलने लगे और नई पीढ़ी एक दूसरे के प्रति असहिष्णु होने लगे तो उस शिक्षा की जरूरत है जो विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में दी थी-


'रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां


नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।'


शिवमहिम्न स्तोत्र के इस मंत्र को उद्धृत करते हुए विवेकानंद ने कहा था कि जिस प्रकार से टेढ़े मेढ़े रास्ते से चलती हुई सभी नदियां अंत में समुद्र में मिल जाती हैं,उसी प्रकार से अपनी-अपनी रुचि के अनुसार अलग-अलग रास्ते से चलती हुई सभी आत्मा अंत में परमात्मा में मिल जाती है।


         भारत की प्रकृति और संस्कृति दोनों ऐसी है कि  सहिष्णुता का पाठ सीखने के लिए भारत को पढ़ना होगा और समझना होगा। लेकिन जब भारतीय शिक्षा ही दुर्दशाग्रस्त हो गई हो तो सहिष्णुता की शिक्षा सबको कैसे मिले?


          भारत में 6 प्रकार की ऋतुएं हैं। उत्तर में हिमालय से घिरे हुए भारत का पादप्रक्षालन दक्षिण में हिंद महासागर करता है। भारत के पश्चिम में मरुस्थल है तो पूर्व में हरा-भरा स्थल भी है। भारत में ही हिंदू ,जैन,बौद्ध और सिक्ख जैसे चार धर्म विकसित हुए। हिंदू घर में भी कोई वैष्णव है तो कोई शैव। अनेक जातियां,अनेक बोलियां,अनेक रंग, अनेक ढंग भारत की वसुंधरा को इतना रंग-बिरंगा बना देते हैं कि भारत की संस्कृति विश्वगुरु बन जाती है। विवेकानंद विश्व धर्म सम्मेलन के सबसे ओजस्वी वक्ता बन जाते हैं तो गांधी का जन्म दिवस 'विश्व अहिंसा दिवस' के रूप में मनाये जाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र संघ करता है।


             गांधी ने जब भारतीय ऋषियों का 'ईशावास्यमिदं सर्वम्'(अर्थात् सबमें वही ईश्वर है) मंत्र पढ़ा तो ईश्वर अल्लाह तेरो नाम गाने लगे.... और विवेकानंद को पढ़ा तो उनकी देशभक्ति सौ गुना बढ़ गई। हिंदूवादी विचारधारा के अग्रणी और ओजस्वी भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री होते हुए अब्दुल कलाम जैसे व्यक्ति को राष्ट्रपति पद के लिए सादर आमंत्रित करते हैं तो विश्व को सहिष्णुता का मतलब पता चलता है। भारत रत्न अब्दुल कलाम जब राष्ट्रपति भवन से सबसे पहले अपने गुरु विक्रम साराभाई के घर सर झुकाने जाते हैं तो वेद की वह पंक्ति याद आ जाती है कि शुभ विचार जहां से भी हो ग्रहण कर लो।


             'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा... जैसे अमर गीत मुहम्मद इकबाल के हृदय से क्यूं निकले होंगे यह तब पता चलता है जब कथावाचक मुरारी बापू जैसे संत एक तरफ संस्कृत के श्लोक और दूसरी तरफ उर्दू के शेरो-शायरी से अपने प्रभु श्री राम की स्तुति करते हैं और जब अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह में सभी धर्मों के लोग सर झुकाने जाते हैं-


'हम तो तेरा दर समझ कर झुक गए


खुदा जाने वो काबा था या बुतखाना।'


              सहिष्णुता की समझ तब विकसित होगी जब हम यह जानेंगे कि राम और कृष्ण की इस धरती पर रामकृष्ण परमहंस जैसे साधक पैदा होते हैं जिन्होंने सारे धर्मों की साधना की और उसी एक परम तत्व को पाया, जो सबमें है।


             सिर्फ धर्म के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि राजनीति के क्षेत्र में भी कुछ ऐसे ताजातरीन उदाहरण है जिससे पता चलता है कि उन्होंने भारत की भूमि से सहिष्णुता का यह मंत्र सीखा है कि दूसरों को स्वीकार करो और दूसरों की गलतियों को माफ करो‌। जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या सिख संतरियों द्वारा कर दी जाती है फिर भी कांग्रेस द्वारा मनमोहन सिंह जैसे प्रबुद्ध सिख को प्रधानमंत्री बनाया जाता है तो क्या यह सहिष्णुता का पाठ नहीं है? जब सोनिया गांधी अपने पति के हत्यारे को और राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी अपने पिता के हत्यारे नलिनी को माफ कर सकते हैं तो क्या यह सहिष्णुता की साधना नहीं है?


           हर राजनीतिक दल में सहिष्णुता की समझ रखने वाले व्यक्तित्व आपको मिल जाएंगे, बस जरूरत है उनको सामने लाने की और उनका सम्मान बढ़ाने की। राणा प्रताप और शिवाजी जैसे महापुरुषों को सभी राजनीतिक दल इसलिए अपना आदर्श मानते हैं कि उन्होंने सभी धर्मों और सभी जातियों का साथ लेकर अपने संघर्ष को नई ऊंचाइयां दी।


           जब कट्टरतावादियों की आवाज ऊंची होती जा रही है तो जरूरत है सहिष्णुतावादियों की चर्चा को आगे बढ़ाया जाए क्योंकि सहिष्णुता से ही यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है।'क्षमया धरित्री' जैसी सूक्ति पृथ्वी जैसी सहनशक्ति वाली नारी की कल्पना करती है। सिर्फ नारी ही क्यों, नरों में भी वे ही अनुकरणीय हैं जिनमें सहिष्णुता है। तभी तो राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने कहा था-


'नारी के जिस भव्यभाव का,साभिमान भाषी हूं मैं


उसे नरों में भी पाने को उत्सुक अभिलाषी हूं मैं।'


          नर हो या नारी सभी पृथ्वी की संतानें हैं और उन सबमें माता का गुण सहिष्णुता आना ही चाहिए क्योंकि अथर्ववेद के पृथ्वी-सूक्त में भारतीय संस्कृति की उद्घोषणा है-


'माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹