संवाद
'कटेंगे तो बटेंगे' Vs "एक हैं तो सेफ़ हैं"
महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे ने राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया है। 'संविधान खतरे में है' के विरुद्ध 'वोट जिहाद', 'कटेंगे तो बटेंगे' जैसे नारे के बाद आलोचना की शिकार हुई पार्टी ने 'एक हैं तो सेफ़ हैं' जैसा नारा देकर विरोधियों का मुंह बंद कर दिया। मेरी राजनीति में कोई रुचि नहीं है किंतु साहित्यिक-सांस्कृतिक अभिरुचि यह बताती है कि शब्द की जादूगरी अद्भुत होती है।नारे का उद्देश्य था ध्रुवीकरण किंतु 'वोट जिहाद' और 'कटेंगे तो बटेंगे' नकारात्मक छवि बना रहा था। 'एक हैं तो सेफ हैं' ने काम वही किया किंतु सकारात्मक तरीके से।
भारतीय संस्कृति शब्द को ब्रह्म मानती है-'शब्द: ब्रह्म'. शब्द के द्वारा ही नेता मतदाता से जुड़ता है। डिग्री कितनी भी बड़ी हो किंतु आपके शब्द यदि किसी के दिलोदिमाग में नहीं उतरते तो यह मानना चाहिए कि आप अभिव्यक्ति की कला में पारंगत नहीं है। प्रतिभा डिग्री की मोहताज नहीं होती। किसी के पास अपने शब्दों से लोगों को जोड़ने और प्रभावित करने की कला है तो उससे यह कला सीखनी चाहिए। कबीर साहब ने कहा कि 'मसि कागद छुओ नहीं,कलम गही नहीं हाथ' किंतु उनके शब्द जनमानस में उतर गए और जादू कर गए। 'दुल्हन वही जो पिया मन भाए' का संदेश भी यही है कि वक्ता वही है जो श्रोता के मन को भाता है।
शब्दों का ऐसा ही एक जादूगर इरान के बादशाह का दूत बनकर भारत आया था। उसने भारत के राजा को 'पूर्णिमा का चांद' कहा और अपने इरान के बादशाह को 'दूज का चांद' कहा। भारत के राजा से उसे काफी पुरस्कार और सम्मान मिला। किंतु उसकी मंडली में जो उससे जलने वाले लोग थे, उन्होंने इरान के बादशाह से शिकायत कर दी कि इस दूत ने भारत के राजा के सामने आपको 'दूज का चांद' कहकर आपको नीचा दिखाया है। इरान का बादशाह आगबबूला हो गया और उसे तुरंत सभा से निकल जाने को कहा। शब्दों के जादूगर उस दूत ने कहा कि हे बादशाह! दूज का चांद कहकर मैंने आपकी तारीफ की है क्योंकि दूज का चांद लगातार बढ़ता है ,उसके विकास की संभावना है। भारत के राजा को पूर्णिमा का चांद कहकर मैंने उसे संकेत दिया है कि अब तुम घटोगे और हमारा बादशाह बढ़ेगा।
इरान का बादशाह खुश हुआ और उसे विशेष पुरस्कार से नवाजा।
यदि आपके पास बोलने की कला हो तो हारी हुई बाजी आप बदल सकते हैं और आश्चर्यजनक महाराष्ट्रीय परिणाम पा सकते हैं।
"शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹