🙏अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस🙏
संवाद
'महिला हिंसा के लिए जिम्मेदार कौन?'
25 नवंबर महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में यूएनओ द्वारा मनाया जाता है। प्रतिवर्ष विचार एक नई थीम पर होता है।वर्ष 2024 की थीम है- " हर 11 मिनट में एक महिला की हत्या होती है। #NoExcuse. महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए एकजुट हों।"
सरकारों द्वारा कई प्रकार के कानून बनाकर और कई कार्यक्रम जैसे आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम चला कर महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं किंतु जब तक शिक्षा द्वारा समाज को जागरूक नहीं किया जाता और महिलाओं को सशक्त नहीं बनाया जाता तब तक इसमें सफलता मिलनी मुश्किल है।
भारतीय संस्कृति में अर्धनारीश्वर का प्रतीक बहुत महत्वपूर्ण है। आज विज्ञान भी इस बात को मानता है कि पुरुष और स्त्री के परस्पर संपर्क और सहयोग के बिना सृष्टि नहीं चल सकती। यह आश्चर्य की बात है कि अपने ही आधे हिस्से को साधन बनाया जाए या उसके प्रति हिंसा की जाए।
मूल दर्शन के गलत हो जाने से आगे बढ़ाया गया हर कदम गलत दिशा में ही जाएगा। पुरुष प्रधान समाज ने नारी को साधन की तरह इस्तेमाल किया। नारी के संपूर्ण योगदान को गौण कर दिया गया। अतः सृष्टि को जन्म देने वाली नारी द्वितीयक दर्जे की हो गई।
विचारणीय प्रश्न यह है कि द्वितीयक दर्जे से प्रथम दर्जे की संतानें कैसे उत्पन्न हो सकती हैं? मूल स्रोत के गड़बड़ा जाने से आगे का सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। आज लड़कियों को जहां भी मौका मिला,उन्होंने अपने आपको लड़कों से भी बेहतर साबित किया। बस जरूरत है कि समान अवसर दिया जाए। लेकिन घोर आश्चर्य की बात यह है कि लड़कियों द्वारा अपने आप को साबित किए जाने के बावजूद उनके प्रति हिंसा में कमी नहीं आ रही है।
स्त्री के बिना पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है। जिस देश और जिस काल में स्त्री और पुरुष एक दूसरे के परिपूरक के रूप में रहे हैं, वह देश और काल स्वर्णिम रहा है। प्रकृति से स्त्री का व्यक्तित्व प्रेम-केंद्रित,सहनशील और सामंजस्यपूर्ण है और पुरुष का महत्वकांक्षा-केंद्रित। किंतु आज के जमाने में पूरा समाज ही महत्त्वाकांक्षी हो गया है और महत्त्वाकांक्षी समाज हिंसक होगा।
आजकल आर्थिक रुप से स्वतंत्र स्त्रियां भी स्वच्छंदता की ओर कदम बढ़ा रही हैं। कहां तो आशा थी कि पुरुष स्त्रियों के सद्गुणों को सीखेगा किंतु हो ऐसा रहा है कि स्त्रियां पुरुषों के दुर्गुणों को अपनाने लगीं। इससे परिवार बिखरने लगे और तनाव बढ़ने लगा, जिससे हिंसा में और वृद्धि हुई है।
अर्धनारीश्वर के घर ही विवेक और वाणी के देवता गणेश का जन्म होता है। भारतीय संस्कृति के प्राचीन प्रतीकों में जीवन के बहुत गहरे सत्य छुपे हुए हैं। शिव पार्वती के घर में सुविधाएं नहीं थीं किंतु परस्पर सामंजस्य और समझ अद्भुत थी जिसका परिणाम अमंगल को हरने वाले संतति के जन्म के रूप में मिला।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹