संवाद


🙏भारतीय ज्ञान परंपरा (४)🙏


'आत्महत्या का क्षण आत्मरूपांतरण का भी'


गीता जयंती की सुबह समाचारपत्र के मुख्य पृष्ठ पर छपे हुए सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या की खबर को पढ़कर मन पूर्णत: विचलित हो गया। कॉलेज जाकर क्लास में छात्राओं से जब कृष्ण और गीता के बारे में पूछा और उन्होंने कुछ नहीं बताया तो मन और ज्यादा खिन्न हो गया। ऐसी परिस्थिति और मन:स्थिति में गीता जयंती के कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के नोडल के रूप में मुझे सभा को संबोधित करना पड़ा।


गीता और कृष्ण को जितना मैंने पढ़ा है, उसके आधार पर आज अतुल के दुर्भाग्य पर यही सोच रहा था कि यदि कृष्ण इनके पास होते तो क्या यही अंजाम होता? अर्जुन भी अपने समय का अतुल के समान ही सबसे बुद्धिमान विद्यार्थी था और उसे भी विषाद हुआ, किंतु कृष्ण ने उसके विषाद को योग में बदल दिया। अतः गीता के प्रथम अध्याय का नाम विषाद-योग है।


         कुछ लोग पूछते हैं कि योग का आनंद के साथ तो संबंध हो सकता है किंतु विषाद के साथ कैसे संबंध हो सकता है? वस्तुत: विषाद आनंद का ही शीर्षासन करता हुआ रूप है। बस कृष्ण मिल जाए तो विषाद से गुजरकर व्यक्ति आनंद को प्राप्त कर सकता है। आजकल अक्लवालों को अपनी आत्मा ही नहीं मिलती फिर परमात्मा कृष्ण कहां से मिलेगा?-


'अक्ल बारीक हुई जाती है


रूह तारिक़ हुई जाती है ।'


             गीता संसार के सभी ग्रंथों में अतुल्य इसीलिए है कि युद्ध की भूमि में इसका जन्म हुआ, किसी एकांत अध्ययन-कक्ष में नहीं। कृष्ण इसीलिए परमात्मा बन सके कि जीवन की सारी चुनौतियों में भी उन्होंने न अपना मुस्कान छोड़ा और न संघर्ष। गीता और कृष्ण का जीवन दर्शन कहता है-


'न फिक्रे गुरबत है ,न अंदेशाए तन्हाई है


जिंदगी इतने हवादिशों से गुजर आई है


जिस हाल में लोग मरने की दुआ करते हैं


उस हाल में मैंने जीने की कसम खाई है।'


         यदि नई पीढ़ी गीता और कृष्ण को पढ़ेगी नहीं , समझेगी नहीं और अपने जीवन में उन्हें उतारेगी नहीं तो तनाव अवसाद में बदलेगा, अवसाद विषाद बनेगा और विषाद आत्महत्या तक ले जाएगा। विषाद को योग तक तो कृष्ण की गीता ही ले जा सकती है जो कहती है-


'जो हो रहा था,अच्छा हो रहा था;जो हो रहा है,अच्छा हो रहा है;जो होगा,अच्छा होगा।'


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹