🙏अटलजी की सौवीं जयंती पर श्रद्धासुमन🙏


संवाद


'राजनीति के कीचड़ में कमल सदृश अटल'


राजनीति मुझे अच्छी नहीं लगती किंतु वाजपेयी जी बहुत अच्छे लगते हैं। राजनीति कीचड़ के समान लगती है और अटल जी उसमें खिले हुए कमल के समान। किशोरावस्था से ही उनके भाषणों  को सुनकर मन मंत्रमुग्ध हो जाया करता था। उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि वे विरोधियों से भी प्यार करते थे और विरोधियों को भी उनसे प्यार था। उनकी विचारधारा से दूरी रखने वाले भी उनसे अपनी नजदीकियां जताने से परहेज नहीं करते थे, यह कहते हुए कि-'A right man in a wrong party' (एक गलत पार्टी में एक अच्छा आदमी). चरम राजनीतिक कटुता के आज के जमाने में अटल जी जैसे सहृदय की याद और ज्यादा आ रही हैं। कोई पूछे-'क्यूं?' तो इसका उत्तर देना बहुत मुश्किल है लेकिन किसी शायर के शब्दों में कहूं तो


'यूं ही नहीं आता चेहरे पर नूर ए खुदा


साफ दिल होना भी लाजिम है उस नियामत के लिए।'


         हिंदूवादी विचारधारा के होते हुए भी उनका हिंदुत्व इतना व्यापक था कि उन्होंने देश को अब्दुल कलाम जैसा अद्भुत राष्ट्रपति दिया। निष्णात जौहरी डायमंड को देखता है,खदान और खानदान को नहीं।


           संविधान लागू होने के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में संसद में जब संवैधानिक मूल्यों की चर्चा हुई तो अटल मूल्यों की गूंज से सदन गूंज उठा। प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा कि संवैधानिक मूल्यों की खातिर हमारे नेतृत्व ने एक बार 13 दिन में सरकार खो दी और दूसरी बार एक वोट के कारण सत्ता गंवा दी किंतु सौदेबाजी नहीं की।राजनीति में शुचिता के सवाल पर एक बार अटल जी ने संसद में कहा था 'मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य हूं, सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा, मेरा आचरण देखा, लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा।' राष्ट्रकवि दिनकर के शब्दों में कहूं तो....


'प्रेमयज्ञ अति कठिन, कुण्ड में कौन वीर बलि देगा?


तन,मन,धन,सर्वस्व होम कर अतुलनीय यश लेगा?'


किंतु अपना सर्वस्व होम कर मूल्यों की रक्षा करने वाले अटल बिहारी ने उस अतुलनीय यश को प्राप्त किया....


'जहां कहीं है ज्योति जगत में,जहां कहीं उजियाला


वहां खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकाने वाला।'


                'हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय' की खुली उद्घोषणा करने वाले अटल जी का हृदय इतना विशाल था कि उसमें किसी के प्रति कटुता नहीं भरी थी और उनके जीवन में हास्य-व्यंग्य का इतना प्राचुर्य था कि संसद को भी ठहाकों से गूंजायमान कर दिया करते थे। एक बार लोकसभा अध्यक्ष जी ने संसद में कहा कि सभी बिहारी सांसद हाथ उठाएं‌। बिहार से आए हुए सांसदों के साथ अटल जी ने भी अपना हाथ उठा दिया। अध्यक्ष जी ने कहा कि अटल जी आप तो बिहारी नहीं हैं ,फिर क्यूं हाथ उठा रहे हैं? अटल जी का जवाब था-'बाकी सब तो सिर्फ बिहारी हैं,मैं तो अटल बिहारी हूं।' अपने हृदय की निर्मलता और वाणी की मधुरता के कारण बांके बिहारी की तरह अटल बिहारी जी सचमुच सबके हृदय में विहार करते हैं और करते रहेंगे।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹