🙏गुरु गोविंद सिंह जी को नमन🙏


संवाद


'महापुरुषों के नाम पर अवकाश'


6 जनवरी सोमवार को अवकाश है क्योंकि सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती है। पर्व- त्यौहार का अवकाश तो परंपरा के अनुसार एक विशेष ढंग से मनाने के लिए जरूरी है किंतु महापुरुषों के नाम पर अवकाश का औचित्य विचारणीय है। जिन महापुरुषों ने देश और धर्म के लिए अहर्निश संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व बलिदान किया हो, उनके नाम पर भावी पीढ़ियां सिर्फ छुट्टी मनाती हो तो उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त नहीं हो सकती। जाति और धर्म के नाम पर महापुरुषों को ढूंढ कर राजनीतिक फायदे के लिए उनके जन्मदिवस को अवकाश घोषित करने की परिपाटी से वोट भले सध जाता हो किंतु जीवन नहीं बदलता।


जीवन तो बदलता है महापुरुषों की चेतना की ऊंचाइयों को समझने से और अपने जीवन में उतारने से।


         बिहार की राजधानी पटना साहिब में 1666 में जन्मे श्री गुरु गोविंद सिंह जी की जीवनी पढ़कर और उनके संघर्षों को जानकर मेरा रोम-रोम रोमांचित हो गया। संतत्व और सैनिकत्व एक जगह मिलना दुर्लभ है किंतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ऐसे संत हुए कि लाखों व्यक्तियों के जीवन को धर्म की राह पर चलने के लिए प्रेरित कर दिया और ऐसे सैनिक हुए कि पिता और पुत्रों के साथ स्वयं को राष्ट्र के नाम पर शहीद कर दिया।


            छोटे संघर्षों से अवसाद में जाने वाली और आत्महत्या करने वाली आज की पीढ़ी को यह मालूम होना चाहिए कि इस्लाम धर्म न कबूल करने पर मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर 24 नवंबर,1675 को सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी का सर काट कर चांदनी चौक पर घुमाया गया, उस वक्त 9 वर्ष के बालक श्री गोविंद सिंह जी की चेतना पर पिता की इस निर्मम हत्या का कैसा प्रभाव पड़ा होगा। फिर भी उन्होंने धर्म और देश के लिए न अपना संकल्प छोड़ा और न अपना संघर्ष। फिर उनके चार बेटों की शहादत हुई- जोरावर सिंह और फतेह सिंह इस्लाम धर्म न कबूल करने पर सरहिंद में दीवार में जिंदा चुनवा दिए गए, अजीत सिंह और जुझार सिंह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसी विकट परिस्थिति में भी श्री गुरु गोविंद सिंह जी की चेतना से आवाज आई-


"सब पुत्रन के कारन वार दिए पुत चार


चार मुुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार।"


             उनकी चेतना की गति दर्शन और लेखन में भी अद्भुत थी। वे संस्कृत,फारसी सहित कई भाषाओं के ज्ञाता और कई  ग्रंथों के रचयिता भी थे। 50 से अधिक कवि और साहित्यमर्मज्ञ उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया और उसे गुरु रूप में प्रतिष्ठित किया जिसमें सिख गुरुओं सहित उस समय के सभी जाति और धर्म के प्रसिद्ध संतों के सबद और बानी थे।


           धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए उन्होंने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल थे। 'वाहेगुरु जी की खालसा, वाहेगुरु जी की फतह' का नारा देकर उन्होंने अनगिनत चेतनाओं को सर्वस्व बलिदान के लिए प्रेरित कर दिया। अनुयायियों को जीवन जीने के लिए उन्होंने पांच सिद्धांत दिए जो पांच ककार केश,कंघा,कड़ा,कच्छा,कृपाण कहलाए।


            राष्ट्रकवि दिनकर जी ने अपनी कविता के माध्यम से यह प्रश्न उठाया था कि 'दो में से क्या तुम्हें चाहिए-कलम या कि तलवार?' क्योंकि कलम और तलवार दोनों का एक साथ होना असंभव सा लगता है। उसी असंभव को संभव बनाया था श्री गुरु गोविंद सिंह जी की चेतना ने।


             महापुरुषों का जन्मदिवस उनकी चेतना के सर्वाधिक समीप जाने का सबसे अपूर्व अवसर होता है। अतः शिक्षकों और शिक्षा-संस्थानों के लिए महापुरुषों के जन्मदिवस के अवकाश का मतलब है-अन्य सारी बातों से मन को शून्य बनाकर रखना ताकि आकाश की ऊंचाई को पहुंची हुई चेतना आपके शून्य स्थान में उतर सके।जिस प्रकार से आकाश की बारिश में खाली झीलें भर जाती हैं, उसी प्रकार से अवकाशयुक्त (खाली)मन में आकाशीय चेतना उतर आती है।


सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी के लिए श्रद्धा सुमन


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹