🙏युवा दिवस की शुभकामना🙏
संवाद
'युवा संन्यासी से दूर हुई पासबुक वाली युवा पीढ़ी'
बांसवाड़ा की युवा पीढ़ी आज यदि युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद के बारे में अनभिज्ञ हो चुकी है तो शिक्षा के कर्णधारों को अवश्य चिंतित होना चाहिए और विशेष चिंतन में डूब जाना चाहिए। प्रतिदिन परीक्षा में 8 घंटे की व्यस्तता के बीच युवा दिवस के कार्यक्रम हेतु आयुक्तालय से आदेश आया तो विद्यार्थियों से पूछना शुरू किया कि स्वामी जी के बारे में वे क्या जानते हैं तो अधिकतर विद्यार्थियों ने कोई जवाब नहीं दिया। तब परीक्षा से अवकाश होने के कारण तृतीय वर्ष की चार छात्राओं को आज मैंने तैयार किया युवा दिवस की शुभकामना कि स्वामी जी के बारे में हम सभी चर्चा करें।
स्कूल के दिनों से ही स्वामी जी की पुस्तकें पढ़ने के बाद मुझे इतनी शक्ति प्राप्त होती थी कि दिन रात खेलने और पढ़ने के बाद भी थकान महसूस नहीं होती थी। कॉलेज के दिनों में ₹2 और ₹5 की स्वामी जी की पुस्तकें रामकृष्ण मिशन आश्रम से खरीद कर लाता था और खेल से पूरी तरह थक कर घर आने पर पहले उनको पढ़ता था तो कोर्स बुक की किताबों को पढ़ने के लिए पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त हो जाती थी।
हमारे समय में पासबुक को छुपा कर पढ़ा जाता था और ट्यूशन पर चोरी छिपे जाया जाता था। क्लासेज नियमित चलती थीं और शिक्षक का मार्गदर्शन सदैव प्राप्त होता था। आज की पासबुक वाली और कोचिंग में जाने वाली पीढ़ी महापुरुषों के बारे में कुछ भी नहीं जानतीं तो शिक्षा संस्थानों से दूर होने का और गैरशैक्षिक कार्यों में शिक्षकों की व्यस्तता का यह अवश्यंभावी परिणाम है।
शांतिवादी गांधी कहते हैं कि स्वामी जी की पुस्तकों को पढ़ने के बाद मेरे देशभक्ति कई गुना बढ़ गई तो क्रांतिवादी सुभाष चंद्र बोस कहते हैं कि स्वामी जी जीवित होते तो मैं उनके चरणों में अपना जीवन समर्पित करता। जिनका साहित्य हर क्रांतिकारी और धार्मिक के घरों में ब्रिटिश पुलिस को छापे के दौरान मिलता था, ऐसे स्वामी जी के बारे में मैंने विद्यार्थियों को जन्मतिथि और जीवन के घटनाओं की तिथियां नहीं बताईं बल्कि उनके जीवन सत्यों की ओर संकेत करने वाली कहानियां सुनाईं।
उसमें एक कहानी थी जिसे स्वयं स्वामी जी बार-बार कहा करते थे।शेरनी का बच्चा भेड़ों की झुंड में गिर गया तो स्वयं को भेड़ ही समझने लगा। एक दिन नदी के किनारे शेर ने उसे पकड़ा, पानी में उसका चेहरा दिखाया और दहाड़ मारी तो मिमियाने वाला वह शेरशावक क्षण भर में अपनी दहाड़ से जंगल को गूंजायमान कर दिया। हम भी सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ परमात्मा के अंश आत्मा हैं जिन्हें अपने स्वरूप से परिचित कराने के लिए स्वामी जी ने युवाओं के सामने दहाड़ा था।
दूसरी कहानी सुनाई कि शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में जाने से पहले वे शारदा माता से आशीर्वाद मांगने गए तो मां ने उन्हें चाकू पकड़ाने को कहा। स्वामी जी ने चाकू का फलक (धार वाला हिस्सा) पकड़ा और चाकू का मूठ मां की तरफ दिया। मां ने आशीर्वाद दिया कि तू जहां भी जाएगा,तेरे से जगत का कल्याण ही होगा।
आज के जीवन में अवसाद और आत्महत्या जैसी जो घटनाएं बढ़ी हैं, उसका मूल कारण है- अपने आत्मस्वरुप को भूल जाना और संवेदनहीन हो जाना। भारतीय संस्कृति अद्भुत है जहां विश्वविद्यालय का टॉपर नरेंद्र बहुत कम पढ़े लिखे रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बनाते हैं और उस परम ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं जिसके आगे पूरा विश्व आश्चर्यभाव से भर जाता है और नतमस्तक हो जाता है। उस चिर युवा संन्यासी को मेरा शत-शत प्रणाम!!!
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹