🙏नेताजी जयंती की शुभकामना🙏


संवाद


'संकल्प,साहस,समर्पण के संगम थे नेताजी'


झकाझक सफेद खादी में एक परिचित सज्जन को देखकर एक समारोह में मेरे मुंह से निकला-नेता जी प्रणाम! अभिवादन कुबूल करना तो दूर उन्होंने मुझसे मुंह फेर लिया। एक दिन पास आकर बोले-आपने सबके सामने नेताजी कहकर मेरा अपमान क्यूं किया? क्या आपको नहीं मालूम कि धन-पद-प्रतिष्ठा-लोलुप भ्रष्टाचारी और व्यभिचारी लोगों का दूसरा नाम आज नेताजी हो गया है।


              उस दिन मुझे एहसास हुआ कि शब्द में अर्थ व्यक्ति के जीवन और चरित्र से आता है। गुलामी के अंधेरे काल में संकल्प,साहस और समर्पण के धनी सुभाषचंद्र बोस जी को यह उपनाम दिया गया था। उनकी याद आते ही और नेताजी शब्द सुनते ही हृदय देशप्रेम के भाव से भर जाता है और उनके त्याग और बलिदान के आगे यह सर श्रद्धा से झुक जाता है।


              आज की पीढ़ी में बढ़ते हुए अवसाद और आत्महत्या की घटनाओं को रोकने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि उनके दिलोदिमाग में सुभाषचंद्र बोस जैसे व्यक्तित्व को जिंदा किया जाए-


       १.जिनका संकल्प इतना बड़ा था कि आईसीएस जैसी बड़ी नौकरी भी मातृभूमि की सेवा जैसे विराट उद्देश्य के सामने उन्हें छोटी लगी।


        २.जिनका साहस इतना बड़ा था कि हाउस अरेस्ट से अज्ञात में निकलकर विश्व की बड़ी शक्तियों से मुलाकात की तथा 'प्रिजनर्स ऑफ वार' को लेकर आजाद हिंद फौज बना ली।


         ३.जिनका समर्पण अस्तित्व के प्रति इतना बड़ा था और श्रद्धा ईश्वर के प्रति ऐसी थी कि अनेक बार जेल की यातनाओं को हंसते-हंसते सहन किया और अंत में अपना सर्वस्व आजादी की जंग में न्योच्छावर कर दिया।


          आज हम सब का संकल्प 'मैं' और 'मेरा' में संकीर्ण होकर रह गया है।प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने का साहस आज एकदम खो गया है।अस्तित्व या ईश्वर के प्रति श्रद्धा या समर्पण के अभाव ने हमारा आत्मविश्वास खत्म कर दिया है।


            ऐसी मन:स्थिति वाले युग में नेताजी का स्मरण और ज्यादा जरूरी हो गया है क्योंकि अंधेरा जितना घना हो,प्रकाश जलाने की उतनी ही तीव्र इच्छा जगती है।


           'नेता' का अर्थ होता है आगे ले जाने वाला। सुभाष चंद्र बोस ने लड़ने की क्षमता खो चुकी भारत की चेतना को अपने संकल्प,साहस और समर्पण से ऐसा नेतृत्व दिया कि अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए उसी संकल्प,साहस,समर्पण की जरूरत है जिसके कारण नेताजी अमर हो गए। एक कवि अपनी पंक्तियों के माध्यम से पूछते हैं कि 'क्या जिंदा आज सुभाष नहीं?'-


'जो नाम देश का लेकर के मर गए मिटे बर्बाद हुए


जिनकी कुर्बानी के बल पर चालीस कोटि आजाद हुए


लेखनी न आगे बढ़ पाती, कवि लिख सकता इतिहास नहीं


अक्षर अक्षर यह पूछ रहा क्या जिंदा आज सुभाष नहीं?'


मुझे लगता है कि संकल्प,साहस और समर्पण का जहां भी संगम होता है,वहां पर सुभाष जिंदा हैं।


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹