🙏गणतंत्र दिवस की शुभकामना🙏
संवाद
'गुणतंत्र में कैसे बदले गणतंत्र'
हम भारत के लोग भारत को एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के उद्देश्य से प्रेरित हैं। इसके लिए लोग,लोक,गण इन तीनों शब्दों के अंतर को ध्यान में रखना जरूरी है।
'लोग' में बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी प्रकार के लोग आते हैं जो भारत के नागरिक हैं।
लेकिन 'लोकतंत्र' में आया "लोक" शब्द का प्रयोग उनके लिए किया गया है जो मतदान करके अपने जनप्रतिनिधि चुनते हैं।इसीलिए तो अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की परिभाषा देते हुए कहा कि जनता का,जनता के लिए और जनता के द्वारा निर्धारित तंत्र लोकतंत्र है।
परंतु 'गणतंत्र' में आया "गण" शब्द एक कदम और आगे जाता है, जहां हेड ऑफ़ द स्टेट गण द्वारा चुना जाता है,वंशानुगत नहीं होता। इसी कारण से ब्रिटेन लोकतंत्र तो है किंतु गणतंत्र नहीं है।क्योंकि सत्ता के सर्वोच्च पद पर बैठा हुआ व्यक्ति वहां वंशानुगत होता है, जबकि भारत में सर्वोच्च पदधारी राष्ट्रपति जनता द्वारा चुना जाता है। गणतंत्र की एक और विशेषता है कि इसमें कानून का राज्य होता है ; अर्थात् अल्पसंख्यक के हितों की सुरक्षा अन्यथा बहुसंख्यकवाद के खतरे हैं। इसी कारण से संसद द्वारा पारित कानून को भी राष्ट्रपति हस्ताक्षर करने से इनकार कर सकता है। ब्रिटेन में ऐसा संभव नहीं है कि वहां संसद द्वारा पारित कानून को वहां का हेड ऑफ़ द स्टेट हस्ताक्षर करने से इनकार कर दे।
गणतंत्र की पहली लाली छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत के बिहार प्रांत के वैशाली जिले के लिच्छवी गणराज्य में फूटी थी जहां हर गण सभा के विचार विमर्श में भाग लेता था और अपनी शलाका उठाकर मत भी देता था।
'15 अगस्त का स्वतंत्रता दिवस' से ज्यादा महत्वपूर्ण दिवस हमारे लिए '26 जनवरी का गणतंत्र दिवस' है। क्योंकि ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित 'इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट' 15 अगस्त को लागू हुआ,इसलिए इस दिन हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। लेकिन कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित नेहरू द्वारा 1929 दिसंबर के लाहौर अधिवेशन में रावी नदी के किनारे पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास करके यह घोषणा की गई कि 26 जनवरी को हम पूर्ण रुप से स्वतंत्र हो जाएंगे और उस दिन स्वतंत्रता का झंडा फहराएंगे। 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता का झंडा फहराया गया और स्वाधीनता दिवस तब से हर साल 26 जनवरी को मनाया जाने लगा। इसीलिए 26 नवंबर 1949 को संविधान बन जाने के बाद भी हमने 26 जनवरी 1950 को इसको लागू किया और भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बना।
गणतंत्र को रिपब्लिक भी कहा जाता है जो लैटिन फ्रेज 'res publica' से बना है जिसका अर्थ होता है "public thing".
हमारा गणतंत्र विश्व की एक बड़ी शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है किंतु सरकारी शिक्षा की दुर्दशा और मुफ्त सौगातों की वर्षा चिंता का सबब बना हुआ है।
जहां शिक्षालयों में शिक्षक नहीं हो और उपलब्ध शिक्षकों का ध्यान गैरशैक्षिक कार्यों में लगा हो,वहां पर किस प्रकार का जन-गण-मन का निर्माण होगा, हम अंदाजा लगा सकते हैं।
शिक्षा की दशा से भी ज्यादा अभी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली राजनीति की दशा और दिशा चिंतनीय है जो एक विकराल रूप लेती जा रही है। हमारा सरकारी खजाना पहले से तंग है, जिसके कारण सरकार पर बहुत कर्ज है।ब्याज में बहुत ज्यादा पैसा जाता है। देश का राजकोषीय घाटा 17 लाख करोड़ रुपए हैं जो अत्यंत चिंताजनक है। कर्जदार देश की राजनीति यदि मुफ्त की सौगातों को बांटने में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हो और जनता भी ज्यादा मुफ्त बांटने वाले को वोट देने लगे तो यह देश के लिए एक खतरनाक संकेत है।
मुफ्त सौगातें आजकल राजनीतिक चर्चाओं में 'रेवड़ी बांटने' के रूप में लोकप्रिय हो चुकी है। रेवड़ी उत्तर भारत की एक लोकप्रिय किंतु सस्ती मिठाई है। कुछ राजनीतिक दल सिद्धांतत:रेवड़ी बांटने की कड़ी आलोचना करते हैं और मानते हैं कि करदाता(टैक्स पेयर) का पैसा विकास के लिए खर्च किया जाना चाहिए। किंतु वे भी इसे अब 'लाड़' या "सम्मान" सरीखे शब्दों से नवाजने लगे हैं। टीवी,साइकिल,लैपटॉप,स्कूटी, राशन इत्यादि सामानों से शुरू हुई रेवड़ी बांटने की राजनीति अब नगद हस्तांतरण के युग में पहुंच चुकी हैं।
गणतंत्र की सफलता और सुफलता गणतंत्र को गुणतंत्र में बदलने से सुनिश्चित होती है। किंतु सरकारी शिक्षा दुर्दशाग्रस्त हो जाए और मुफ्तखोरी की आदत हो जाए तो कवि धूमिल की ये पंक्तियां याद आती हैं -
"अपने यहां जनतंत्र
एक ऐसा तमाशा है
जिसकी जान मदारी की भाषा है।”
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹