संवाद
'संस्कृत के विरोध में भी सौभाग्य'
सनातन संस्कृति के विरोध से संस्कृत भाषा के विरोध तक जब बात पहुंच गई तो विरोध के मर्म के साथ संस्कृत भाषा की महत्ता को समझना आवश्यक है। संस्कृत बोलने वालों की संख्या कम है और यह किसी राज्य की राजभाषा भी नहीं है, इस आधार पर लोकसभा सांसद संस्कृतनिष्ठ संज्ञा धारण करने वाले दयानिधि मारन ने संसद की कार्यवाही का संस्कृत में अनुवाद करने को करदाताओं की पैसे की बर्बादी बताया।
भारतीय संविधान की आठवी अनुसूची में अन्य भाषाओं के साथ संस्कृत को भी स्थान दिया गया है। उन मान्यता प्राप्त सभी 22 भाषाओं में संसद की कार्यवाही का अनुवाद किए जाने की लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला खुशी व्यक्त कर रहे थे, तब सांसद दयानिधि ने संस्कृत का विरोध करते हुए इसे एक विचारधारा का एजेंडा तक बता दिया। लोकसभा अध्यक्ष ने संस्कृत विरोध के इस स्वर का सभ्य और शालीन सलीके से जवाब देते हुए कहा कि आप भारत देश में रह रहे हो, जिसकी मूलभाषा संस्कृत है।
संख्या के आधार पर संस्कृत का आकलन नहीं किया जा सकता। भारत जब विश्वगुरु बना था तो संख्या के आधार पर नहीं बल्कि गुणवत्ता के आधार पर बना था। भारत के पास मानवता को माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर ले जानेवाले सूत्र थे जो संस्कृत भाषा में थे। आज भी शैक्षिक,प्रशासनिक और न्यायिक के साथ अन्य जितनी भी संस्थाएं हैं, उनके ध्येय-वाक्य संस्कृत भाषा से लिए गए हैं। ऊंचाई जितनी ऊंची होती हैं,वहां पर पहुंचने वालों की संख्या उतनी ही कम होती हैं। कोहिनूर एक ही होता है जो कोयले की खदानों से निकलता है, रूपांतरित होकर हीरा बनता है और परिष्कृत होकर कोहिनूर बन जाता है।
संस्कृत वही रूपांतरित और परिष्कृत लोगों की भाषा है जिन्होंने अपना पहला विषय दर्शन चुना था। और आज भी दर्शन किसी भी विषय की सबसे बड़ी उपाधि के मूल में है-'मास्टर इन फिलासफी' और 'डॉक्टरेट इन फिलासफी'. आज जगत की सारी समस्या मूल रूप से दृष्टियों के भेद की समस्या है-यथा दृष्टि तथा सृष्टि।
संस्कृत भाषा और सम्यक दर्शन के अभाव में संविधान की मूल भावना को नहीं समझा जा सकता।संविधान की मूल भावना है कि किसी के भी साथ किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। यह तभी संभव है जब इस बात की समझ आ जाए कि 'ईशावास्यमिदं सर्वं..'अर्थात् जो कुछ भी है सब ईश्वर का है। साधना की जिस ऊंचाई पर पहुंचकर ऋषियों ने 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' सत्य का साक्षात्कार किया उनके जीवन में हर प्रकार का भेदभाव मिट गया और उन्हें यह भी मालूम चल गया कि एक ही सत् को लोग भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं-एकम् सद्विप्रा: बहुधा वदंति।
आज सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख 'राजनीति' बन गई है जबकि संस्कृत उन लोगों की भाषा थी जिसके लिए 'धर्म' सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख था। संस्कृत को देववाणी कहने के पीछे गूढ़ार्थ है कि दिव्यता को प्राप्त हुए लोगों से यह वाणी निकली।संस्कृत जिस लिपि में लिखी जाती है,उसे देवनागरी कहते हैं; देवनागरी का मतलब है "देवताओं का निवास स्थान", और निश्चित रूप से यह है। प्रत्येक शब्द दिव्य बन गया है, सिर्फ इसलिए कि इसका इस्तेमाल उन लोगों ने किया है जिन्होंने ईश्वर या ईश्वरत्व को जाना था।
पटना विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध पटना कॉलेज में Sports- ground पर जब मेरा एडमिशन हुआ था तो संस्कृत विषय का चयन मैंने सिर्फ अंक पाने के लिए किया था किंतु संस्कृतानुरागी सहृदयों के सत्संग से मुझे इसमें जीवन मिल गया। अब तो संस्कृत की महत्ता से जैसे-जैसे मैं परिचित हो रहा हूं,वैसे वैसे लगता है कि हीरे की परख के लिए जौहरी की आंखें चाहिए। गोलकुंडा के गांव के पास जिस पत्थर से किसान के बच्चे खेल रहे थे, वह गोलकुंडा हीरों की खान साबित होगा और वह पत्थर किसी दिन कोहिनूर बनकर ब्रिटेन की महारानी के ताज का गौरव बनेगा, किसी को नहीं मालूम था।
हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के समय 'English ever,Hindi never' का नारा देने वाले अब सनातन विरोध के बाद संस्कृत के विरोध पर उतर आए।किंतु संविधाननिर्माता बाबा साहब अंबेडकर ने संस्कृत को इंडियन यूनियन की राजभाषा के रूप में मान्यता देने का एक प्रस्ताव संविधान सभा मेंआगे बढ़ाया था। जरूर उन्हें विविधतापूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधने की शक्ति संस्कृत भाषा में दिखी होगी।
वैश्वीकरण के युग में आज विज्ञान ने स्थानों की दूरियां जितनी कम कर दी हैं, मनों के बीच की दूरियां उतनी ही बढ़ गई है। विभिन्न भाषा,धर्म व संस्कृति के लोग जितना पास आते जा रहे हैं,उतना ही ज्यादा अपनी ढपली अपना राग आलापते जा रहे हैं। विज्ञान ने तो मंगल पर पांव रख दिए किंतु मन में बसी हुई हिंसा के कारण बढ़ता हुआ युद्ध बता रहा है कि चारों तरफ अमंगल ही अमंगल व्याप्त है। मेरा हृदय बार-बार पूछ रहा है-
'मंगल पर पहुंच चुके हैं विज्ञान के पांव
देखना यह है कि इंसान कहां तक पहुंचे
अमंगल की दास्तां है जहां तक पहुंचे
मेरी आरजू है कि मंगल भी वहां तक पहुंचे।'
इस दृष्टि से संस्कृत भाषा में दर्शन और धर्म के जो तत्त्व मुझे मिले, वे मन से उपजी आज की समस्याओं असमानता,अशांति,अविश्वास के समाधान के लिए आत्मज्ञान का एक मंत्र देते हैं जहां पहुंचकर व्यक्ति अमन की स्थिति को प्राप्त कर लेता है। 'अमन' का अर्थ होता है शांति।
पर्यावरण संकट हो या जलवायु परिवर्तन जैसी सारी समस्या वैश्विक है और उन समस्याओं का समाधान वैश्विक दृष्टि रखने वाली संस्कृत भाषा में है जिसमें पृथ्वी को माता और आकाश को पिता माना गया है। प्रकृति के सारे रूपों को दिव्यत्व प्रदान करते हुए प्रकृति के साथ साहचर्य का संबंध बनाया गया है।
संस्कृत के व्याकरण नियम कंप्यूटर भाषा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में इतना उपयोगी है कि विश्व के प्रसिद्ध भाषाविदों ने संस्कृत को सबसे ज्यादा वैज्ञानिक भाषा माना है। और इस भाषा में विकसित देश अपना शोध कार्य आगे बढ़ा रहे हैं। भारतीय उपमहाद्वीप की लगभग सभी भाषाओं में इसके शब्द तो मौजूद हैं ही,विदेशी भाषाओं में भी संस्कृत के प्रभाव आश्चर्यजनक है।
विश्व का सबसे बड़ा आयोजन 'महाकुंभ का आयोजन' जो चल रहा है,उसका मूल दर्शन संस्कृत भाषा में है। समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश का मिलना और सुर तथा असुर की खींचातानी में अमृत की बूंदों का चार जगह गिरना और उन चार जगहों पर महाकुंभ का आयोजन प्रति 12 वर्ष पर होना; सभी संस्कृत भाषा में है।
आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शिक्षा की दुर्दशा के कारण हम संस्कृत की देन और दर्शन की महत्ता को नहीं समझ पा रहे हैं। इस कारण स्वार्थ प्रेरित नेता जनता को गुमराह करने में सफल हो जा रहे हैं।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹