🙏महिला दिवस की शुभकामना🙏
संवाद
'स्त्री संवेदनायुक्त संसार'
'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' की तरह ही किसी दिन 'अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस' भी मनाया जाने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। स्त्री के पक्ष में भारत में बने कानून को लेकर कुछ पुरुषों ने अपनी जान देकर इस बात की गुहार लगाई है कि कानून की दृष्टि में दोनों समान हों।
पश्चिम की दृष्टि प्रतियोगिता की दृष्टि है और प्रतियोगिता में एक की जीत निश्चितरूपेण दूसरे की हार होती है। पूरब की दृष्टि प्रेम की दृष्टि है जिसमें हारने वाला भी सहर्ष अपनी हार को गले लगाता है-
'खुद को खोया है तो पाई है मोहब्बत तेरी
जिंदगी में यह मेरी जीत भी है,हार भी है
लुत्फ़ दोनों से उठाते हैं उठाने वाले
जिंदगी निकहते गुल भी है,खलिसे खार भी है।'
पश्चिम की दृष्टि ने स्त्री पुरुष के संघर्ष को बढ़ा दिया। पूरब की दृष्टि शुरू से ही यह समझती थी कि स्त्री पुरुष एक दूसरे के परिपूरक है,प्रतियोगी नहीं। अर्धनारीश्वर की प्रतिमा इसी बात का सबूत है-
'वागर्थविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ।'
अर्धनारीश्वर इस जगत के 'पितरौ'(माता-पिता)हैं जो शब्द और अर्थ की तरह अविभाज्य हैं।
भारतीय संस्कृति के इन संकेतों को नहीं समझा गया तो संसार एक युद्ध के मैदान से ज्यादा नहीं होगा। पुरुष प्रधान समाज ने युद्ध और संघर्ष के अलावा विश्व को क्या दिया? दो विश्व युद्ध के बाद आज यूक्रेन-रूस और हमास- इजरायल युद्ध के कारण तीसरे विश्व युद्ध की आहट सुनाई देने लगी है। लाखों घर उजड़ गए, जो मारे गए वे किसी स्त्री के पिता-पति या बेटे-भाई हैं।
पुरुष तत्त्व की जगह स्त्री तत्त्व की प्रधानता हो तो यह दुनिया कुछ और प्रकार की होगी जिसमें हृदय प्रधान होगा। जिसमें जीतना नहीं,जीना प्रधान होगा। जिसमें बम नहीं,खिलौने प्रधान होंगे। विध्वंस नहीं, सृजन प्रधान होगा।
महिला दिवस को संवेदना के जागरण दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। जीवन रूपी पौधे के प्राण जड़ में होते हैं। सृष्टि के मूल में स्त्री है। किसी को भी स्त्री-गर्भ से ही जन्म मिलता है। जन्म देने वाली स्त्री युद्ध की समर्थक नहीं हो सकती क्योंकि युद्ध में या तो उसका सुहाग छिनता है या कोख उजड़ती है।
पुरुष प्रधान समाज को यह सोचना चाहिए कि संसार रूपी जड़ (स्त्रीतत्त्व) में पानी डालने से ही जीवन रूपी पौधे पर फूल खिलेंगे, फल आएंगे। कन्या भ्रूण हत्या से लेकर सती प्रथा तक न जाने कितने पाप इस समाज ने किए जिसके कारण यह दुनिया दुखों से भर गई। सुख की झलक तो वही मिलती है जहां नारियों की पूजा होती हैं-
'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता...
पूजा की बात अतिशयोक्ति लगती हो तो उसको छोड़ो। समानता की बात को तो अपनाओ क्योंकि जिन्होंने जाना है,उनका मानना है कि शक्ति के बिना शिव शव के समान है-
'ऐसा कोई गीत नहीं है जिसमें तेरा राग नहीं हो
ऐसी कोई प्रीत नहीं है जिसमें तेरा त्याग नहीं हो।'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹