🙏होली की शुभकामना🙏
संवाद
'प्रेम के रंग में रंगा पर्व होली'
हिंदू,जैन,बौद्ध और सिख जैसे चार धर्मों की जन्मभूमि भारत में दो धर्मों का पर्व यदि एक साथ आता हो तो उत्साह और उमंग दोगुना होना चाहिए। लेकिन देखने में यह आ रहा है कि द्वंद्व और तनाव दोगुना हो जाता है। उत्साह और उमंग बढ़ानेवाली दृष्टि को मैं धार्मिक कहता हूं जबकि द्वंद्व और तनाव बढ़ानेवाली दृष्टि को राजनीतिक-
'कोई कुछ भी बोल देता है
हवा में सनसनी घोल देता है।'
रंगों का पर्व होली उसी धार्मिक प्रह्लाद के भक्तिरंग की याद दिलाता है, जिसके आगे हिरण्यकश्यपु और होलिका की नास्तिकता फीकी पड़ गई। आज जो संघर्ष धर्मों के बीच बताया जा रहा है, वह संघर्ष सदियों से और सदा ही एक परिवार में भी होता आया है।
पौराणिक कहानी कहती है कि हिरण्यकश्यपु जब ब्रह्मा की तपस्या में लीन था तब देवराज इंद्र ने असुरों पर आक्रमण किया और उसकी गर्भवती पत्नी कयाधु को भी ले गए। लेकिन देवर्षि नारद के समझाने पर कयाधु को इंद्र ने एक ऋषि के आश्रम में पहुंचा दिया। नारद ने गर्भवती कयाधु को विष्णु महिमा की कथा सुनाई। इसी कयाधु के गर्भ से प्रह्लाद का जन्म हुआ।
इस प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति से रोकने के लिए राजा हिरण्यकश्यपु ने हर उपाय कर लिया। पहाड़ से फिंकवा दिया ,नदी में डूबा दिया किंतु हर बार वो बच जाता था। अंत में उसकी बहन होलिका जिसे आग से सुरक्षा कवच प्राप्त था, बालक प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। किंतु होलिका जल गई और बालक प्रह्लाद बच गया।
भक्त प्रह्लाद के बचने की खुशी में होलिका दहन कार्यक्रम के बाद रंगो का त्योहार होली मनाया जाता है। भक्ति प्रेम का शिखर है। प्रेम के रंग में जो डूब जाता है उसे हर तरफ और हर जगह परमात्मा ही दिखाई देता है। विष्णु के प्रेम में डूबे हुए प्रह्लाद से हिरण्यकश्यपु ने जब पूछा कि क्या तेरा विष्णु इस राजमहल के खंभे में भी है? प्रह्लाद ने कहा कि वह हर जगह है। उसी खंभे से नरसिंह रूप में प्रकट होकर विष्णु ने उस हिरण्यकश्यपु का वध किया,जिसे वरदान मिला था कि वह न दिन में मारा जाएगा न रात में, न अस्त्र से मारा जाएगा न शस्त्र से, न जमीन पर मारा जाएगा और न आकाश में। वह हिरण्यकश्यपु घर की ड्योढ़ी पर नरसिंह भगवान के जांघ पर नाखूनों से शाम को मारा गया।
कहानी का संदेश यह है कि घृणा कितनी भी ताकतवर हो और प्रेम कितना भी कोमल हो तो भी अंततः प्रेम ही जीतता है। और वह प्रेम सभी रंगों में समाया हुआ है और सभी अंगो में। इसीलिए किसी शायर ने कहा
'इसक अल्लह की जाति है, इसक अल्लह का अंग
इसक अल्लह औजुद है,इसक अल्लह का रंग ।'
होली के रंग उस परमात्मा के प्रेम रंग की याद दिलाते हैं जो हम सभी आत्मा में अभिव्यक्त हुई है। व्यष्टि के प्रति उपजा यह प्रेम रंग जब समष्टि से जुड़ जाता है तो वह भक्ति बन जाता है। और फिर से एक नए प्रह्लाद का जन्म हो जाता है।
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹