संवाद


'होली या जिंदगी हो ली'


मोहल्ले में घर के नजदीक ही माली का घर है।प्रभुमूर्ति पर चढ़ाने के लिए या पार्थिव देह पर चढ़ाने के लिए ; फूलमाला तो विनोद जी माली के घर से ही आता है। किंतु होली के दिन जब विनोद जी साइलेंट हार्ट अटैक से चल बसे तो उनके पार्थिव देह पर चढ़ाने के लिए फूलमाला मुझे दूर से ढूंढकर लाना पड़ा।


                जीवन कैसे-कैसे रंग और ढंग दिखाता है। विनोद जी दिन भर होली के रंग में खुद भी रंगे और सबको रंगते भी रहे। रंग अभी छूटा भी नहीं था कि सफेद चादर में उनका तन लिपटा हुआ पड़ा था। पूरा मोहल्ला गमगीन माहौल में था किंतु होली खेलने के उनके उमंग की चर्चा भी कर रहा था।


इसी बीच सगे-संबंधियों के फोन भी आ रहे थे। अधिकांश तो होली की शुभकामना के फोन थे किंतु एक फोन मैडम के पास ऐसा भी आया कि दर्शनशास्त्र विभाग की उनकी क्लासमेट नहीं रही।होली के रंगों के बीच उनकी आत्मा परमात्मा के रंग में रंग गई-


'कोई मोती गूंथ सुहागन तू अपने गलहार में


मगर विदेशी रूप न बंधने वाला है श्रृंगार में।


चमकीली चोली चुनरी पर मत इतरा यूं सांवरी


सबको चादर यहां एक सी मिलती चलती बार में।'


                सफेद चादर में जाने के सत्य के बीच रंग बिरंगी होली.....। रहस्यदर्शी ओशो कहते हैं कि जीवन क्षणिक है,इसीलिए इसे उत्सव और उमंग से सराबोर कर देना चाहिए।


'मुहूर्तं ज्वलितं श्रेयः, न तु धूमायितं चिरम्'


महाभारत के उद्योगपर्व का यह श्लोक कहता है कि एक क्षण के लिए भी भभककर जलना अच्छा है, लेकिन लंबे समय तक धुआं छोड़ते हुए जीना अच्छा नहीं है।


               कोरोना के बाद से तो जीवन की क्षणभंगुरता के दर्शन बार-बार हो रहे हैं। कोई पार्टी में डांस करते हुए अचानक गिर जाता है तो कोई शादी के मंडप में चलते हुए; कोई दिवाली पर गले लगते हुए गिर जाता है तो कोई होली का रंग लगाते हुए-


जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी


मौत मेहबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी।


          लेकिन यह मौतरूपी मेहबूबा न उम्र की सीमा देख रही है और न अनुकूल समय। जाने वाला भी यकीन नहीं कर पाता और पूछने लगता है-


'मालूम नहीं क्यों हैरान था हर कोई मुझे सोते हुए देखकर


जोर-जोर से रोकर मुझे जगाया जा रहा था।


था मैं नींद में और मुझे इतना सजाया जा रहा था,


बड़े प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था।


मोहब्बत की इंतिहां थी जिन दिलों में मेरे लिए


उन्हीं दिलों के हाथों आज मैं जलाया जा रहा था।'


विनम्र श्रद्धांजलि!!!


'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹