🙏प्रार्थना की रात्रि🙏
संवाद
'सुनीता जी का संदेश'
अंतरिक्ष में आठ दिनों की यात्रा पर गईं भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स स्पेशयान में खराबी के कारण 9 महीने के बाद कल वापस लौटेंगी। अभी दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं क्यूंकि 1 फरवरी 2003 को कल्पना चावला को लेकर जब अंतरिक्ष यान धरती की ओर आ रहा था तो हम सभी ने स्वागत में पलक पांवड़े बिछा रखे थे। किंतु क्षणमात्र में कुछ ऐसा हुआ कि कल्पना का लौटना वास्तविकता न बन सका और वे अपनी पूरी टीम के साथ किसी कल्पना लोक में खो गईं। हर्षोल्लास का क्षण मातम के क्षण में तब्दील हो गया।
उस समय हम सोच रहे थे कि जान की बाजी लगाने वाले ऐसे खतरनाक मिशन पर जाने के लिए अब फिर कौन तैयार होगा? लेकिन एक सप्ताह के भीतर उसी अंतरिक्ष शोध के लिए नई टीम तैयार थी।
भारतीय संस्कृति ने इस वृत्ति को ब्राम्हण-वृत्ति कहा है। ज्ञान की खोज में जो अपने जान की भी परवाह न करे,वह ब्राम्हण। आज के वैज्ञानिक मूलतः ब्राह्मण हैं,चाहे वे किसी धरती पर जन्म लिए हों,किसी धर्म में जन्म लिए हों या किसी जाति में जन्म लिए हों या किसी लिंग में जन्म लिए हों। वैज्ञानिकों ने पदार्थ की खोज करके मानव जीवन को कितनी सुख सुविधाओं से भर दिया और पूरे विश्व ही नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड को एक ग्लोबल बॉक्स में बदल दिया।
आज विज्ञान जो काम कर रहा है,भारतीय ज्ञान परंपरा में वही काम ऋषियों ने धर्म के माध्यम से किया था। किंतु पदार्थ के क्षेत्र में नहीं परमात्मा के क्षेत्र में, परम चेतना के विषय में। उस परम चेतना ने पृथ्वी को माता कहा था,आकाश को पिता कहा था, और सभी में उसी एक चेतना का वास बताया था-
'ईशावास्यमिदं सर्वम्' अर्थात् सब कुछ ईश्वर है।
'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' अर्थात् सब कुछ ब्रह्म है।
आज दु:ख और दुर्भाग्य की बात यह है कि परम चेतना वाला वह सार्वभौमिक धर्म हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई के लिए अलग-अलग हो गया और विज्ञान सभी (हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई) के लिए एक हो गया।
धर्म राजनीतिक प्रवृत्ति वालों के हाथों में चला गया और धर्म के नाम पर युद्ध होता रहा। आज हम धर्म के नाम पर कब्र की चर्चा कर रहे हैं और आपस में लड़ रहे हैं, विज्ञान खोजियों के हाथ में चला गया और वे सभी सीमाओं को तोड़ कर एक हो रहे हैं तथा अंतरिक्ष में भी सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं।
सुनीता और नेता दोनों शब्द में धातु एक ही हैं-संस्कृत भाषा की√नी धातु। इसका अर्थ होता है-'आगे ले जाना'. वैज्ञानिक चेतना तो सचमुच आगे ले जा रही हैं लेकिन राजनीतिक चेतना धर्म को भी बदनाम कर रही है क्यूंकि वह अनीति के रास्ते पर हैं, सुनीति के रास्ते पर नहीं।
अनीति के रास्ते पर ले जाने वाले नेताओं को देखकर ही मार्क्स ने धर्म को अफीम की संज्ञा दी थी।
लेकिन भारतीय ज्ञान परंपरा में धर्म को जानने वाले लोगों ने इसे परम-जागरण कहा था। उस अवस्था में पहुंचने वाले महावीर ने तो पत्थर में भी उसी चेतना को माना था,जो परमात्मा में हैं। आधुनिक युग में स्वामी विवेकानंद ने इसी बात को दूसरे शब्दों में कहा था कि एक अमीबा और एक बुद्ध में चेतना की दृष्टि से कोई विशेष अंतर नहीं है। अमीबा में चेतना सोई हुई अवस्था में हैं जबकि महात्मा बुद्ध में यह चेतना पूर्ण जागरण की अवस्था में हैं।
शिक्षालय में सोई हुई चेतना को पूर्ण जागरण वाली चेतना बनाने की साधना की जाती है। उच्च कोटि के शिक्षालयों की खोज में विश्व की सारी प्रतिभाएं कभी नालंदा विश्वविद्यालय की तरफ दौड़ी आती थीं, आज भारत से हर दिन 500 प्रतिभाएं विदेश की तरफ चली जाती हैं।
कल सुबह जब सुनीता धरती पर आएंगी तो एक तरफ 'जय विज्ञान' का नारा गूंजेगा तो दूसरी तरफ धर्म के नाम पर दंगा कराने वाली बातें भी दिलो दिमाग में गूंजेगी।
'जय विज्ञान' की तरह 'जय धर्म' का नारा भी गुंजायमान हो सकता है जब नालंदा विश्वविद्यालय की तरह हमारा शिक्षालय हो जहां अविद्या और विद्या दोनों की शिक्षा इस प्रकार की दी जाती थी कि भारत विश्वगुरु बन गया। उस शिक्षा में अविद्या को 'विज्ञान' कहा जाता था और विद्या को 'धर्म' (परम विज्ञान)कहा जाता था। विज्ञान मृत्यु के पार ले जाता था और धर्म मुक्ति का द्वार खोल देता था-
"विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते”
इसका मतलब है कि जो व्यक्ति विद्या और अविद्या दोनों को जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्व प्राप्त करता है।
सुनीता नहीं लौटने की स्थिति में भी अपनी मन:स्थिति ऐसी रखीं कि वे 9 महीने तक अंतरिक्ष में आशा से भरी रहीं और अनेक प्रकार के शोध में अपने आप को व्यस्त रखा। कल धरती पर उनका लौटना एक नई प्रकार की चेतना का पृथ्वी पर अवतरण होगा जो निराशा में भी आशा का और मृत्यु में भी अमृत का संदेश देगा-
'पनपने दे जरा आदत निगाहों को अंधेरों की
अंधेरे में अंधेरा रोशनी के काम आएगा
पलक पर और बढ़ने दे जरा सा इस समंदर को
तभी तो मोतियों का और ज्यादा दाम आएगा।'
उनके वापस लौटने के इंतजार में मेरे जैसी प्रतीक्षारत्त करोड़ों आत्मा प्रार्थना कर रही हैं-असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय,मृत्योर्मा अमृतम् गमय.....
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹