🙏प्रश्न छात्र का , जवाब शिक्षक का🙏


संवाद


'पिताजी नहीं रहे क्या करूं'


नवरात्रि के दूसरे दिन और ईद के पवित्र दिन शाम को एक छात्र का प्रश्न मेरे व्हाट्सएप पर आया:


सर प्रश्न यह था कि पापा के जाने के बाद सामाजिक जिम्मेदारियों  ओर व्यक्तिगत जीवन की कुछ बातों से अपने वास्तविक लक्ष्य से दूर होता जा रहा हु दिल्ली गया था upsc के लिए मगर आज थर्ड ग्रेड टीचर बन के रह गया हु कुछ गलतियां मुझसे भी हुई है तो बस खुद से भी थोड़ी शिकायतें है सर अब इस दुविधा में हु की क्या ओर कैसे सामंजस्य बिठाऊं कृपया करके बताए


प्रिय विद्यार्थी!


पिता के दुनिया से चले जाने के बाद पूरी दुनिया बदल जाती है। मुझे मालूम ही नहीं था कि आपके पिताजी नहीं रहे और इतनी द्वंद्वग्रस्त स्थिति में आप है। मैं तुरंत आपको बातचीत करने के लिए बुला लेता।


    खैर!अब आप आ जाओ। एक बार फोन करके समय निर्धारित कर लें ताकि शांति से बात हो सके। विपत्ति में धैर्य के अलावा कोई मित्र नहीं हो सकता। दुनिया हम सभी के मन के अनुसार सदैव नहीं चल सकती। जब पिताजी रहते हैं तो निश्चिंतता रहती है। गुलजार साहब कहते हैं-


'धूप में बाप और चूल्हे पर मां जलती है


तब कहीं जाकर औलाद पलती है।'


         जैसे घर का छत हट जाए तो सीधे धूप सर पर आने लगती है वैसे ही पिता के हट जाने पर सारी जिम्मेदारियां अपने सर आ जाती हैं।


'जरा गौर से देख यह छत क्या है


तू समझ जाएगा मां-बाप की शफकत क्या है।'


      अब जिंदगी कहीं भी रुकती नहीं है। यहां से अब जिंदगी को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए संकल्प चाहिए। मन में अनेक प्रकार की इच्छाएं उठती रहती हैं। सारी इच्छाओं को एक इच्छा में बदल देना संकल्प कहलाता है। योगवाशिष्ठ में लिखा है-'सर्व: स्वसंकल्पवशाल्लघुर्भवति वा गुरु:'अर्थात् सब कुछ अपने संकल्प के अनुसार छोटा या बड़ा हो जाता है।


    तुमने संकेत भी किया है कि कुछ गलतियां तुमसे हुई होगी। मैं कहता हूं कि कितनी भी गलतियां हो जाएं फिर भी आगे बढ़ने का रास्ता रुकता नहीं। बस उन गलतियों से सबक लेना है। तुम्हारे पास प्रतिभा है।इसी कारण से तुम जीजीटीयू की 'एक भारत,श्रेष्ठ भारत'विषय पर निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर आए थे। उस समय विश्वविद्यालय में मैं एकेडमिक प्रभारी था और तुम्हारा निबंध देखा था। अभी तुम थर्ड ग्रेड टीचर में हो, कोई बात नहीं। अभी बहुत लोग बहुत अच्छी प्रतिभा के बावजूद बेरोजगार घूम रहे हैं। पद महत्वपूर्ण नहीं होता।


कथावाचक मुरारी बापू स्वयं बताते हैं कि बोर्ड परीक्षा भी पास करना उनके लिए मुश्किल था किंतु वैसी प्रतिभा कॉलेज में पढ़ाने वालों की भी नहीं है। प्रतिभा के विकास पर ध्यान दीजिए। खुद से जो गलतियां हुई हैं, उसके कारण अपने को कोसने की कोई जरूरत नहीं है। गलतियों का दूसरा नाम ही इंसान है (To err is human.) बस उन गलतियों को दोबारा मत कीजिएगा।


जीवन में दुविधा या द्वंद्व आता ही रहता है। अर्जुन के सामने भी द्वंद्व था कि अपनों से लड़ूं कि रण छोड़कर भाग जाऊं। यह द्वंद्व अर्जुन को विषाद में ले गया। इसलिए गीता का प्रथम अध्याय 'विषादयोग' कहा जाता है। किंतु सौभाग्य था कि कृष्ण पास में थे। उन्होंने इस द्वंद्वग्रस्त चित्त से अर्जुन को बाहर निकाला। इसके लिए ज्ञान योग ,कर्म योग सबका सहारा लिया। इसी बातचीत से भगवत् गीता निकला।


      मैं कहना यह चाह रहा हूं कि यह संकट का क्षण आपकी आत्मिक उन्नति के लिए बहुत सहायक सिद्ध होगा। बस आप शांत मन से यह देखो कि इस परिस्थिति में आपका कर्त्तव्य क्या है? अपने कर्त्तव्य को पकड़ लो और बाकी सब कुछ परमात्मा पर छोड़ दो। कर्त्तव्य को पकड़ना भी है और बाकी सब कुछ परमात्मा पर छोड़ना भी है। यदि कर्त्तव्य को छोड़ दोगे तो भगोड़ा कहलाओगे और यदि परमात्मा को छोड़ दोगे तो भार के नीचे दब जाओगे। क्योंकि मानव की क्षमता सीमित है। लेकिन याद रखना परमात्मा की कृपा असीमित है।


    मुझे आपसे यही कहना है कि खुद पर भरोसा और परमात्मा पर भरोसा दो चीज़ें मत छोड़िएगा।


ऐसी विकट स्थिति जानता तो मैं आपको तुरंत बुला लेता। विद्यार्थियों के लिए मेरा दरवाज़ा सदा खुला है। किंतु मेरा घर पर होना भी जरूरी है। कॉलेज में या बाहर व्यस्तता के कारण कभी-कभी विद्यार्थी को इंतजार करना पड़ता है। लेकिन संकट की स्थिति में इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं।


इस विकट परिस्थिति में जो कुछ भी शक्ति मिलेगी वह सत्संगति से मिलेगी। कभी-कभी कुछ लोग संकट की ऐसी परिभाषा कर देते हैं कि व्यक्ति टूट जाता है। लेकिन मेरे लिए


'मुश्किलें कहते जिन्हें हम राह की आशीष हैं वे


और ठोकर नाम हैं बेहोश पग को होश आना।


है अदा यह फूल की छूकर उंगलियां रुठ जाना


स्नेह है यह शूल का चूभ उम्र छालों की बढ़ाना।।


एक ही केवल नहीं है प्यार के रिश्ते हजारों


इसलिए हर अश्रु को उपहार सबका है बराबर


ओ पथिक!तुझ पर यहां अधिकार सबका है बराबर।'


      जीवन खुशी देता है तो गम भी देता है, जीवन चेहरे पर हंसी देता है तो आंख में आंसू भी देता है। जीवन में दिन है तो रात भी है, हार है तो जीत भी है। इनसे गुजर जाना है।


    विशेष बात तुमसे मिलकर होगी। आपके पिताजी के प्रति अपनी तरफ से विनम्र श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूं और परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि इस दुख से आप  निकल जाओगे। शिक्षक को सार्थकता मिलती है जब विद्यार्थी ऐसे संकट के क्षण में मार्गदर्शन के लिए याद करता है।


शुभाशीष!


आपका शिक्षक


'शिष्य-गुरु संवाद' से डॉ.सर्वजीत दुबे🙏🌹