🙏रामनवमी की शुभकामना🙏
संवाद
'हे राम!तुम कहां हो?'
रामनवमी के दिन राम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। लेकिन कुछ प्रश्न मेरे मन में उठ रहे हैं। अधिकार की चेतना वाले इस युग में कर्त्तव्य की चेतना वाले राम का जन्म कैसे संभव है? भोग की लिप्सा वाले युग में त्याग की वृत्ति वाले राम कैसे आएंगे? जिस युग में सत्ता के लिए सारे मूल्यों की बलि चढ़ा दी जाती है, उस युग में पिता के संकेत मात्र से सत्ता छोड़कर जंगल की ओर प्रस्थान कर जाने वाले राम का आविर्भाव कैसे होगा? अनेक स्त्री-पुरुषों से संबंध बनाने वाले इस युग में एकपत्नीनिष्ठ राम को कौन पसंद करेगा? बुद्धिप्रवण इस युग में जहां छलछद्म और कठोरता चरम पर है,वहां सरल और नरम हृदयवाले भावप्रवण राम की जरूरत कहां हैं जो वंचितों और शोषितों के लिए आंसू बहाते हैं?प्रजा का दमन करने वाले अय्याश शासकों के समय में एक प्रजा के कहने पर अपनी गर्भवती पत्नी को जंगल भेजने वाले व्यक्ति को कोई क्यूं कर याद करेगा? सूर्पनखाओं की खोज करने वाले युग में कोई सूर्पनखा के प्रस्ताव को अस्वीकार करने वाले राम को अपना नायक क्यों बनाएगा?
वस्तुतः रामनवमी का महत्व इसीलिए बढ़ जाता है क्योंकि राम का युग इस कलियुग को आईना दिखाने का काम करता है। हमारी चेतना की एक संभावना राम होने की भी है किंतु जब हम देखते हैं कि हम जीवन में रामत्व से बहुत दूर जा चुके हैं तो हमें ग्लानि होती है। राम के युग में खलनायक रावण को भी कुछ मूल्यबोध था क्योंकि वह सीता जी के साथ अनुनयविनय करता रहा ,अपने शत्रु राम का पुरोहित बनकर उन्हें विजय का आशीर्वाद देने की लिए तैयार हो गया और सीता को साथ ले जाकर उनकी शक्ति पूजा पूर्ण करवाया। आज के युग के खलनायकों की तो बात छोड़िए नायकों में भी वह मूल्यबोध नहीं है।
मूल्यबोध पैदा होता है शिक्षा से और उन मूल्यों को जीने वाले शिक्षकों और व्यक्तित्वों से। लेकिन आज शिक्षा की जो दुर्दशा हो गई है, खासकर सरकारी शिक्षालयों की ; उसको देखकर ऐसा नहीं लगता कि राम निर्माण की हमारी इच्छा है। परिणास्वरुप रामलीला के राम तैयार हो रहे हैं।जो राम शांति और शालीनता के प्रतीक थे,उन्हीं राम का नाम लेकर रामनवमी का जुलूस इस प्रकार से निकाला जाता है कि तनाव और दंगा की आशंका बनी रहती है। हम ज्यों ही किसी मर्यादा का अतिक्रमण करते हैं त्यों ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम से हम दूर हो जाते हैं।तभी तो किसी कवि ने कहा-
'रावण की मैं बांहें काटूं या लंका में आग लगाऊं
घर-घर रावण घर-घर लंका इतने राम कहां से लाऊं?'
'शिष्य-गुरु संवाद' से प्रो.सर्वजीत दुबे🙏🌹